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साधना और समझ
लेकिन ज्ञानी न तो रो रहा है, न धो रहा है, न चिल्ला रहा है, न आना बंद करते हैं। कोई धुआं है उसके भीतर। उसका मन तो पूरा, जो हो रहा है, उसे । इस बीच महीनेभर में जो कष्ट की महान घटना घटी थी, वह जान रहा है। वह कष्ट को उसकी पूर्णता में जानेगा। | आपको दिखाई नहीं पड़ती। आप इस रोने की मूर्छा में सब
आप कष्ट को पूर्णता में नहीं जान पाते हैं, क्योंकि दुख की छाया | विसर्जित कर जाते हैं। कष्ट को ढांक लेती है। शायद हमने इसीलिए दुख में डूब जाना | __अगर आप साक्षी-भाव से बैठें, तो आपको लगेगा, पत्नी ही आसान समझा है। वह कष्ट से बचने का एक उपाय है। | नहीं मर रही है, आप भी मर रहे हैं। जब भी कोई प्रिय मरता है, तो
समझें, आपके घर में कोई मर गया; पत्नी मर गई। आप रोएं | | आप भी मरते हैं। क्योंकि आपका शरीर उससे न मालूम मत, साक्षी-भाव से बैठे रहें, तो आपको कष्ट का पूरा अनुभव | | कितने-कितने रूपों में जुड़ गया था। आप एक हो गए थे। आपका होगा। वह आपके रोएं-रोएं में अनुभव होगा। आपके रग-रग में | | कुछ टूट रहा है अंग, हाथ-पैर कट रहे हैं आपके। वह पूरा कष्ट अनुभव होगा। आपके एक-एक कोष्ठ में वह पीड़ा अनुभव होगी। आपको अनुभव होगा। क्योंकि पत्नी का मरना सिर्फ पत्नी का मरना नहीं है, आपका कुछ तब आपको बड़ी चीजें साफ होंगी। तब आपको यह भी पता अनिवार्य हिस्सा भी साथ में मर गया।
चलेगा कि पत्नी के मरने से कष्ट नहीं हो रहा है। पत्नी के साथ पत्नी और आप अगर चालीस साल साथ रहे थे, तो बहुत दूर | | जो मोह था, उस मोह के टूटने से कष्ट हो रहा है। यह सवाल तक एक हो गए थे। आपके दोनों के शरीर ने बहुत तरह की एकता पत्नी के मरने का नहीं है। चूंकि मैं भी मर रहा हूं! उसके साथ जानी थी। वह एकता एक-दूसरे के शरीर में व्याप्त हो गई थी। जब | जुड़ा था, अब मेरा एक हिस्सा टूट जाएगा सदा के लिए और पत्नी मर रही है, तो सिर्फ पत्नी का शरीर नहीं मर रहा है, आपके | | खाली हो जाएगा, जिसको शायद भरना संभव नहीं होगा। उससे शरीर में भी पत्नी के शरीर का जो अनुदान था, वह बिखरेगा, और | | दुख, उससे कष्ट हो रहा है। विनष्ट होगा। वह जाएगा। बड़ा कष्ट होगा। रोएं-रोएं, रग-रग में | लेकिन कष्ट से बचने के लिए हमने बेहोश होने की बहुत-सी पीड़ा होगी।
| तरकीबें निकाली हैं। उसमें सब से गहरी तरकीब यह है कि हम लेकिन आप छाती पीटकर रो रहे हैं, चिल्ला रहे हैं, और कह आच्छादित हो जाते हैं कष्ट से, तादात्म्य कर लेते हैं और विचलित रहे हैं कि मेरी पत्नी मर गई। और लोग आपको समझा रहे हैं और | होने लगते हैं भीतर। उस विचलित अवस्था में बाहर का कष्ट गुजर
आपको समझ में नहीं आ रहा है, इस सब में आप कष्ट से बच रहे | जाता है और हम उसे सह लेते हैं। हैं। यह तरकीब है। इस रोने-धोने में, आपको जो कष्ट अनुभव | ज्ञानी को कष्ट बिलकुल साफ होगा। क्योंकि वह किसी तरह के होता, जो उसकी तीव्रता छिद जाती छाती में भाले की तरह, वह नहीं | | दुख में नहीं पड़ेगा। उसके मन पर कोई भी कष्ट का बादल घेरकर छिदेगी। आप रो-धोकर वक्त गुजार देंगे, तब तक कष्ट विसर्जित | | उसे डुबाएगा नहीं। उसे कष्ट बिलकुल साफ होगा। हो जाएगा।
इसे हम ऐसा समझें कि आप बहुत विचारों से भरे बैठे हैं। रास्ते इसलिए बड़े होशियार लोग हैं। जब किसी के घर कोई मर जाता | पर किसी के मकान में आग लग जाए और शोरगुल मच जाए, तो है, तो बाकी लोग आ-आकर उनको बार-बार रुलाते हैं। वह बड़ा | भी आपको पता नहीं चलता। लेकिन आप ध्यान में बैठे हैं बिलकुल कारगर है। वह करना चाहिए। फिर कोई बैठने आ गया। फिर आप | शांत। एक सुई भी गिर जाए, तो आपको सुनाई पड़ेगी। एक सुई रोने लगे। और दो-तीन दिन के बाद तो हालत ऐसी हो जाती है कि | भी गिर जाए, तो आपको सुनाई पड़ेगी। आपको अब रोना भी नहीं आ रहा है और कोई बैठने आ गया, तो | | जैसे ही कोई व्यक्ति गहरे ध्यान को उपलब्ध होता है, तो आप रो रहे हैं!
| जरा-सी चीज भी शरीर में हो जाए, तो उसे पता चलेगी। कष्ट उसे ___ महीने, पंद्रह दिन में लोग आपको इतना थका देते हैं। | होगा। लेकिन दुख नहीं होगा। दुख के होने का अर्थ है कि वह कष्ट रुला-रुलाकर, कि अब आपका मन होने लगता है कि अब मरने से अपने को जोड़े तभी होता है। जब आप कष्ट से अपने को न से इतना कष्ट नहीं हो रहा है किसी के, जितना तुम्हारे आने से हो जोड़ें, तो दुख नहीं होता। रहा है। अब तुम बंद करो। जब ऐसी घड़ी आ जाती है, तभी लोग। इसलिए ध्यान रखें, अध्यात्म की यात्रा पर चलने वाले कुछ
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