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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-600 होती है कि हम तो तुम्हारी तरफ खोजने आ रहे हैं कि कुछ तुम्हारे | | फर्क। अगर आपके पैर में कोई कांटा चुभाए, तो दो घटनाएं घटती पास होगा। तुम यहां चले आ रहे हो! क्या, मामला क्या है? | हैं। एक घटना है, कष्ट। कष्ट का अर्थ है कि आप अनुभव करते मामला एक बुनियादी भूल का है। जो अध्यात्म में सफलता की | | हैं कि पैर में पीड़ा हो रही है। मैं जान रहा हूं कि पैर में पीड़ा हो रही कुंजी है, वही कुंजी संसार के ताले को नहीं खोलती। जो संसार के है। आप जानने वाले होते हैं। पीड़ा पैर में घटित होती है, आप ताले को खोल देती है, वही कुंजी अध्यात्म के ताले को नहीं | | देखने वाले होते हैं। आप साक्षी होते हैं। खोलती है। और अब तक कोई मास्टर-की नहीं खोजी जा सकी | इसका यह मतलब नहीं कि आप साक्षी होंगे, तो कोई आपके है-और खोजी भी नहीं जा सकती—जो दोनों तालों को एक साथ पैर में कांटा चुभाए तो आपको पीड़ा नहीं होगी। इस भ्रांति में आप खोल देती हो। | मत पड़ना। पीड़ा होगी। कष्ट होगा। क्योंकि कांटे का चुभना एक अगर दोनों ताले खोलने हों एक साथ, तो दो कुंजियों की जरूरत | घटना है। लेकिन दुख नहीं होगा। इस फर्क को खयाल में ले लें। पड़ेगी। उनकी प्रक्रिया अलग है। संसार में अहंकार आधार है, दुख तब होता है, जब मैं कष्ट के साथ अपने को एक कर लेता महत्वाकांक्षा, संघर्ष। अध्यात्म में निरअहंकारिता, महत्वाकांक्षा से | हूं। जब मैं कहता हूं कि मुझे कोई कांटा चुभा रहा है, तब दुख शून्य हो जाना, एक गहरी विनम्रता, कोई दौड़ नहीं, कोई पागलपन | होता है। पैर को कोई कांटा चुभा रहा है, मैं देख रहा हूं, तब कष्ट नहीं, कोई यात्रा नहीं। इसे खयाल रखेंगे। होता है। तो जब आप संसार से घबड़ाकर अध्यात्म की तरफ मुड़ने लगें, इसलिए जीसस को भी जब सूली लगी, तो उनको कष्ट हुआ तो संसार के ढंग अध्यात्म में मत ले जाना। उनको भी संसार के साथ है। दुख नहीं हुआ। ही छोड़ देना। वे ढंग वहां काम नहीं आएंगे। उस यात्रा में उनकी कोई | कष्ट तो होगा। कष्ट तो घटना है। कष्ट का तो मतलब ही इतना भी जरूरत नहीं है। उन्हें आप छोड़ देना। वे बोझ बन जाएंगे। | है कि...। इसका तो मतलब हुआ, कोई मेरा पैर काटे, तो मुझे पता अध्यात्म की शिक्षा में आपको संसार में सीखा हुआ कुछ भी | नहीं चलेगा कि मेरा पैर किसी ने काटा? काम नहीं आएगा। सिर्फ एक बात भर कि संसार व्यर्थ है, अगर कोई मेरा पैर काटेगा, तो मुझे पता चलेगा कि पैर किसी ने मेरा इतना आपने सीख लिया हो, तो आप पीछे की तरफ मुड़ सकते हैं। काटा। वह एक घटना है। और पैर के काटने में जो पैर के तंतुओं लेकिन इस व्यर्थता में संसार के सारे अनुभव, सारे साधन, सारा | | में तनाव और परेशानी होगी, वह मुझे अनुभव में आएगी कि ज्ञान, सब व्यर्थ हो जाता है। परेशानी हो रही है। अगर मैं ऐसा समझ लूं कि मैं कट रहा हूं पैर संसार का एक ही उपयोग है अध्यात्म के लिए कि यह अनुभव के कटने में, तो दुख होगा। दुख है कष्ट के साथ तादात्म्य, कष्ट में आ जाए कि वह पूर्णतया व्यर्थ है, तो आप भीतर की दुनिया में के साथ एक हो जाना। प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए ज्ञानी को दुख नहीं होगा; कष्ट तो होगा। और एक बात मजे की है कि ज्ञानी को आपसे ज्यादा कष्ट होगा। आप तो दुख में इतने लीन हो जाते हैं कि कष्ट का आपको पूरा पता ही नहीं चलता। एक आखिरी सवाल। एक मित्र ने पूछा है कि यदि ज्ञानी को तो कोई दुख होगा नहीं, इसलिए कोई लीनता भी नहीं प्रकृति में घटनाएं होती हैं और पुरुष में भाव, तो क्या | होगी। वह तो सजग होकर देखता रहेगा। उसकी संवेदनशीलता जब कोई सिद्धि को प्राप्त हो जाता है और अनुभव | बहुत गहन होगी, आपसे ज्यादा होगी। क्योंकि उसका तो मन कर लेता है अपनी पृथकता को, तो उसके शरीर में बिलकुल दर्पण है! सब साफ-साफ दिखाई पड़ेगा। दुख और मन में पीड़ा बंद हो जाती है? आपको तो कष्ट दिखाई ही नहीं पड़ पाता, उसके पहले ही आप दुख में डूब जाते हैं। तो आपका तो पूरा चैतन्य धुएं से भर जाता है दुख के। इसलिए आपको कष्ट का ठीक-ठीक बोध नहीं हो पाता। द से थोड़ा समझना पड़े। आप तो रोना-धोना-चिल्लाना शुरू कर देते हैं। उसमें आप अपने २ पहली तो बात यह समझनी पड़े कि दुख और कष्ट का | को भुला लेते हैं। 374
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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