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ॐ गीता दर्शन भाग-60
मन हमारा, यह कैसे भीतर सब शुद्ध हो सकता है? होगी, तो मैं आऊंगा। तू तो बस, इतना ही भाव कर, एक ही भाव
बाहर के आकाश को देखें! सब कुछ घटित हो रहा है और बाहर | | कि मैं भैंस हूं। का आकाश शुद्ध है। भीतर भी एक आकाश है, ठीक बाहर के उस युवक ने साधना करनी शुरू की। एक दिन बीता, दो दिन आकाश जैसा। बीच में सब घटित हो रहा है, वह भी भीतर शुद्ध है। | बीता, तीसरे दिन उसकी गुफा से भैंस की आवाज आनी शुरू हो
इस शुद्धता का स्मरण भी आ जाए, तो आपकी जिंदगी में एक गई। नागार्जुन ने अपने शिष्यों से कहा कि अब चलने का वक्त आ नया आयाम खुल जाएगा। आप दूसरे आदमी होने शुरू हो जाएंगे। | गया। अब चलो, देखो, क्या हालत है। फिर आप जो भी कर रहे हैं, करते रहें, लेकिन करने से रस खो| वे सब वहां अंदर गए। वह युवक दरवाजे के पास ही सिर जाएगा। फिर जो भी कर रहे हैं, करते रहें, लेकिन करने में से अकड़ झुकाए खड़ा था। दरवाजा काफी बड़ा था। बाहर निकल सकता खो जाएगी। फिर करना ऐसे हो जाएगा, जैसे सांप तो निकल गया था। लेकिन सिर झुकाए खड़ा था जैसे कोई अड़चन हो। भैंस की और केवल सांप का ऊपर का खोल पड़ा रह गया है। जैसी रस्सी | | आवाज कर रहा था। नागार्जुन ने कहा कि बाहर आ जाओ। उसने तो जल गई, लेकिन सिर्फ राख रस्सी के रूप की रह गई है। । | कहा कि बाहर कैसे आ जाऊं! मेरे सींग दरवाजे में अड़ रहे हैं। __ अगर आपको यह खयाल आना शुरू हो जाए कि मैं अकर्ता हूं, | आंखें उसकी बंद हैं। तो कर्म जारी रहेगा, जली हुई रस्सी की भांति, जिसमें अब रस्सी | नागार्जन के बाकी शिष्य तो बहत हैरान हए। उन्होंने कहा कि रही नहीं, सिर्फ राख है। सिर्फ रूप रह गया है पुराना। कर्म चलता | | सींग दिखाई तो पड़ते नहीं! नागार्जुन ने कहा कि जो नहीं दिखाई रहेगा अपने तल पर, और आप हटते जाएंगे। जैसे-जैसे कर्म से | | पड़ता, वह भी अड़ सकता है। जो नहीं है, वह भी अड़ सकता है। हटेंगे, वैसे-वैसे लगेगा कि मैं अलिप्त भी हूं। कुछ मुझे लिप्त नहीं | | अड़ने के लिए होना जरूरी नहीं है, सिर्फ भाव होना जरूरी है। कर सकता।
| इसका भाव पूरा है। एक घटना आपसे कहूं। एक बौद्ध भिक्षु हुआ बहुत अनूठा, | नागार्जुन ने उसे हिलाया और कहा, आंख खोल। उसने नागार्जुन। नागार्जुन के पास एक युवक आया। और उस युवक ने | घबड़ाकर आंख खोली, जैसे किसी गहरी नींद से उठा हो। तीन दिन कहा कि मैं भी चाहता हूं कि जान लूं उसको, जो कभी लिप्त नहीं की लंबी नींद, आत्म-सम्मोहन, सेल्फ हिप्नोसिस, तीन दिन तक होता। जान लूं उसको, जो अकर्ता है। जान लूं उसको, जो परम | निरंतर कि मैं भैंस हूं। जैसे बड़ी गहरी नींद से जगा हो। एकदम तो आनंदित है, सच्चिदानंदघन है। कोई रास्ता?
पहचान भी न सका कि क्या मामला है। नागार्जुन बहुत अपने किस्म का अनूठा गुरु था। उसने कहा कि | नागार्जुन ने कहा कि घबड़ा मत। कहां हैं तेरे सींग? उसने सिर पहले मैं तुझसे पूछता हूं कि तुझे किसी चीज से लगाव, कोई प्रेम तो | | पर हाथ फेरा। उसने कहा कि नहीं, सींग तो नहीं हैं। लेकिन अभी नहीं है? उस युवक ने कहा कि कोई ज्यादा तो नहीं है, सिर्फ एक | अड़ रहे थे। उसने कहा, वह भी मुझे खयाल है। मैं तीन दिन से भैंस है मेरे पास, पर उससे मुझे लगाव है। तो नागार्जुन ने कहा कि निकलने की कोशिश कर रहा हूं। और तुमने कहा था, निकलना बस इतना काफी है। इससे काम हो जाएगा। साधना शुरू हो जाएगी। मत। मैं तीन दिन से कोशिश करके भी निकल नहीं पा रहा हूं। वे __ उस युवक ने कहा कि भैंस से और साधना का क्या संबंध? और | | सींग अड़ जाते हैं बीच में। बड़ी तकलीफ भी होती है। टकराता हूं; मैं तो डर भी रहा था कि यह अपना लगाव बताऊं भी कि नहीं! कोई | | तकलीफ होती है। स्त्री से हो, किसी मित्र से हो, तो भी कुछ समझ में आता है। यह | | तो नागार्जुन ने कहा, कहां हैं सींग? कहां है तेरा भैंस होना? भैंस वाला लगाव! मैंने सोचा था कि इसकी तो चर्चा ही नहीं| नागार्जुन ने कहा कि तुझे अब मैं कुछ और सिखाऊं कि बात तू उठेगी। लेकिन आपने पूछा...।
| सीख गया? उसने कहा, मैं बात सीख गया। तीन दिन का मुझे नागार्जुन ने कहा, बस, तू एक काम कर। यह सामने मेरी गुफा | | मौका और दे दें। के जो दूसरी गुफा है, उसमें तू चला जा; और एक ही भाव कर कि नागार्जुन और उसके शिष्य वापस लौट आए। शिष्यों ने कहा, मैं भैंस है। जो तेरा प्रेम है, उसको तू आरोपित कर। बस, तू अपने | | हम कुछ समझे नहीं। यह क्या वार्तालाप हुआ? नागार्जुन ने कहा, को भैंस का रूप बना ले। और तू लौटकर मत आना। जब जरूरत | | तीन दिन बाद!
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