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ॐ साधना और समझ ®
वह ध्यान हो गया। कोई भी क्रिया करते वक्त अगर सिर्फ क्रिया | कहते कि चौबीस ही घंटे व्यायाम क्यों न किया जाए! करें, तो ठीक की जाए और उसके संबंध में सोचा न जाए, तो ध्यान हो जाएगा। | है। जो आदमी चौबीस घंटे व्यायाम कर रहा है, उसको एक घंटे चलते वक्त अगर केवल चला जाए और कुछ भी मन में न करने | व्यायाम करने की कोई जरूरत भी नहीं है। जो चौबीस घंटे श्रम में दिया जाए, तो ध्यान हो जाएगा। भोजन करते वक्त अगर भोजन लगा हुआ है, उसे और व्यायाम की क्या जरूरत है? कोई जरूरत किया जाए और मन में उसके संबंध में कोई चिंतन न किया जाए, नहीं है। लेकिन जो व्यायाम नहीं कर रहा है, उसे घंटेभर भी कर तो भोजन करना ध्यान हो जाएगा। अगर आप अपने चौबीस घंटे लेने से चौबीस घंटे पर परिणाम होगा। को ध्यान में बदल लेते हैं, तो बहुत अच्छा है।
ध्यान के लिए एक घंटा निकाल लेना इसलिए उपयोगी है कि लेकिन लोग बहुत बेईमान हैं। एक घंटा न बैठने के लिए वे | | आप उस समय को पूरा का पूरा ही ध्यान में नियोजित कर सकते कहेंगे, चौबीस घंटे ध्यान क्यों नहीं किया जा सकता! और चौबीस | | हैं। एक दफा कला आ जाए, तो उस कला का उपयोग आप चौबीस घंटे वे ध्यान करने वाले नहीं हैं। और एक घंटा बैठना न पड़े, | घंटे कर सकते हैं। ध्यान एक कला है। फिर आप जो भी आप करें, इसलिए चौबीस घंटे पर टालेंगे।
| वह ध्यानपूर्वक कर सकते हैं। और तब अलग से ध्यान करने की अगर आप चौबीस घंटे ही ध्यान कर सकते हों, तो कौन आपको | | कोई जरूरत नहीं रह जाती। कहेगा कि घंटेभर करिए! आप मजे से चौबीस घंटे करिए। लेकिन | लेकिन जब तक वैसी घटना न घटी हो, तब तक कृष्णमूर्ति को चौबीस घंटे आप कर नहीं रहे हैं। और कर रहे होते, तो यहां मेरे | सुनकर या किसी को भी सुनकर तरकीबें मत निकालें। हम इतने पास पूछने को नहीं आना पड़ता।
| होशियार हैं तरकीबें निकालने में, कि जिससे हमारा मतलब सधता क्या जरूरत है मेरे पास आने की? ध्यान नहीं है, इसलिए कहीं | | हो, वह बात हम तत्काल निकाल लेते हैं। जाना पड़ता है, सुनना पड़ता है, समझना पड़ता है। ध्यान हो तो | | कृष्णमूर्ति लोगों को कहते हैं, गुरु की कोई जरूरत नहीं है। उनके आपके भीतर ही पौधा खिल जाएगा। आपके पास दूसरे लोग आने | पास उसी तरह के लोग इकट्ठे हो जाते हैं, जो किसी भी गुरु के लगेंगे। आपको जाने की जरूरत नहीं होगी। अपनी समझ आ जाए. सामने झकने में अहंकार की तकलीफ पाते हैं। वे इकडे तो फिर किसी से क्या समझना है!
वे बड़े प्रसन्न होते हैं। वे कहते हैं, जब कृष्णमूर्ति कह रहे हैं, तो लेकिन आदमी का मन ऐसा है कि अगर कहो कि घंटेभर बैठो, ठीक ही कह रहे हैं कि गुरु की कोई जरूरत नहीं है। तो वह कहेंगा, घंटेभर बैठने की क्या जरूरत है? चौबीस घंटे ध्यान __ लेकिन अगर गुरु की कोई जरूरत नहीं है आपको, तो कृष्णमूर्ति नहीं किया जा सकता!
के पास किसलिए जाते हैं? क्या प्रयोजन है? सिर्फ कह देने से कि मजे से करिए, लेकिन कम से कम घंटे से शुरू तो करिए। एक | गुरु की जरूरत नहीं है, कोई फर्क पड़ता है? जब तक आप किसी घंटा भी ध्यान करना मुश्किल है। चौबीस घंटा तो बहुत मुश्किल है। | से सीखने जाते हैं, तब तक आपको गुरु की जरूरत है। और बड़े जब ध्यान करने बैठेंगे, तब पता चलेगा कि एक क्षण को भी ध्यान | | मजे की बात यह है कि यह बात भी आपकी बुद्धि से पैदा नहीं हुई हो जाए, तो बहुत बड़ी घटना है। क्योंकि मन चलता ही रहता है। है कि गुरु की जरूरत नहीं है। यह भी किसी दूसरे ने आपको
तो उचित है कि एक घंटा निकाल लें चौबीस घंटे में से अलग | सिखाई है! यह भी आपने गुरु से ही सीखी है! ध्यान के लिए ही, और अनुभव करें। जिस दिन एक घंटे में आपको | | मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, कृष्णमूर्ति ऐसा कहते हैं, लगे कि सधने लगी बात, घटने लगी बात, चौबीस घंटे पर फैला कष्णमति ऐसा कहते हैं। वे कहते हैं. गरु की कोई जरूरत नहीं है। दें। फैलाना तो चौबीस घंटे पर ही है। क्योंकि जब तक जीवन पूरा | | यह भी तुम्हारी बुद्धि का मामला नहीं है, यह भी तुम किसी गुरु ध्यानमय न हो जाए, तब तक कोई क्रांति न होगी। लेकिन शुरुआत | | से सीख आए हो! इसको भी सीखने तुम्हें किसी के पास जाना पड़ा कहीं से करनी पड़ेगी।
है। इस साधारण-सी बात को सीखने भी किसी के पास जाना पड़ा __ और फिर एक घंटे ध्यान का परिणाम चौबीस घंटे पर होता है। है कि गुरु की कोई जरूरत नहीं है। परमात्मा को सीखने तुम किसी ठीक वैसे ही जैसे एक घंटा कोई सुबह व्यायाम कर लेता है, तो गुरु के पास नहीं जाना चाहते हो! चौबीस घंटे का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। और आप यह नहीं अड़चन कहीं और है। गुरु की जरूरत नहीं है, इससे तुम्हारा मन
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