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________________ गीता दर्शन भाग-60 लोग इससे उलटा काम करने लगते हैं। वे कोशिश करते हैं कि | लेकिन कष्ट आपसे दूर होंगे। आप कष्टों से दूर होंगे। दोनों के उनको कष्ट भी न हो। कष्ट न हो, तो उसकी तरकीब दूसरी है। बीच एक फासला, एक डिस्टेंस होगा। और आप देखने वाले होंगे। उसकी तरकीब है, शरीर को धीरे-धीरे जड़ बनाना। चैतन्य को | | आप भोक्ता नहीं होंगे। बस, साक्षी जग जाए और भोक्ता खो जाए। सजग नहीं करना, साक्षी को नहीं जगाना, शरीर को जड़ बनाना। ___ तो आप यह मत सोचना कि जब कृष्ण के पैर में किसी ने तीर अगर आप काशी जाते हैं, तो वहां आपको कांटों पर सोए हुए मार दिया, तो उन्हें कोई कष्ट न हुआ होगा। आपसे बहुत न जाएंगे। आप बडे चकित होंगे। आपको लगेगा. बेचारे हआ होगा। क्योंकि कष्ण जैसा संवेदनशील आदमी खोजना बहत कितने ज्ञान को उपलब्ध लोग! कैसा परम ज्ञान उपलब्ध हो गया। | मुश्किल है। कृष्ण कोई जड़ व्यक्ति नहीं थे, नहीं तो उनके होंठों से कि कांटों पर पड़े हैं और कोई दुख नहीं हो रहा है! | ऐसी बांसुरी और ऐसे गीत पैदा नहीं हो सकते थे। बहुत कोमल, ___ कोई ज्ञान को उपलब्ध होकर कांटों पर पड़ने की जरूरत नहीं है।। | बहुत संवेदनशील, बहुत रसपूर्ण थे। लेकिन कांटों पर पड़ने का अभ्यास कर लिया जाता है। अभ्यास | | तो जिसके होंठों से बांसुरी पर ऐसे गीत पैदा हुए और जिसके कर लेने के बाद कोई कष्ट नहीं होता है, क्योंकि शरीर जड़ हो जाता | शरीर की कोमलता और सौंदर्य ने न मालूम कितने लोगों को है। अगर आप एक ही जगह रोज सुई चुभाते रहें, तो आज जितनी आकर्षित किया और प्रेम में गिरा लिया, आप यह मत सोचना कि तकलीफ होगी, कल कम होगी, परसों और कम होगी। आप रोज | जब उसके पैर में तीर चुभा होगा, तो उसे कष्ट नहीं हुआ होगा। अभ्यास करते रहें। एक दो महीने बाद आप सुई चुभाएंगे और | कष्ट तो पूरा होगा। आपसे बहुत ज्यादा होगा। लेकिन दुख बिलकुल पता नहीं चलेगी। तो आप कोई ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो | बिलकुल नहीं होगा। वह देखता रहेगा, जैसे किसी और के पैर में गए, सिर्फ दो महीने में आपने शरीर को जड़ कर लिया। उस जड़ता | तीर चुभा हो, ऐसा ही वह इसे भी देखता रहेगा। भीतर कुछ भी के कारण अब आपको कष्ट भी नहीं होता। हलचल न होगी। भीतर जो थिर था, वह थिर ही रहेगा। भीतर जो ध्यान रहे, दुख न होना तो एक क्रांतिकारी घटना है। कष्ट न | | चेतना जैसी थी, वैसी ही रहेगी। इस तीर से शरीर में फर्क पड़ेगा। होना, शरीर को मुर्दा बना लेने का प्रयोग है। | शरीर खबर देगा, मन के तंतु कंपेंगे। मन तक खबर पहुंचेगी। तो आप चाहें तो शरीर को मुर्दा बना ले सकते हैं। बहुत से उपाय | लेकिन चेतना अलिप्त, असंग, निर्दोष, कुंवारी ही बनी रहेगी। हैं, जिनसे शरीर जड़ हो जाता है। उसकी सेंसिटिविटी, संवेदना कम यह हमारे खयाल में न होने से बड़ा उपद्रव हुआ है। इसलिए हम हो जाती है। संवेदना कम हो जाती है, तो कष्ट नहीं होता। कष्ट | जड़ हो गए लोगों को आध्यात्मिक समझते हैं। और जड़ता पैदा कर नहीं होता, तो दुख आपको होने का कोई कारण नहीं रहा। क्योंकि लेने में न तो कोई कुशलता है, न कोई बड़े गुण की बात है। इसलिए दुख होने के लिए कष्ट का होना जरूरी था। लेकिन आपने कष्ट | अक्सर बहुत बुद्धिहीन लोग भी आध्यात्मिक होने की तरह पूजे का दरवाजा बंद कर दिया, तो अब दुख होने का कोई कारण नहीं | जाते हैं। वे कोई भी जड़ता का काम कर लें। रहा। लेकिन आप जरा भी नहीं बदले हैं। आप वही के वही हैं। ___ एक गांव से मैं गुजरा। एक आदमी दस वर्षों से खड़े हुए हैं। आपकी चेतना नहीं बदली है। अगर आपको कष्ट पहुंचाया जाए। | और कोई गुण नहीं है, बस खड़े हैं। वे खड़ेश्री बाबा हो गए हैं! नए ढंग से, तो आपको दुख होगा। क्योंकि भीतर कोई साक्षी पैदा | बस लोग उनके चरणों पर सिर रख रहे हैं। यह बड़ी भारी बात हो नहीं हो गया है। | गई कि वे दस साल से खड़े हैं। रात भी वे दोनों हाथों का लकड़ियों ___ यह धोखा है अध्यात्म का। शरीर को जड़ बना लेना, धोखा है। | से सहारा लेकर सो जाते हैं। उनके पैर हाथीपांव हो गए हैं। सारा अध्यात्म का। चैतन्य को और चैतन्य कर लेना असली अध्यात्म | खून शरीर का पैरों में उतर गया है। लोग समझ रहे हैं कि कोई है। लेकिन जितना आप चैतन्य को और चैतन्य करेंगे, और साक्षी | अध्यात्म घट गया है। बनेंगे, उससे आपका कष्ट से छुटकारा नहीं हो जाएगा। सच तो | मैंने उनसे कहा कि खड़ेश्री बाबा को एक दफा बैठेश्री बाबा यह है, आपको बहुत-से नए कष्ट पता चलने लगेंगे, जो आपको | | बनाकर भी तो देखो! अब वे बैठ भी नहीं सकते। सारा पैर जड़ हो पहले कभी पता नहीं चले थे। क्योंकि पहले आप जड़ थे। अब आप गया है। अब तुम बिठाना भी चाहो, तो बिठाने का कोई उपाय नहीं और संवेदनशील हो रहे हैं। आपको और कष्टों का पता चलेगा।। है। यह शरीर की विकृति और कुरूपता है। इसको अध्यात्म से क्या 376
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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