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@ साधना और समझ
उठते-बैठते उसको सम्हालते रहें।
| कुछ गुरुओं ने अथक मेहनत की है उनके साथ, ताकि वे ज्ञान को जैसे किसी को कोई कीमती हीरा मिल जाए। वह दिनभर सब उपलब्ध हो जाएं। काम करे, बार-बार खीसे में हाथ डालकर टटोल ले कि हीरा वहां | यह बड़े मजे की बात है कि अगर आपको जबरदस्ती स्वर्ग में है? खो तो नहीं गया! कुछ भी करे, बात करे, चीत करे, रास्ते पर | भी ले जाया जाए, तो आप स्वर्ग के भी खिलाफ हो जाएंगे। और चले, लेकिन ध्यान उसका हीरे में लगा रहे।
| अपने मन से आप नरक भी चले जाएं, तो गीत गाते, सीटी बजाते कबीर ने कहा है कि जैसे स्त्रियां नदी से पानी भरकर घड़े को सिर जाएंगे। अपने मन से आदमी नरक भी गीत गाता जा सकता है। पर रखकर लौटती हैं, तो गांव की स्त्रियां हाथ भी नहीं लगातीं, सिर | और जबरदस्ती स्वर्ग में भी ले जाया जाए, तो वह स्वर्ग के भी पर घड़े को सम्हाल लेती हैं। गपशप करती, बात करती, गीत गाती | | खिलाफ हो जाएगा। और उन लोगों को कभी माफ न कर सकेगा, लौट आती हैं। तो कबीर ने कहा है कि यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से वे कोई | | जिन्होंने जबरदस्ती स्वर्ग में धक्का दिया है। भी ध्यान घड़े को नहीं देतीं, लेकिन भीतर ध्यान घड़े पर ही लगा रहता ___ कृष्णमूर्ति पर यह ज्ञान एक तरह की जबरदस्ती थी। यह किन्हीं है। गीत भी चलता है। बात भी चलती है। चर्चा भी चलती है। हंसती | | और लोगों का निर्णय था। और अगर कृष्णमूर्ति अपने ही ढंग से भी हैं। रास्ता भी पार करती हैं। लेकिन भीतर सूक्ष्म ध्यान घड़े पर | चलते, तो उन्हें कोई तीन-चार जन्म लगते। लेकिन यह बहुत चेष्टा लगा रहता है और घड़े को वे सम्हाले रखती हैं।
करके, बहुत त्वरा और तीव्रता से कुछ लोगों ने अथक मेहनत जिस दिन ऐसी कला का खयाल आ जाए, तो फिर आप कुछ लेकर उन्हें जगाने की कोशिश की। भी करें, ध्यान पर आपका काम भीतर चलता रहेगा। लेकिन यह ठीक जैसे आप गहरी नींद में सोए हों और कोई जबरदस्ती आपसे आज नहीं हो सकेगा।
| आपको जगाने की कोशिश करे, तो आपके मन में बड़ा क्रोध आता • कृष्णमूर्ति की बुनियादी भूल यही है कि वे आप पर बहुत भरोसा है। और अगर कोई जबरदस्ती जगा ही दे, भला जगाने वाले की कर लेते हैं। वे सोचते हैं, आप यह आज ही कर सकेंगे। उनसे भी | बड़ी शुभ आकांक्षा हो, भला यह हो कि मकान में आग लगी हो यह आज ही नहीं हो गया है। यह भी बहुत जन्मों की यात्रा है। और और आपको जगाना जरूरी हो, लेकिन फिर भी जब आप गहरी उनसे भी यह बिना गुरु के नहीं हो गया है। सच तो यह है कि इस नींद में पड़े हों और कोई सुखद सपना देख रहे हों, तो जगाने वाला सदी में जितने बड़े गुरु कृष्णमूर्ति को उपलब्ध हुए, किसी दूसरे | | दुश्मन मालूम पड़ता है। व्यक्ति को उपलब्ध नहीं हुए। और गुरुओं ने जितनी मेहनत कृष्णमूर्ति को अधूरी नींद से जगा दिया गया है। और जिन लोगों कृष्णमूर्ति के ऊपर की है, उतनी किसी शिष्य के ऊपर कभी मेहनत |ने जगाया है, उन्होंने बड़ी मेहनत की है। लेकिन कृष्णमूर्ति उनकों नहीं की गई है।
| अभी भी माफ नहीं कर पाए हैं। वह बात अटकी रह गई है। इसलिए जीवन के उनके पच्चीस साल बहुत अदभुत गुरुओं के साथ, | चालीस साल हो गए, उनके सब गुरु मर चुके हैं, लेकिन गुरुओं उनके सत्संग में, उनके चरणों में बैठकर बीते हैं। उनसे सब सीखा की खिलाफत जारी है। है। लेकिन यह बड़ी जटिलता की बात है कि जो व्यक्ति गुरुओं से | । उनका अपना अनुभव यही है कि गुरुओं से बचना। इसलिए वे ही सब सीखा है, वह व्यक्ति गुरुओं के इतने खिलाफ कैसे हो गया? | कहते हैं कि गुरुओं से बचना। क्योंकि उन पर जो हुआ है, वह
और वह क्यों यह कहने लगा कि गुरु की कोई जरूरत नहीं है? और | जबरदस्ती हुआ है। ध्यान से बचना। क्योंकि कोई भी विधि कहीं जिस व्यक्ति ने ध्यान की बहुत-सी प्रक्रियाएं करके ही समझ पाई है, कंडीशनिंग, संस्कार न बन जाए। क्योंकि उन पर तो सारी विधियों वह क्यों कहने लगा कि ध्यान की कोई जरूरत नहीं है? का प्रयोग किया गया है। इसलिए अब वे कहते हैं, सिर्फ समझो।
इसके पीछे बड़ी मनोवैज्ञानिक उलझन है। और वह उलझन यह | लेकिन समझना भी एक विधि है। और वे कहते हैं, केवल होश है कि अगर गुरु को आपने ही चुना हो, तब तो ठीक है। लेकिन को गहराओ। लेकिन होश को गहराना भी एक विधि है। अगर गुरुओं ने आपको चुनकर आपके साथ मेहनत की हो, तो एक अध्यात्म के जगत में आप कुछ भी करो, विधि होगी ही। और अंतर्विरोध पैदा हो जाता है।
| गुरु को इनकार करो, तो भी गुरु होगा। क्योंकि अगर आप अपने कृष्णमूर्ति ने खुद नहीं चुना है। कृष्णमूर्ति को चुना गया है। और ही तईं बिना गुरु और बिना विधि के उपलब्ध हो सकते हैं, तो आप
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