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0 साधना और समझ
पागल आदमियों को हम लगन के आदमी कहते हैं। एक चीज भीतर जाता है। और जब सब तरफ दौड़ बंद हो जाती है, तो अपनी की तरफ जो पागल हैं, वे कुछ उपलब्ध कर लेते हैं। जो बहुत तरफ | | तरफ आता है, अपने में उतरता है, अपने में थिर होता है। भागेंगे, निश्चित ही वे कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाएंगे। संसार में | | इसलिए अध्यात्म कोई लगन नहीं है। अध्यात्म कोई सफलता, जो बहुत तरफ देखता है, वह कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाता है। कोई अहंकार की यात्रा, कोई ईगो ट्रिप नहीं है। इसलिए संसार में इसके पहले कि वह तय करे कि क्या मैं पाऊं, जिंदगी हाथ से | जो सूत्र काम देते हैं, उनका उपयोग आप अध्यात्म में मत कर लेना। निकल गई होती है।
बहुत लोग उनका उपयोग कर रहे हैं। करते हैं, इसलिए अध्यात्म लेकिन यही बात अध्यात्म के संबंध में नहीं है। अध्यात्म कोई में असफल होते हैं। लगन नहीं है। अध्यात्म तो सब तरह की लगन से छुटकारा है। । जो संसार में सफलता का सूत्र है, वही अध्यात्म में असफलता
इसे हम ऐसा समझें, तीन तरह के आदमी हैं। एक आदमी, जो का सूत्र है। और जो अध्यात्म में सफलता का सूत्र है, वही संसार सब तरफ देखता है। इधर भी चाहता है दौडूं, उधर भी चाहता है | में असफलता का सूत्र है। दोनों तरह की भूल करने वाले लोग हैं। दौडूं। सोचता है, डाक्टर भी हो जाऊं; वकील भी हो जाऊं; लेखक | और ऐसा नहीं कि थोड़े-बहुत लोग हैं। बहुत बड़ी संख्या में लोग भी हो जाऊं; राजनीतिज्ञ भी हो जाऊं। जो भी कुछ हो सकता हूं, हैं, जो दोनों तरह की भूल करते हैं। सब हो जाऊं। इस सब होने की दौड़ में वह कुछ भी नहीं हो पाता। जैसे, इस मुल्क में हमने अध्यात्म में सफलता पाने के कुछ सूत्र या जो भी होता है, वह सब कचरा हो जाता है। वह एक खिचड़ी खोज निकाले थे। हमने उनका ही उपयोग संसार में करना चाहा। हो जाता है। उसके पास कोई व्यक्तित्व नहीं निखरता। वह एक | इसलिए पूरब संसार की दुनिया में असफल हो गया। गरीब, दीन, कबाड़खाना हो जाता है, जिसमें सब तरह की चीजें हैं। दरिद्र, भुखमरा, भीख मांगता हो गया। हमने, जो सूत्र अध्यात्म
दूसरा आदमी है, जो कहता है, बस मुझे एक चीज होना है। सब | | में सफल हुए थे, उनका उपयोग संसार में करने की कोशिश की। दांव पर लगाकर एक तरफ चल पड़ता है। एकाग्रता से लग जाता | | वह मूढ़ता हो गई। इसलिए हम आज जमीन पर भिखमंगे की तरह है। वह लगन का आदमी है। वह पागल आदमी है। वह एक चीज | खड़े हैं। को पा लेगा।
पश्चिम में संसार में जिन चीजों से सफलता मिल जाती है, उन्हीं एक तीसरी तरह का आदमी है, जो न एक को पाना चाहता है, | की कोशिश अध्यात्म में भी करनी शुरू की है। उनसे कोई सफलता न सब को पाना चाहता है, जो पाना ही नहीं चाहता। यह तीसरा | नहीं मिल सकती। पश्चिम अध्यात्म में असफल हो गया है। आदमी आध्यात्मिक है, जो कहता है, सब पाना फिजूल है। एक इसलिए एक बड़ी मजेदार घटना घट रही है। का पाना भी फिजूल है; सबका पाना भी फिजूल है। बहुत-बहुत | | पूरब का मन पश्चिम की तरफ हाथ फैलाए खड़ा है-धन दो, जिंदगियों में बहुत चीजें खोजकर देख लीं, कुछ भी न पाया। अब दवा दो, भोजन दो, कपड़ा दो। और पश्चिम के लोग पूरब की तरफ खोजेंगे नहीं। अब बिना खोजे देखेंगे। अब बिना खोज में रुक | हाथ फैलाए खड़े हैं-आत्मा दो, ध्यान दो, मंत्र दो, तंत्र दो। यह जाएंगे। अब नहीं खोजेंगे। अब दौड़ेंगे नहीं। अब कहीं भी न | | बड़े मजे की बात है कि दोनों भिखमंगे की हालत में हैं। और जाएंगे। अब न तो सब तरफ देखेंगे, न एक तरफ देखेंगे। अब | इसलिए हमें बड़ी कठिनाई होती है। आंख को बंद कर लेंगे और वहां देखेंगे, जो भीतर है, जो मैं हूं। | अगर पश्चिम से युवक-युवतियां भारत की तरफ आते हैं, अब किसी तरफ न देखेंगे। अब सब दिशाएं व्यर्थ हो गईं। | खोजते हैं, तो हमें बड़ी हैरानी होती है कि तुम यहां किस लिए आ
इस घड़ी में, जब कोई चाह नहीं रहती. कोई लगन नहीं रहती, | रहे हो! हम तो यहां भूखे मर रहे हैं। हम तो तुम्हारी तरफ आशा कुछ पाने का लक्ष्य नहीं रहता, कुछ विषय नहीं रह जाता पाने के | लगाए बैठे हैं। तुम यहां किस लिए आ रहे हो? तुम्हारा दिमाग लिए, कोई अंत नहीं दिखता बाहर, बाहर कोई मंजिल नहीं रह | खराब है? जाती, जब व्यक्ति की चेतना सब भांति खड़ी हो जाती है, उसकी और जब हमारे मुल्क के युवक-युवतियां पश्चिम की तरफ जाते सब प्रवाह-यात्रा बंद हो जाती है, तब एक नया द्वार खुलता है, जो हैं, टेक्नालाजी सीखने, उनका विज्ञान सीखने, और अभिभूत होते भीतर है। जब बाहर जाना बंद हो जाता है चैतन्य का, तो चैतन्य हैं, और समर्पित होते हैं उन दिशाओं में, तो पश्चिम में भी चिंता
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