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ॐ साधना और समझ
भरा पड़ा है। वह पड़ा हुआ है। और जब भी वे उसका उपयोग करते वहां तो अपने पर करना। वहां तो सभी तरह से अपने को केंद्र हैं, वे सारे के सारे विरोध सजग हो जाते हैं।
मानना, तो ही संसार में आप चल पाएंगे। वह उपद्रव की दुनिया लेकिन आप सावधान रहना। आप अपनी फिक्र करना। आप । है; वहां अहंकार बिलकुल जरूरी है। चौबीस घंटे ध्यान कर सकते हों, तो जरूर करना। और न कर ठीक संसार से विपरीत यात्रा है अध्यात्म की। जो संसार में सकते हों, तो कृष्णमूर्ति कहते हैं कि घंटेभर ध्यान करने से कोई सहयोगी है, वही अध्यात्म में विरोधी हो जाता है। और जो संसार फायदा नहीं है, इसलिए घंटेभर करना रोक मत देना। में सीढ़ी है, वही अध्यात्म में मार्ग का पत्थर, अवरोध हो जाता है।
सागर मिल जाए, तो अच्छा है, ध्यान का। न मिले, तो जो छोटा ठीक उलटा हो जाता है। इसलिए संसार में जो लोग सफल होते हैं, सरोवर है, उसका भी उपयोग तो करना ही। जब तक सागर न मिल वे अहंकारी लोग हैं। जो बिलकुल पागल हैं, जिनको पक्का भरोसा जाए, तब तक सरोवर का ही उपयोग करना; तब तक एक बूंद भी है कि दुनिया की कोई ताकत उनको रोक ही नहीं सकती। वे पागल पानी की हाथ में हो, तो वह भी जरूरी है। वह बूंद आपको जिलाए की तरह लगे रहते हैं और सफल हो जाते हैं। रखेगी और सागर का स्वाद देती रहेगी, और सागर की तरफ बढ़ने | सफल होने में अड़चन क्या है? अड़चन यही है कि उनसे बड़े में साथ, सहयोग, शक्ति देती रहेगी।
पागल उनकी प्रतिस्पर्धा में न हों। और कोई अड़चन नहीं है। अगर उनसे भी बड़े पागल और उनसे भी अहंकारी उनकी प्रतिस्पर्धा में
हों, तो वे उनको मात कर देंगे। लेकिन मात करने का और जीतने एक दूसरे मित्र ने पूछा है, आत्म-विश्वास और लगन | का एक ही उपाय है वहां, आप कितने अहंकार के पागलपन से से मनुष्य को किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो | जुटते हैं! सकती है। क्या अध्यात्म के संबंध में भी यही सच है? अध्यात्म में आपका अहंकार जरा भी सहयोगी नहीं है, बाधा है।
वहां तो वही सफल होगा, जो कितनी मात्रा में अहंकार को छोड़कर
चलता है। 21 ध्यात्म के संबंध में इससे ज्यादा गलत और कोई बात जीसस ने कहा है, धन्य हैं वे लोग, जो इस संसार में अंतिम खड़े आ नहीं है। न तो आत्म-विश्वास वहां काम देगा, न हैं। क्योंकि प्रभु के राज्य में उनके प्रथम होने की संभावना है।
'लगन वहां काम देगी। इसे हम थोड़ा समझ लें। । जो यहां अंतिम है, वह प्रभु के राज्य में प्रथम हो सकता है। आत्म-विश्वास का क्या अर्थ होता है? अपने पर भरोसा। अंतिम का क्या अर्थ है? अंतिम का अर्थ है, जिसे अहंकार का कोई अपने पर भरोसा अहंकार की ही छाया है। अध्यात्म में तो आसानी भी रस नहीं है। प्रथम होने की कोई इच्छा नहीं है। होगी, अगर आप सारा भरोसा ईश्वर पर छोड़ दें बजाय अपने पर ___ इसलिए हमारी सारी शिक्षा गैर-आध्यात्मिक है। क्योंकि वह रखने के। अध्यात्म में तो अच्छा होगा कि आप अपने को बिलकुल प्रथम होना सिखाती है। हमारे सारे संस्कार अहंकार को जन्माने असहाय, हेल्पलेस समझें। वहां अकड़ काम न देगी कि मुझे अपने | | वाले हैं। हमारी सारी दौड़, प्रत्येक को मजबूत अहंकार चाहिए, इस पर भरोसा है। वहां तैरने से आप नहीं पहुंच सकेंगे। वहां तो आप पर खड़ी है। इसलिए फिर हम अध्यात्म की तरफ जाने में बड़ी नदी की धार में अपने को छोड़ दें और कह दें कि तू ही जान। | | अड़चन पाते हैं। क्योंकि वहां यही अवरोध है। वहां तो एक ही चीज
जितनी आपके मन में यह अकड़ होगी कि मैं कर लंगा, मैं कर सहयोगी है कि आप बिलकुल मिट जाएं। के दिखा दूंगा, उतनी ही बाधा पड़ेगी अध्यात्म में। और जगह की | आत्म-विश्वास का तो सवाल ही नहीं है। वहां आपको यह बात मैं नहीं कहता। अगर धन पाना हो, तो आत्म-विश्वास | खयाल भी न रहे कि मैं हूं। मेरा होना भी न रहे। मैं एक खाली शून्य बिलकुल जरूरी है। वहां अगर आप कहें कि परमात्मा पर छोड़ता | | हो जाऊं। वहां मैं ऐसे प्रवेश करूं, जैसे मैं ना-कुछ हूं-असहाय, हूं, तो आप लुट जाएंगे।
| निरालंब, निराधार। न कुछ कर सकता हूं, न कुछ हो सकता है। संसार में कुछ भी पाना हो, तो अहंकार जरूरी है। ध्यान रखना, जिस घड़ी कोई व्यक्ति इतना निराधार हो जाता है, इतना निरालंब संसार अहंकार की यात्रा है। वहां आप भरोसा दूसरे पर मत करना; || हो जाता है, इतना असहाय हो जाता है कि लगता है, मैं शून्य जैसा
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