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गीता दर्शन भाग-60
ग्रंथियों का उपयोग होता है। जब आप क्रोध से भर जाते हैं, तो | | तो जिंदगीभर जो आपने अपने अचेतन मन में बेहोश वासनाएं आपने खयाल किया, क्रोध से भरा हुआ आदमी अपने से ताकतवर पाली हैं, वे ही आपका बीज बनेंगी। उन्हीं के सहारे आप नई यात्रा आदमी को उठाकर फेंक देता है। उसकी ग्रंथियां जहर छोड़ देती हैं, पर निकल जाएंगे। न तो आपको मृत्यु की कोई याद है, न आपको जिनसे वह पागल हो जाता है। अगर आप क्रोध में हैं, तो आप जन्म की कोई याद है। आपको याद है जब आपका जन्म हुआ? इतनी बड़ी चट्टान को सरका सकते हैं, जो आप क्रोध में न होते, कुछ भी याद नहीं है। तो कभी आपसे सरकने वाली नहीं थी। आपकी ग्रंथियां जहर छोड़ मां के पेट में नौ महीने आप बेहोश थे। वह भी बेहोशी जरूरी है। देती हैं। उस जहर के नशे में आप कुछ भी कर सकते हैं। नहीं तो बच्चे का जीना मुश्किल हो जाए। नौ महीने कारागृह हो जाए,
क्रोध में, अब तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि जहर छूटता अगर होश हो। अगर बच्चे को होश हो, तो मां के पेट में बहुत कष्ट है। उस जहर के प्रभाव में ही कोई हत्या कर सकता है। भीतर | हो जाए। वह कष्ट झेलने योग्य नहीं है, इसलिए बेहोश थे। ग्रंथियां हैं, जो आपको मूर्छित करती हैं। जब आप कामवासना से पैदा होने के बाद भी आपको कुछ पता नहीं है, क्या हुआ। जब भरकर पागल होते हैं, तब भी आपकी ग्रंथियां एक विषाक्त द्रव्य आप गर्भ से बाहर आ रहे थे, आपको कुछ भी पता है ? अगर आप छोड़ देती हैं। आप होश में नहीं होते। क्योंकि होश में आकर तो | बहुत कोशिश करेंगे पीछे लौटने की, तो तीन साल की उम्र, दो आप पछताते हैं। बड़ा पश्चात्ताप करते हैं कि फिर वही भूल की। | साल की उम्र; बहुत जो जान सकते हैं, स्मृति कर सकते हैं, वे भी
और आपने ही की है। और पहले भी बहुत बार करके पछताए हैं। | दो साल से पीछे नहीं हट सकते हैं। दो साल तक आप ठीक होश फिर कैसे हो गई? जरूर आप होश में नहीं थे।
| में नहीं थे। आदमी जो भी भूलें करता है, वह बेहोशी में करता है। मरने में बेहोशी, गर्भ में बेहोशी, जन्म में बेहोशी, जन्म के बाद मौत के क्षण में आपके शरीर की सारी विषाक्त ग्रंथियां पूरा विष भी बेहोशी। और जिसको आप जीवन कहते हैं, वह भी छोड़ देती हैं। आपकी पूरी चेतना धुएं से भर जाती है। आपको कुछ करीब-करीब बेहोश है। उसमें भी कुछ होश नहीं है। मरते क्षण में होश नहीं रहता। जब आपका शरीर आत्मा से अलग होता है, तो तो वही व्यक्ति अपनी वासना को होशपूर्वक निर्धारित कर सकता आप उतने ही बेहोश होते हैं, जितना सर्जरी में कोई मरीज बेहोश है, जिसने जीवनभर ध्यान साधा हो। ' होता है। उससे ज्यादा।
इसे हम ऐसा समझें कि छोटी-मोटी बात में भी तो आपका वश मृत्यु के पास अपना एनेस्थेसिया है। इसलिए आप होश में मर नहीं है, अपने जन्म को आप निर्धारित करने में क्या करेंगे! अगर नहीं सकते; आप बेहोशी में मरेंगे। इसी कारण तो आपको दूसरे | मैं आपसे कहूं कि चौबीस घंटे आप अशांत मत होना; इस पर भी जन्म में याद नहीं रह जाता पिछला जन्म। क्योंकि जो बेहोशी में घटा तो आपकी मालकियत नहीं है। आप कहेंगे, अशांति आ जाएगी, है, उसकी याददाश्त नहीं हो सकती।
तो मैं क्या करूंगा? कोई गाली दे देगा, तो मैं क्या करूंगा? हम बहुत बार मर चुके हैं। हजार बार, लाख बार मर चुके हैं। चौबीस घंटे आपसे कहा जाए, अशांत मत होना, तो इसकी भी और हमें कछ भी याद नहीं कि हम कभी भी मरे हों। हमें कोई याद आपकी मालकियत नहीं है। क्षद्र-सी बात है। अति क्षद्र बात है। नहीं है मृत्यु की पिछली। और चूंकि मृत्यु की याद नहीं है, इसलिए | लेकिन आप सोचते हैं कि पूरे जीवन को, नए जीवन को मैं अपनी बीच में एक गैप, एक अंतराल हो गया है। इसलिए पिछले जन्म आकांक्षा के अनुकूल ढाल लूंगा। की कोई भी याद नहीं है।
| एक मन की छोटी-सी तरंग भी आप सम्हाल नहीं सकते। अगर जो आदमी होश में मरता है, उसे दूसरे जन्म में याद रहेगा | | आपसे कहा जाए कि चौबीस घंटे आपके मन में यह विचार न पिछला जन्म। आपको किसी को भी याद नहीं है।
आए, उस विचार को भी आने से आप रोक नहीं सकते। इतनी तो तो जो होश में ही नहीं मर सकते, तो आप क्या करिएगा, क्या | गुलामी है। और सोचते हैं, अंतिम क्षण में इतनी मालकियत दिखा सोचिएगा मरते वक्त? मौत तो घटेगी बेहोशी में; मरने के पहले | | देंगे कि पूरे जीवन की दिशा निर्धारित करना अपने हाथ में होगा! आप बेहोश हो गए होंगे। इसलिए आखिरी विचार तो बेहोश होगा, | अपने हाथ से जरा भी तो कुछ निर्णय नहीं हो पाता। जरा-सा भी होश वाला नहीं होगा।
| संकल्प पूरा नहीं होता। सब जगह हारे हुए हैं। लेकिन इस तरह के
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