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________________ गीता दर्शन भाग-60 के वस्त्र गिर गए और आप नग्न हो गए अपनी शुद्धता में, उसी | | और पानी भर गया था। कुछ डबरे गंदे थे। कुछ डबरों में जानवर क्षण आपका मिलना हो जाता है। स्नान कर रहे थे। कुछ डबरे शुद्ध थे। कुछ बिलकुल स्वच्छ थे। साधना आपको निखारती है, परमात्मा को नहीं मिलाती। लेकिन | | किन्हीं के पोखर का पानी बड़ा स्वच्छ-साफ था। किन्हीं का जिस दिन आप निखर जाते हैं...। और कोई नहीं कह सकता कि | | बिलकुल गंदा था। और सुबह का सूरज निकला। रवींद्रनाथ ने कहा कब आप निखर जाते हैं, क्योंकि इतनी अनहोनी घटना है कि कोई | | कि मैं घूमने निकला था। मुझे एक बात बड़ी हैरान कर गई और मापदंड नहीं है। और जांचने का कोई उपाय नहीं है। कोई | अकस्मात वह बात मेरे हृदय के गहरे से गहरे अंतस्तल को स्पर्श दिशासूचक यंत्र नहीं है। कोई नक्शा नहीं है, अनचार्टर्ड है। यात्रा करने लगी। बिलकुल ही नक्शेरहित है। देखा मैंने कि सूरज एक है; गंदे डबरे में भी उसी का प्रतिबिंब बन __ आपके पास कुछ भी नहीं है कि आप पता लगा लें कि आप रहा है, स्वच्छ पानी में भी उसी का प्रतिबिंब बन रहा है। और यह कहां पहुंच गए। निन्यानबे डिग्री पर पहुंच गए, कि साढ़े निन्यानबे भी खयाल में आया कि गंदे डबरे में जो प्रतिबिंब बन रहा है, वह गंदे डिग्री पर पहुंच गए, कि कब सौ डिग्री हो जाएगी, कब आप भाप पानी की वजह से प्रतिबिंब गंदा नहीं हो रहा है। प्रतिबिंब तो वैसा का बन जाएंगे। यह तो जब आप बन जाते हैं, तभी पता चलता है कि | वैसा निष्कलुष! सूरज का जो प्रतिबिंब बन रहा है, वह तो वैसा का बन गए। वह आदमी पुराना समाप्त हो गया और एक नई चेतना वैसा निर्दोष और पवित्र! और शुद्ध जल में भी उसका प्रतिबिंब बन का जन्म हो गया। अकस्मात, अचानक विस्फोट हो जाता है। । रहा है। वे प्रतिबिंब दोनों बिलकुल एक जैसे हैं। गंदगी जल में हो लेकिन उस अकस्मात विस्फोट के पहले लंबी यात्रा है साधना सकती है, डबरे में हो सकती है, लेकिन प्रतिबिंब की शुद्धि में कोई की। जब पानी भाप बनता है, तो सौ डिग्री पर अकस्मात बन जाता अंतर नहीं पड़ रहा है। और फिर एक ही सूर्य न मालूम कितने डबरों है। लेकिन आप यह मत समझना कि निन्यानबे डिग्री पर, अट्ठानबे | | में, करोड़ों-करोड़ों डबरों में पृथ्वी पर प्रतिबिंबित हो रहा होगा।' डिग्री पर भी अकस्मात बन जाएगा। सौ डिग्री तक पहुंचेगा, तो | - कृष्ण कहते हैं, जैसे एक ही सूर्य इस संपूर्ण लोक को प्रकाशित एकदम से भाप बन जाएगा। लेकिन सौ डिग्री तक पहुंचने के लिए करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा, एक ही चैतन्य समस्त जीवन जो गरमी की जरूरत है, वह साधना जुटाएगी। को आच्छादित किए हुए है। इसलिए हमने साधना को तप कहा है। तप का अर्थ है. गरमी। वह जो आपके भीतर चैतन्य की ज्योति है, और वह जो मेरे भीतर वह तपाना है स्वयं को और एक ऐसी स्थिति में ले आना है, जहां | चैतन्य की ज्योति है, और वह जो वृक्ष के भीतर चैतन्य की ज्योति है, परमात्मा से मिलन हो सकता है। | वह एक ही प्रकाश के टुकड़े हैं, एक ही प्रकाश की किरणें हैं। बुद्ध उस रात उस जगह आ गए, जहां सौ डिग्री पूरी हो गई। फिर __ प्रकाश एक है, उसका स्वाद एक है। उसका स्वभाव एक है। आग देने की कोई जरूरत भी न रही। वे टिककर उस वृक्ष से बैठ दीए अलग-अलग हैं। कोई मिट्टी का दीया है; कोई सोने का दीया गए। उन्होंने तप भी छोड़ दिया। लेकिन घटना सुबह घट गई। है। लेकिन सोने के दीए में जो प्रकाश होता है, वह कुछ कीमती जीवन के परम रहस्य अकस्मात घटित होते हैं। लेकिन उन | | नहीं हो जाता। और मिट्टी के दीए में जो प्रकाश होता है, वह कोई अकस्मात घटित होने वाले रहस्यों की भी बड़ी पूर्व-भूमिका है। । कम कीमती नहीं हो जाता। और मिट्टी के दीए की ज्योति को अगर अब हम सूत्र को लें। आप जांचें और सोने के दीए की ज्योति को जांचें, तो उन दोनों का हे अर्जुन, जिस प्रकार एक ही सूर्य इस संपूर्ण लोक को प्रकाशित | स्वभाव एक है। करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा संपूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता | चैतन्य एक है। उसका स्वभाव एक है। वह स्वभाव है, साक्षी है। इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा विकारयुक्त प्रकृति | | होना। वह स्वभाव है, जानना। वह स्वभाव है, दर्शन की क्षमता। से छूटने के उपाय को जो पुरुष ज्ञान-नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, | __ प्रकाश का क्या स्वभाव है? अंधेरे को तोड़ देना। जहां कुछ न वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं। | दिखाई पड़ता हो, वहां सब कुछ दिखाई पड़ने लगे। चैतन्य का रवींद्रनाथ ने लिखा है कि एक सुबह रास्ते से निकलते वक्त, स्वभाव है, देखने की, जागने की क्षमता; दर्शन की, ज्ञान की वर्षा के दिन थे और रास्ते के किनारे जगह-जगह डबरे हो गए थे | | क्षमता। वह भी भीतरी प्रकाश है। उस प्रकाश में सब कुछ दिखाई 394
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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