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ॐ अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी ,
दौड़े ही नहीं हैं, तो बैठेंगे कैसे?
कार्य-कारण से इतनी मुक्त है कि उसके लिए कोई गणित नहीं इसे हम ऐसा समझें कि एक आदमी दिनभर मेहनत करता है, | बिठाया जा सकता। तो रात गहरी नींद में सो जाता है। नींद उलटी है। दिनभर मेहनत ___ आत्म-साक्षात्कार तो अकस्मात ही होगा। और कभी-कभी ऐसे करता है, रात गहरी नींद में सो जाता है। आप कहते हैं कि मझे नींद क्षणों में हो जाता है, जिनको आप सोच भी नहीं सकते थे कि इस क्यों नहीं आती? आप दिनभर आराम कर रहे हैं। और फिर रात क्षण में और आत्म-साक्षात्कार होगा। लेकिन अगर आप इसका नींद नहीं आती, तो आप सोचते हैं कि मुझे तो और ज्यादा नींद | यह मतलब समझ लें कि साधना करनी जरूरी नहीं है, अकस्मात आनी चाहिए। मैं तो नींद का दिनभर अभ्यास करता हूं! और यह जब होना है, हो जाएगा। तो कभी भी न होगा। साधना जरूरी है। आदमी तो दिनभर मेहनत करता है, नींद के अभ्यास का इसे मौका । साधना जरूरी है आपको तैयार करने के लिए। आत्म-साक्षात्कार ही नहीं मिलता। और मैं दिनभर नींद का अभ्यास करता हूं। आंख | साधना से नहीं आता, लेकिन आप तैयार होते हैं, आप योग्य बनते बंद किए सोफे पर पड़ा ही रहता हूं, करवट बदलता रहता हूं। और हैं, आप पात्र बनते हैं, आप खुलते हैं। और जब आप योग्य और इसको नींद आ जाती है, जिसने दिन में बिलकुल अभ्यास नहीं | पात्र हो जाते हैं, तो आत्म-साक्षात्कार की घटना घट जाती है। किया! और मुझे नींद रात बिलकुल नहीं आती, जो कि दिनभर का इस फर्क को ठीक से खयाल में ले लें। अभ्यास किया है! यह कैसा अन्याय हो रहा है जगत में?
आप परमात्मा को साधना से नहीं ला सकते। वह तो मौजूद है। आपको खयाल नहीं है कि जिसने दिनभर मेहनत की है, वही | | साधना से सिर्फ आप अपनी आंख खोलते हैं। साधना से सिर्फ विश्राम का हकदार हो जाता है। विश्राम मेहनत का फल है। इसका आप अपने को तैयार करते हैं। परमात्मा तो मौजूद है; उसको पाने यह मतलब नहीं है कि आप रात भी मेहनत करते रहें। विश्राम करना का कोई सवाल नहीं है। जरूरी है। लेकिन वह जरूरी तभी है और उपलब्ध भी तभी होता ऐसा समझें कि आप अपने घर में बैठे हैं। सूरज निकल गया है, है, जब उसके पहले श्रम गुजरा हो।
सुबह है। और आप सब तरफ से द्वार-दरवाजे बंद किए अंदर बैठे जो आदमी बुद्ध की तरह छः साल गहरी तपश्चर्या में दौड़ता है, | | हैं। सूरज आपके दरवाजों को तोड़कर भीतर नहीं आएगा। लेकिन वह अगर किसी दिन थककर बैठ जाएगा, तो उसके बैठने का दरवाजे पर उसकी किरणें रुकी रहेंगी। आप चाहें कि जाकर बाहर गुणधर्म अलग है। वह आप जैसा नहीं बैठा है। आप बैठे हुए भी | सूरज की रोशनी को गठरी में बांधकर भीतर ले आएं, तो भी आप चल रहे हैं। आप भी उसी बोधिवृक्ष के नीचे बैठ सकते हैं, मगर न ला सकेंगे। गठरी भीतर आ जाएगी, रोशनी बाहर की बाहर रह आपका मन चलता ही रहेगा; आपका मन योजनाएं बनाता रहेगा। जाएगी। लेकिन आप एक काम कर सकते हैं कि दरवाजे खुले छोड़ सुबह का तारा भी डूब रहा होगा, तब भी आपके भीतर हजार चीजें | दें, और सूरज भीतर चला आएगा। खड़ी होंगी। वहां कोई मौन नहीं हो सकता। जब तक वासना है, । न तो सूरज को जबरदस्ती भीतर लाने का कोई उपाय है। और तब तक मौन नहीं हो सकता।
न सूरज जबरदस्ती अपनी तरफ से भीतर आता है। आप क्या कर बुद्ध की दौड़ से सत्य नहीं मिला, यह ठीक है। लेकिन बुद्ध की | सकते हैं? एक मजेदार बात है। आप सूरज को भीतर तो नहीं ला दौड़ से ही सत्य मिला, यह भी उतना ही ठीक है। इस द्वंद्व को ठीक | सकते, लेकिन बाहर रोक सकते हैं। आप दरवाजा बंद रखें, तो से आप समझ लेंगे, तो इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। | भीतर नहीं आएगा। आप दरवाजा खोल दें, तो भीतर आएगा।
आत्म-साक्षात्कार तो सदा अकस्मात ही होता है। क्योंकि उसका | | ठीक परमात्मा ऐसा ही मौजूद है। और जब तक आप अपने कोई प्रेडिक्शन नहीं हो सकता, कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती कि | विचारों में बंद, अपने मन से घिरे, मुर्दे की तरह हैं, एक कब्र में, कल सुबह ग्यारह बजे आपको आत्म-साक्षात्कार हो जाएगा। | चारों तरफ दीवालों से घिरे हुए एक कारागृह में-वासनाओं का,
आपकी मौत की भविष्यवाणी हो सकती है। आपकी बीमारी की | | विचारों का, स्मृतियों का कारागृह; आशाओं का, अपेक्षाओं का भविष्यवाणी हो सकती है। सफलता-असफलता की भविष्यवाणी | कारागृह-तब तक परमात्मा से आपका मिलन नहीं हो पाता। हो सकती है। आत्म-साक्षात्कार की कोई भविष्यवाणी नहीं हो
| जिस क्षण यह कारागृह आपसे गिर जाता है, जिस क्षण, जैसे वस्त्र सकती। क्योंकि आत्म-साक्षात्कार इतनी अनूठी घटना है और गिर जाएं, और आप नग्न हो गए, ऐसे ये सारे विचार-वासनाओं
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