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0 अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी
कि आप अंतिम क्षण में कोई ऐसा विचार कर लेंगे, जिसका आपके | | आखिरी हो सकता है। उसका पता तो नहीं है। आखिरी क्षण तो हो जीवन से कोई संबंध नहीं है। वह असंभव है। वह बिलकुल ही | जाएगा, तभी पता चलेगा। लेकिन आप मर चुके होंगे। असंभव है। आप वही विचार करेंगे अंतिम क्षण में, जो आपके पूरे | तो लोग इंतजाम कर लिए हैं कि हम अगर न ले पाएं आखिरी जीवन पर
| क्षण में भगवान का नाम, तो पुरोहित, पंडे, पंडित, कोई दूसरा कान इसलिए बड़ा उपद्रव होता है। इस तरह के वचन पढ़कर हम मन | | में भगवान का नाम ले दे। लोग मर रहे हैं, बेहोश हालत में पड़े हैं में बड़ी शांति और सांत्वना पाते हैं। हम सोचते हैं, क्या हर्ज है, करते और कोई उनके कान में भगवान का नाम ले रहा है। रहो जीवनभर पाप, मरते क्षण में सोच लेंगे कि बुद्ध हो जाना है और | पाप तुमने किए, भगवान का नाम कोई और ले रहा है! अच्छा हो जाएंगे! जब गीता का आश्वासन है, तो बात हो ही जाएगी। होता, तुमने पाप किसी और पर छोड़ दिए होते कि तू कर लेना मेरी
जब आप जिंदगी में बुद्ध होना नहीं सोचते, तो मरने में आप कैसे तरफ से। लेकिन पाप आदमी खुद करता है। जो हम करना चाहते बुद्ध होना सोच लेंगे? सच तो यह है कि जिंदगी में आप वही हैं, वह हम खुद करते हैं। जो हम नहीं करना चाहते, वह हम नौकरों सोचते हैं, जो आप चाहते हैं। क्योंकि जिंदगी अवसर है। मौत तो | | पर टाल देते हैं। कोई अवसर नहीं है। तो मौत के लिए तो आप वही चीजें छोड़ देते | मरते वक्त भगवान का नाम कोई दसरा आपके कान में ले रहा हैं, जो आप वस्तुतः चाहते नहीं। उनको मरने में कर लेंगे। बाकी | है। और आप तो होश में भी नहीं हैं। क्योंकि जो आदमी जिंदगी में जो आपको करना है, वह तो आप जिंदगी में करते हैं। इसलिए हम | । होश नहीं सम्हाल सका, वह मौत में कैसे होश सम्हाल सकेगा? धर्म को टालते जाते हैं, और अधर्म को करते चले जाते हैं। । | जिसने जिंदगी में ध्यान सम्हाला हो, वही आदमी मृत्यु में भी
धर्म कोई करना नहीं चाहता, इसलिए उसे हम पोस्टपोन करते होशपूर्ण हो सकता है। आप जिंदा रहकर होश नहीं सम्हाल सकते, हैं। उसे हम कहते हैं, कर लेंगे बुढ़ापे में अभी क्या जल्दी है? पाप मरते वक्त आप कैसे होश सम्हालेंगे? करने की बड़ी जल्दी है! उसे अभी करना है। वह जवानी में ही हो । इसे समझ लें। क्योंकि मृत्यु की प्रक्रिया में आपके भीतर जितने सकता है। धर्म बुढ़ापे में कर लेंगे। और अगर कोई जवान आदमी | | जहर हैं, वे सब आपकी चेतना को घेर लेंगे और छा जाएंगे। मृत्यु धार्मिक होने लगे या उत्सुक हो जाए, तो बुद्धिमान लोग उसे | मूर्छा में घटित होगी। कभी लाख में एकाध आदमी होश में मरता समझाते हैं कि अभी तेरी उम्र नहीं है। अभी अधर्म कर। उनका | है, कभी लाख में एकाध आदमी। और वह वही आदमी है, जिसने मतलब यह है कि अभी अधर्म की उम्र है। जब तक ताकत है, तब | जीवनभर ध्यान सम्हाला हो। वह होश में मरेगा। बाकी आप तो तक अधर्म कर लो। जब ताकत न बचे, तो धर्म कर लेना। | बेहोश ही मरेंगे।
लेकिन ताकत अधर्म के लिए जरूरी है, धर्म के लिए जरूरी नहीं | | आप जीए बेहोशी में हैं, तो मृत्यु तो बहुत बड़ा आपरेशन है। है? जीवन अधर्म के लिए जरूरी है; शक्ति अधर्म के लिए जरूरी | | बड़े से बड़ा आपरेशन है। कोई चिकित्सक, कोई सर्जन इतना बड़ा है; तो आप समझते हैं, धर्म कोई नपुंसकों का काम है कि उसके | आपरेशन नहीं करता। लिए कोई शक्ति की जरूरत नहीं है!
आपरेशन सर्जन को करना पड़ता है, तो आपको बेहोश कर देता ध्यान रहे, जिस शक्ति से आप पाप करते हैं, वही शक्ति पुण्य | है। क्योंकि असह्य होगी पीड़ा। आपका हाथ काटना है, तो पहले बनती है। और जब शक्ति हाथ में नहीं रह जाती, तो न तो आप | आपको बेहोश कर देता है। आपकी एक हड़ी निकालनी है शरीर पाप कर सकते हैं, न आप पुण्य कर सकते हैं। जिस दिन आप पाप | | से, तो पहले आपको बेहोश कर देता है। जब आप बिलकुल नहीं कर सकते, उस दिन आपके पास पुण्य करने की शक्ति भी | | बेहोश होते हैं, तब हड्डी निकाल पाता है। नहीं रह गई।
___ मृत्यु तो सबसे बड़ी सर्जरी है, क्योंकि आपकी पूरी आत्मा को लोग टालते चले जाते हैं, बुढ़ापे में, बढ़ापे में...। लेकिन आपके परे शरीर से अलग
तो आपको बुढ़ापे में भी मन नहीं भरता। तो लोग कहते हैं, मरते क्षण, आखिरी | बेहोश कर ही देती है। बिना बेहोश किए आप मारे नहीं जा सकते। क्षण भगवान का नाम ले लेंगे। वह भी खुद नहीं ले पाते, क्योंकि | आप बहुत उपद्रव खड़ा करेंगे। आखिरी क्षण कोई तय तो नहीं है, कब होगा। इसके बाद का क्षण । शरीर में ग्रंथियां हैं, जिनमें जहर है। साधारण रूप से भी उन
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