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00 गीता दर्शन भाग-6600
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।। | जो वासना होगी, वही दूसरे जीवन का कारण बन जाएगी। क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ।। ३३ ।। __ लेकिन अगर आपने जीवनभर पाप किया है, तो अंतिम क्षण में क्षेत्रक्षेत्रजयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
| आप बुद्ध होने का विचार कर नहीं सकते। वह असंभव है। अंतिम भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम् ।। ३४।। | विचार तो आपके पूरे जीवन का निचोड़ होगा। अंतिम विचार में हे अर्जुन, जिस प्रकार एक ही सूर्य इस संपूर्ण लोक को सुविधा नहीं है आपके हाथ में कि आप कोई भी विचार कर लें। प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा संपूर्ण क्षेत्र को | मरते क्षण में आप धोखा नहीं दे सकते। समय भी नहीं है धोखा देने प्रकाशित करता है।
के लिए। मरते क्षण में तो आपका पूरा जीवन निचुड़कर आपकी इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्र के भेद को तथा विकारयुक्त वासना बनता है। आप वासना कर नहीं सकते मरते क्षण में। प्रकृति से छूटने के उपाय को जो पुरुष ज्ञान-नेत्रों के द्वारा | तो जिस आदमी ने जीवनभर पाप किया हो, मरते क्षण में वह तत्व से जानते हैं, वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त | महापापी बनने की ही वासना कर सकता है। वह आपके हाथ में होते हैं।
| उपाय नहीं है कि आप मरते वक्त बुद्ध बनने का विचार कर लें। बुद्ध बनने का विचार तो तभी आ सकता है जब जीवनभर बुद्ध
बनने की चेष्टा रही हो। क्योंकि मरते क्षण में आपका जीवन पूरा पहले कुछ प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है, गीता में कहा का पूरा निचुड़कर आखिरी वासना बन जाता है। वह बीज है। उसी है कि जो मनुष्य मरते समय जैसी ही चाह करे, वैसा | बीज से फिर नए जन्म की शुरुआत होगी। ही वह दूसरा जन्म पा सकता है। तो यदि एक मनुष्य | | इसे ऐसा समझें। एक बीज हम बोते हैं; वृक्ष बनता है। फूल उसका सारा जीवन पाप करने में ही गंवा दिया हो | खिलते हैं। फूल में फिर बीज लगते हैं। उस बीज में उसी वृक्ष का
और मरते समय दूसरे जन्म में महावीर और बुद्ध जैसा | | प्राण फिर से समाविष्ट हो जाता है। वह बीज नए वृक्ष का जन्म बनने की चाह करे, तो क्या वह आदमी दूसरे जन्म बनेगा। में महावीर और बुद्ध जैसा बन सकता है?
तो आपने जीवनभर जो किया है, जो सोचा है, जिस भांति आप रहे हैं, वह सब निचुड़कर आपकी अंतिम वासना का बीज बन जाता
है। वह आपके हाथ में नहीं है। त श्चित ही, मरते क्षण की अंतिम चाह दूसरे जीवन की जिस आदमी ने जीवनभर धन की चिंता की हो, मरते वक्त वह UI प्रथम घटना बन जाती है। जो इस जीवन में अंतिम है, धन की ही चिंता करेगा। थोड़ा समझें, इससे विपरीत असंभव है। वह दूसरे जीवन में प्रथम बन जाता है।
क्योंकि जिसके मन पर धन का विचार ही प्रभावी रहा हो, मरते इसे ऐसा समझें। रात आप जब सोते हैं, तो जो रात सोते समय | | समय जीवनभर का अनुभव, जीवनभर की कल्पना, जीवनभर की आपका आखिरी विचार होता है, वह सुबह जागते समय आपका | | योजना, जीवनभर के स्वप्न, वे सब धक्का देंगे कि वह धन के पहला विचार बन जाता है। इसे आप प्रयोग करके जान सकते हैं। | संबंध में अंतिम विचार कर ले। इसलिए धन को पकड़ने वाला रात आखिरी विचार, जब आपकी नींद उतर रही हो, जो आपके | | अंतिम समय में धन को ही पकड़े हुए मरेगा। चित्त पर हो, उसे खयाल कर लें। तो सुबह आपको जैसे ही पता | लोककथाएं हैं कि अगर कृपण मर जाता है, तो अपनी तिजोड़ी लगेगा कि में जाग गया हूं, वही विचार पहला विचार होगा। | पर सांप बनकर बैठ जाता है। या अपने खजाने पर सांप बनकर बैठ
मृत्यु महानिद्रा है, बड़ी नींद है। इसी शरीर में नहीं जागते हैं, फिर | | जाता है। वे कथाएं सार्थक हैं। वे इस बात की खबर हैं कि अंतिम दसरे शरीर में जागते हैं। लेकिन इस जीवन का जो अंतिम विचार. | क्षण में आप अपने जीवन की पूरी की पूरी निचुड़ी हुई अवस्था को अंतिम वासना है, वही दूसरे जीवन का प्रथम विचार और प्रथम | बीज बना लेंगे। वासना बन जाती है।
तो गीता ठीक कहती है कि जो अंतिम क्षण में विचार होगा, वही इसलिए गीता ठीक कहती है कि अंतिम क्षण में जो विचार होगा, आपके नए जन्म की शुरुआत होगी। लेकिन आप यह मत सोचना
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