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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 प्रसन्न होता है। प्रसन्न इसलिए होता है कि चलो, अब झुकने की | | अति कठिन है यह खयाल करना कि मैं देखने वाला हूं। कोशिश कोई जरूरत नहीं है; अब कहीं झुकने की कोई जरूरत नहीं है। | करें! घड़ी अपने सामने रख लें। और घड़ी में जो सेकेंड का कांटा तुमने बड़ी गलत बात निकाली। तुमने अपने मतलब की बात | | है, जो चक्कर लगा रहा है, उस सेकेंड के कांटे पर ध्यान करें। और निकाल ली। | इतना खयाल रखें कि मैं देखने वाला है, सिर्फ देख रहा है। मेरे पास लोग आते हैं। मैं जो कहता हूं, उसमें से वे वे बातें | आप हैरान होंगे कि परा एक सेकेंड भी आप यह ध्यान नहीं रख निकाल लेते हैं, जो उनके मतलब की हैं और जिनसे उनको बदलना | सकते। एक सेकेंड में भी कई दफा आप भूल जाएंगे और दूसरी नहीं पड़ेगा। वे मेरे पास आते हैं कि आपने बिलकुल ठीक कहा। | बातें आ जाएंगी। चौबीस घंटा तो बहुत दूर है, एक सेकेंड भी पूरा जंगल में जाने की, पहाड़ पर जाने की क्या जरूरत है! ज्ञान तो यहीं का पूरा आप यह ध्यान नहीं रख सकते कि मैं सिर्फ द्रष्टा हूं। इसी हो सकता है। बिलकुल ठीक कहा है। बीच आप घड़ी का नाम पढ़ लेंगे। इसी बीच घड़ी में कितना बजा तो मैं उनको पूछता हूं, यहीं हो सकता है; कब तक होगा, यह है, यह भी देख लेंगे। घड़ी में कितनी तारीख है, वह भी दिखाई पड़ मुझे कहो। और यहीं हो सकता है, तो तुम यहीं करने के लिए क्या | जाएगी। इसी बीच बाहर कोई आवाज देगा, वह भी सुनाई पड़ कर रहे हो? जाएगी। टेलिफोन की घंटी बजेगी, वह भी खयाल में आ जाएगी, उन्होंने मतलब की बात निकाल ली कि कहीं जाने की कोई किसका फोन आ रहा है! अगर कुछ भी बाहर न हो, तो भीतर कुछ जरूरत नहीं है। लेकिन जहां तुम हो, वहां तो तुम पचास वर्ष से हो | | स्मरण आ जाएगा, कोई शब्द आ जाएगा। बहुत कुछ हो जाएगा। ही। अगर वहीं ज्ञान होता होता, तो कभी का हो गया होता। लेकिन एक सेकेंड भी आप सिर्फ साक्षी नहीं रह सकते। तो अपने को तुमने अपने हिसाब की बात निकाल ली। धोखा मत दें। घड़ीभर तो निकाल ही लें चौबीस घंटे में, और उसको ध्यान कठिन है। न तो चिंतन, न मनन, न सुनना-श्रवण। इनमें सिर्फ ध्यान में नियोजित कर दें। हां, जब घड़ी में सध जाए वह कोई कठिनाई नहीं है। ध्यान बहुत कठिन है। ध्यान का अर्थ है कि सुगंध, तो उसे चौबीस घंटे पर फैला दें। जब घड़ी में जल जाए वह कुछ घड़ी के लिए बिलकुल शून्य हो जाना। सारी व्यस्तता समाप्त | | दीया, तो फिर चौबीस घंटे उसको साथ लेकर चलने लगें। फिर हो जाए। मन कुछ भी न करता हो। अलग से बैठने की जरूरत न रह जाएगी। ___ यह न करना बहुत कठिन है। क्योंकि मन कुछ न कुछ करना ही __ अलग से बैठने की जिस दिन जरूरत समाप्त हो जाती है, उसी चाहता है। करना मन का स्वभाव है। और अगर आप न-करने पर | | दिन जानना कि ध्यान उपलब्ध हुआ। अलग से बैठना तो जोर दें, तो मन सो जाएगा। अभ्यास-काल है। वह तो प्राथमिक चरण है। वह तो सीखने का मन दो चीजें जानता है, या तो क्रिया और या निद्रा। आप या तो वक्त है। इसलिए ध्यान के जानकारों ने कहा है कि जब ध्यान करना उसे काम करने दो और या फिर वह नींद में चला जाएगा। ध्यान | व्यर्थ हो जाए, तभी समझना कि ध्यान पूरा हुआ। तीसरी दशा है। क्रिया न हो और निद्रा भी न हो, तब ध्यान फलित ___ लेकिन इसको पहले ही मत समझ लेना, कि जब ज्ञानी कहते हैं होगा। कि ध्यान करना व्यर्थ हो जाए, तब ध्यान पूरा हुआ, तो हम करें ही कठिन से कठिन जो घटना मनुष्य के जीवन में घट सकती है, | क्यों! तो आपके लिए फिर कभी भी कोई यात्रा संभव नहीं हो वह ध्यान है। और आप कहते हैं, हम चौबीस घंटे क्यों न करें! पाएगी। आप मजे से करें। लेकिन घड़ीभर करना मुश्किल है, तो चौबीस __ अच्छा है अगर चौबीस घंटे पर फैलाएं। लेकिन मैं जानता हूं, घंटे पर आप फैलाइएगा कैसे? वह आप कर नहीं सकते। जो आप कर सकते हैं, वह यह है कि एक उपाय है कि आप साक्षी-भाव रखें, तो चौबीस घंटे पर फैल | | आप थोड़ी घड़ी निकाल लें। एक कोना अलग निकाल लें जीवन सकता है। लेकिन साक्षी-भाव आसान नहीं है। और जो आदमी | | का। और उसे ध्यान पर ही समर्पित कर दें। और जब आपको आ घडीभर ध्यान कर रहा हो, उसके लिए साक्षी-भाव भी आसान हो | | जाए कला, और आपको पकड़ आ जाए सूत्र, और आप समझ जाएगा। लेकिन जो आदमी घड़ीभर ध्यान भी न कर रहा हो, उसके | | जाएं कि किस क्वालिटी, किस गुण को ध्यान कहते हैं। और फिर लिए साक्षी-भाव भी बहुत कठिन होगा। उस गुण को आप चौबीस घंटे याद रखने लगें, स्मरण रखने लगें; 368
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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