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साधना और समझ
तीन दिन तक वह युवक फिर उस कोठरी में बंद था । और जैसे तीन दिन उसने अपने को भैंस होना स्वीकार कर के भैंस बना लिया था, वैसे तीन दिन उसने अस्वीकार किया कि मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं। और तीन दिन बाद जब नागार्जुन और उसके शिष्य वहां पहुंचे, तो वह जो व्यक्ति उन्होंने देखा था, वहां सिर्फ रस्सी की राख रह गई थी, जली हुई ।
उस व्यक्ति ने आंख खोली और नागार्जुन ने अपने शिष्यों से कहा, इसकी आंखों में झांको। उन आंखों में जैसे गहरा शून्य था । और नागार्जुन ने पूछा कि अब तुम कौन हो ? तो उस व्यक्ति ने कहा कि सिर्फ आकाश । अब मैं नहीं हूं। सब समाप्त हो गया। और जो मैं चाहता था जानना, वह मैंने जान लिया ! और जो मैं चाहता था होना, वह मैं हो गया हूं।
जो भी आप सोच रहे हैं कि आप हैं, यह आपकी मान्यता है। यह आटो - हिप्नोसिस है। यह आत्म सम्मोहन है। और यह सम्मोहन इतना गहरा है, बचपन से डाला जाता है, कि इससे आपको खयाल भी नहीं है कभी कि यह अपनी ही मान्यता है, जो 'हम अपने चारों तरफ खड़ी कर लिए हैं।
आपका व्यक्तित्व आपकी मान्यता है। इसलिए बहुत मजे की घटनाएं घटती हैं। अगर आप दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों का अध्ययन करें, तो आप चकित हो जाएंगे।
कुछ ऐसी कौमें हैं, जो मानती हैं, पुरुष कमजोर है और स्त्री ताकतवर है। वहां पुरुष कमजोर हो गया है और स्त्री ताकतवर हो गई है। जिन कौमों की ऐसी धारणा है कि पुरुष कमजोर है, वहां पुरुष कमजोर है । और स्त्री ताकतवर है, तो स्त्री ताकतवर है। वहां मर्दाना होने का कोई मतलब नहीं है। वहां जनाना होने की शान है। और वहां अगर कोई मर्द ताकतवर होता है, तो लोग कहते हैं कि क्या जनाना मर्द है! क्या शानदार मर्द है। ठीक औरत जैसा।
आप यह मत सोचना की औरत कमजोर है। औरत का कमजोर हा एक मान्यता है ।
आप चकित होंगे जानकर कि अमेजान में एक छोटी-सी कौम है। जब बच्चा होता है किसी स्त्री को, तो पति को भी प्रसव की पीड़ा होती है। एक खाट पर पड़ती है स्त्री, दूसरी खाट पर लेटता है पति। और दोनों तड़पते हैं। आप कहेंगे, यह पति बनता होगा। क्योंकि आखिर इधर भी तो इतने बच्चे पैदा होते हैं !
नहीं; पति बनता बिलकुल नहीं। और जब पहली दफा ईसाई मिशनरियों ने यह चमत्कार देखा, तो वे बड़े हैरान हुए कि ये पति
भी क्या ढोंग कर रहे हैं ! पति को कहीं प्रसव पीड़ा होती है ! पत्नी को बच्चा हो रहा है, तुम क्यों तकलीफ पा रहे हो ? और पत्नी से भी ज्यादा शोरगुल पति मचाता है, क्योंकि पति पति है। पत्नी तो थोड़ा-बहुत मचाती है। पति बहुत उछल-कूद करता है। गिर- गिर पड़ता है, रोता है, पीटता है। जब तक बच्चा नहीं हो जाता, तब तक तकलीफ पाता है । बच्चा होते ही से वह बेहोश होकर गिर जाता है।
तो पादरियों ने समझा कि यह भी एक खेल है। इन्होंने बना रखा है। बाकी इसमें कोई हो तो नहीं सकती सचाई। तो जब चिकित्सकों ने जांच की, तो उन्होंने पाया कि यह बात सच नहीं है। दर्द होता है। तकलीफ होती है। पेट में बहुत उथल-पुथल मच जाती है, जैसे बच्चा होने वाला हो । हजारों साल की उनकी मान्यता है कि जब दोनों का ही बच्चा है, तो दोनों को तकलीफ होगी।
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और आप यह भी जानकर हैरान होंगे कि ऐसी भी कौमें हैं, इस मुल्क में भी ऐसी ग्रामीण और आदिवासी कौमें हैं, जहां स्त्री को बच्चा बिना तकलीफ के होता है । जैसे गाय को होता है, ऐसे स्त्री को होता है। वह जंगल में काम कर रही है, खेत में काम कर रही है, बच्चा हो जाता है। बच्चे को उठाकर खुद ही अपनी टोकरी में रखकर वृक्ष के नीचे रख देती है, और फिर काम करना शुरू कर देती है।
हमारी स्त्रियां सोच भी नहीं सकतीं कि खुद को बच्चा हो, न नर्स हो, न अस्पताल हो, न डाक्टर हो; और खुद ही को बच्चा हो, और उठाकर टोकरी में रखकर और काम शुरू ! काम में कोई अंतराल | ही नहीं पड़ता । वह भी मान्यता है। स्त्रियों को जो इतनी तकलीफ हो रही है, वह भी मान्यता है। स्त्रियों को तकलीफ न हो, वह भी मान्यता है।
लोझेन करके एक फ्रेंच चिकित्सक है, उसने एक लाख स्त्रियों को बिना दर्द के प्रसव करवाया है। और सिर्फ करता इतना ही है कि वह उनको कहता है कि दर्द होता ही नहीं। यह समझाता है | पहले, दर्द तुम्हारी भ्रांति है । उनको कान में मंत्र डालता है कि दर्द होता ही नहीं । सम्मोहित करता है; समझा देता है। एक लाख स्त्रियां बिना दर्द के...।
लोन का शिष्य है, वह और एक कदम आगे बढ़ गया है। वह कहता है कि दर्द की तो बात ही गलत है, जब बच्चा पैदा होता है, तो स्त्री के जीवन में सबसे बड़ा सुख होता है। और उसने कोई पांच सौ स्त्रियों को सुख करवाकर भी बता दिया। वे स्त्रियां कहती हैं कि