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ॐ गीता दर्शन भाग-60
इसे ऐसा समझें कि आपको किसी मित्र का नाम भूल गया है। मैं आपसे कहूंगा कि सीढ़ियों पर चढ़ना जरूरी है और फिर और आप बड़ी चेष्टा करते हैं याद करने की। और जितनी चेष्टा | सीढ़ियों को छोड़ देना भी जरूरी है। सीढ़ी पर बिना चढ़े कोई भी करते हैं, उतना ही कुछ याद नहीं आता। और ऐसा भी लगता है कि छत पर नहीं पहुंच सकता। और कोई सीढ़ियों पर ही चढ़ता रहे, बिलकुल जबान पर रखा है। आप कहते भी हैं कि बिलकुल जबान और सीढ़ियों पर ही रुका रहे, तो भी छत पर नहीं पहुंच सकता। पर रखा है। अब जबान पर ही रखा है, तो निकाल क्यों नहीं देते? | सीढ़ियों पर चढ़ना होगा; और एक जगह आएगी, जहां सीढ़ियां लेकिन पकड़ में नहीं आता। और जितनी कोशिश पकड़ने की करते छोड़कर छत पर जाना होगा। हैं, उतना ही बचता है, भागता है। और भीतर कहीं एहसास भी आप कहें कि जिस सीढ़ी पर हम चढ़ रहे थे, उसी पर चढ़ते होता है कि मालूम है। यह भी एहसास होता है कि अभी आ रहेंगे, तो फिर आप छत पर कभी नहीं पहुंच पाएंगे। सीढ़ियों पर जाएगा। और फिर भी पकड़ में नहीं आता।
| चढ़ो भी और सीढ़ियों को छोड़ भी दो। फिर आप थक जाते हैं। फिर आप थककर बगीचे में जाकर गड्डा | | __ आध्यात्मिक साधना सीढ़ियों जैसी है। उस पर चढ़ना भी जरूरी खोदने लगते हैं। या उठाकर अखबार पढ़ने लगते हैं। या सिगरेट है, उससे उतर जाना भी जरूरी है। पीने लगते हैं। या रेडियो खोल देते हैं। या कुछ भी करने लगते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप कोई जप का प्रयोग करते हैं, राम या लेट जाते हैं। और थोड़ी देर में अचानक जैसे कोई बबूले की का जप करते हैं। तो ध्यान रहे, जब तक राम का जप न छूट जाए, तरह वह नाम उठकर आपके ऊपर आ जाता है। और आप कहते | | तब तक राम से मिलन न होगा। लेकिन छोड़ तो वही सकता है, हैं कि देखो, मैं कहता था, जबान पर रखा है। अब आ गया। | जिसने किया हो।
लेकिन इसमें दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। आपने जो कोशिश कुछ नासमझ कहते हैं कि तब तो बिलकुल ठीक ही है; हम की, उसके कारण आया नहीं है। लेकिन अगर आपने कोशिश न अच्छी हालत में ही हैं। छोड़ने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हमने की होती, तो भी न आता। यह जरा जटिल है।
कभी किया ही नहीं। वे सीढ़ी के नीचे खड़ें हैं। छोड़ने वाला सीढ़ी आपने कोशिश की उसके कारण नहीं आया है, क्योंकि कोशिश के ऊपर से छोड़ेगा। उन दोनों के तलों में फर्क है। में तनाव हो जाता है। तनाव के कारण मन संकीर्ण हो जाता है. साधना बद्ध ने छः वर्ष की। बौद्ध चिंतन. बौद्ध धारा निरंतर दरवाजा बंद हो जाता है। आप इतने उत्सक हो जाते हैं लाने के लिए सवाल उठाती रही है कि बद्ध ने छः वर्ष साधना की. तप किया कि उस उत्सुकता के कारण ही उपद्रव पैदा हो जाता है। भीतर सब उस तप से सत्य मिला या नहीं? एक उत्तर है कि उस तप से सत्य तन जाता है। नाम के आने के लिए आपका शिथिल होना जरूरी नहीं मिला। क्योंकि उस तप से नहीं मिला, छः वर्ष की मेहनत से है, ताकि नाम ऊपर आ सके, उसका बबूला आप तक आ जाए। कुछ भी नहीं मिला। मिला तो तब, जब तप छोड़ दिया। तो एक
लेकिन आपने जो चेष्टा की है, अगर वह आप चेष्टा ही न करें, | वर्ग है बौद्धों का, जो कहता है कि बुद्ध को तप से कुछ भी नहीं तो बबूले की आने की कोई जरूरत भी नहीं रह जाती। मिला, इसलिए तप व्यर्थ है।
इसका अर्थ यह हुआ कि चेष्टा करना जरूरी है और फिर चेष्टा लेकिन जो ज्यादा बुद्धिमान वर्ग है, वह कहता है, तप से नहीं छोड़ देना भी जरूरी है। यही आध्यात्मिक साधना की सबसे कठिन | मिला; लेकिन फिर भी जो मिला, वह तप पर आधारित है। वह तप बात है। यहां कोशिश भी करनी पड़ेगी और एक सीमा पर कोशिश के बिना भी नहीं मिलेगा। को छोड़ भी देना पड़ेगा। कोशिश करना जरूरी है और छोड़ देना आप जाकर बैठ जाएं निरंजना नदी के किनारे। वह झाड़ अभी भी जरूरी है।
भी लगा हुआ है। आप वैसे ही जाकर मजे से उसके नीचे बैठ जाएं। ___ इसे हम ऐसा समझें कि आप एक सीढ़ी पर चढ़ते हैं। अगर कोई | सुबह आखिरी तारा अब भी डूबता है। सुबह आप आंख खोल मुझसे पूछे कि क्या सीढ़ियों पर चढ़ने से मैं मंजिल पर पहुंच | लेना। अलार्म की एक घड़ी लगा लेना। ठीक वक्त पर आंख खुल जाऊंगा, छत पर पहुंचा जाऊंगा? या बिना सीढ़ी चढ़े भी छत पर | जाएगी। आप तारे को देख लेना और बुद्ध हो जाना! पहुंचा जा सकता है? तो मेरी वही दिक्कत होगी, जो इस सवाल में आप बुद्ध नहीं हो पाएंगे। वह छः वर्ष की दौड़ इस बैठने के लिए हो रही है।
| जरूरी थी। यह आदमी इतना दौड़ा था, इसलिए बैठ सका। आप
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