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ॐ गीता दर्शन भाग-60
हो ही गए होते।
ऐसा समझिए कि आपके पास एक पुरानी मोटर है, जिसको __ कृष्णमूर्ति की अपनी अड़चन और तकलीफ है। और वह | | आपने रख दिया है। अब आप उपयोग नहीं करते हैं। आप पैदल अड़चन और तकलीफ एक अंधेरी छाया की तरह उनको घेरे रही | ही चलते हैं। लेकिन चालीस साल से मोटर आपके घर में रखी है। है। वह उनके वक्तव्य में छूटती नहीं है।
लेकिन कभी आपको तेज चलना पड़ता है और पैदल चलने से कोई पूछेगा कि अगर वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं, तो यह बात | | काम नहीं आता, आप अपनी पुरानी मोटर निकाल लेते हैं। और छूटती क्यों नहीं? यह भी थोड़ी-सी जटिल है बात।
खटर-पटर करते मुहल्ले भर के लोगों की नींद हराम करते आप अगर कोई ज्ञान को उपलब्ध हो गया है, तो वह यह क्यों नहीं अपनी गाड़ी को लेकर चल पड़ते हैं। देख सकता कि मेरा यह विरोध गुरुओं का, मेरी प्रतिक्रिया है। मेरे करीब-करीब मन जिस दिन छटता है, उसकी जो स्थिति रहती साथ गुरुओं ने जो किया है, उनको मैं अब तक माफ नहीं कर पा | है, जब भी उसका उपयोग करना हो, उसी स्थिति में करना पड़ेगा। रहा हूं! ध्यान का और योग का मेरा विरोध मेरे ऊपर ध्यान और | उसमें फिर कोई ग्रोथ नहीं होती। वह एक पुराने यंत्र की तरफ पड़ा योग की जो प्रक्रियाएं लादी गई हैं, उनकी प्रतिक्रिया है! जो आदमी | रह जाता है भीतर। व्यक्ति की चेतना उससे अलग हो जाती है, यंत्र ज्ञान को उपलब्ध हो गया, वह यह क्यों नहीं देख पाता?
की तरह मन पड़ा रह जाता है। उसी मन का उपयोग करना पड़ता और मैं मानता हूं कि कृष्णमूर्ति ज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं। | है। वह मन वही भाषा बोलता है, जिस भाषा में समाप्त हुआ था। इसलिए और जटिल हो जाती है बात। अगर कोई कह दे कि वे | | वह वहीं रुका हुआ है। ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुए हैं, तो कोई अड़चन नहीं है। मैं मानता | | कृष्णमूर्ति चालीस साल से दूसरी दुनिया में हैं। लेकिन मन वहीं हं, वे ज्ञान को उपलब्ध हैं। फिर यह प्रतिक्रिया, यह जीवनभर का | पड़ा हुआ है, जहां उसे छोड़ा था। वह पुरानी गाड़ी, वह फोर्ड की विरोध छूटता क्यों नहीं है? इसका कारण आपसे कहूं। वह | | पुरानी कार वहीं खड़ी है। जब भी उसका उपयोग करते हैं, वह फिर समझने जैसा है।
ताजा हो जाता है। उसके लिए वह घटना उतनी ही ताजी है। ___ जब भी कोई व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध होता है, तो ज्ञान के | | गुरुओं ने जबरदस्ती उन्हें धक्के देकर जगा दिया है। वह मन् उपलब्ध होने का क्षण वही होता है, जहां मन समाप्त होता है, जहां | अब भी प्रतिरोध से भरा हुआ है। वे ध्यान के विरोध में हैं, गुरुओं मन छूट जाता है और आदमी ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। लेकिन के विरोध में हैं। लेकिन अगर उनकी बात को ठीक से समझें, तो ज्ञान को उपलब्ध होने के बाद अगर उसे अपनी बात लोगों से | वह विरोध मन का ही है, ऊपरी ही है। कहनी हो, तो उसे उसी छूटे हुए मन का उपयोग करना पड़ता है। अगर सच में ही कोई व्यक्ति गुरुओं के विरोध में है, तो वह किसी
मन के बिना कोई संवाद, कोई अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। को शिक्षा नहीं देगा। क्योंकि शिक्षा देने का मतलब ही क्या है। आपसे मैं बोल रहा हूं, तो मन का मुझे उपयोग करना पड़ेगा। तो कृष्णमूर्ति कितना ही कहें कि मैं कोई शिक्षा नहीं दे रहा हूं, जब मैं चुप बैठा हूं, अपने में हूं, तब मुझे मन की कोई जरूरत नहीं लेकिन शिक्षा नहीं दे रहे हैं, तो क्या कर रहे हैं! वे कितना ही कहें है। अपने स्वभाव में मुझे मन की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जब | कि तुम्हें कोई बात देने की मेरी इच्छा नहीं है, लेकिन चेष्टा बड़ी कर आपसे मुझे बात करनी है, तो मुझे मन का उपयोग करना पड़ेगा। | रहे हैं कि कोई बात दे दी जाए। और अगर श्रोता नहीं समझ पाते.
तो कृष्णमूर्ति का जिस दिन मन छूटा, उस मन की जो आखिरी | तो बड़े नाराज हो जाते हैं। समझाने की बड़ी अथक चेष्टा है। बड़े विरोध की दशा थी, उस मन का जो आखिरी भाव था-गुरुओं के, आग्रहपूर्ण हैं, कि समझो! और कहे चले जाते हैं कि मुझे कुछ विधियों के खिलाफ-वह मन के साथ पड़ा है। और जब भी समझाना नहीं है; मुझे कुछ बताना नहीं है; मुझे कोई मार्ग नहीं देना कृष्णमूर्ति मन का उपयोग करके आपसे बोलते हैं, तब वही मन जो | है। लेकिन क्या? क्या कर रहे हैं फिर? चालीस साल पहले काम के बाहर हो गया, वही काम में लाना पड़ता हो सकता है कि आप सोचते हों कि यही मार्ग है, कोई मार्ग न है। और कोई मन उनके पास है नहीं। इसलिए स्वभावतः उसी मन | देना; यही शिक्षा है, कोई विधि न देना; यही गुरुत्व है, गुरुओं से का वे उपयोग करते हैं। इसलिए जो वे नहीं कहना चाहें, जो उन्हें नहीं | | छुड़ा देना। लेकिन यह भी सब वही का वही है। कोई फर्क नहीं है। कहना चाहिए, वह भी कहा जाता है। वह उस मन के साथ है। तो कृष्णमूर्ति की एक जटिलता है, मन उनका कुछ विरोधों से
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