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प्रेम का द्वार : भक्ति में प्रवेश
वगैरह से सावधान रहना! वह आदमी कुछ भी कर सकता है। और दिखाई पड़ जाए कि सागर है, तो उसे अपने भीतर भी सागर ही उस आदमी को घर में मत ठहरने देना, क्योंकि इतना ज्यादा दिखाई पड़ेगा, फिर अपने को अलग मानने का उपाय न रह विश्वास खतरनाक है। वह बता रहा है कि वह भरोसा दिला रहा है। | जाएगा। लहर अपने अहंकार को बचाना चाहती हो, तो सागर को आपको कि विश्वास है। उसे विश्वास नहीं है।
इनकार करना जरूरी है। उसे कहना चाहिए, सागर वगैरह सब जिस दिन कोई प्रेमी बार-बार कहने लगे कि मुझे बहुत प्रेम है, बातचीत है; कहीं देखा तो नहीं। मुझे बहुत प्रेम है, उस दिन समझना कि प्रेम चुक गया। जब प्रेम और आप भी जानते हैं, सागर आपने भी नहीं देखा है। दिखाई होता है, तो कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती; अनुभव में आता है। | तो हमेशा लहरें ही पड़ती हैं। सागर तो हमेशा नीचे छिपा है; दिखाई जब प्रेम होता है, तो उसकी तरंगें अनुभव होती हैं। जब प्रेम होता | कभी नहीं पड़ता। जब भी दिखाई पड़ती है, लहर दिखाई पड़ती है। है, तो उसकी सुगंध अनुभव में आती है। जब प्रेम होता है, तो वाणी तो लहर कहेगी, सागर को देखा किसने है ? किसी ने कभी नहीं बहुत कचरा मालूम पड़ती है; कहने की जरूरत नहीं होती कि मुझे | देखा। सिर्फ बातचीत है। दिखती हमेशा लहर है। मैं हूं, और सागर प्रेम है। जब प्रेम चुक जाता है...।
सिर्फ कल्पना है। इसलिए अक्सर प्रेमी और प्रेयसी एक-दूसरे से नहीं कहते कि लेकिन लहर अगर अपने भीतर भी प्रवेश कर जाए, तो सागर मुझे बहुत प्रेम है। पति-पत्नी अक्सर कहते हैं, मुझे बहुत प्रेम है! | में प्रवेश कर जाएगी। क्योंकि उसके भीतर सागर के अतिरिक्त और रोज-रोज भरोसा दिलाना पड़ता है, अपने को भी, दूसरे को भी, कुछ भी नहीं है। लहर सागर का एक रूप है। लहर सागर के होने क्योंकि है तो नहीं। अब भरोसा दिला-दिलाकर ही अपने को का एक ढंग है। लहर सागर की ही एक तरंग है। लहर होकर भी समझाना पड़ता है, और दूसरे को भी समझाना पड़ता है। लहर सागर ही है। सिर्फ आकृति में थोड़ा-सा फर्क पड़ा है। सिर्फ
जिस बात की कमी होती है, उसको हम विश्वास से पूरा करते | आकार निर्मित हुआ है। हैं। अरविंद ने ठीक कहा कि मैं जानता हूं, वह है। उसके होने के जब कोई व्यक्ति अपने अस्तित्व को ठीक से समझ पाता है, लिए कोई तर्क की जरूरत नहीं है। उसके होने के लिए अनुभव की अपने को भी समझ पाता है ठीक से, तो लहर खो जाती है और जरूरत है
सागर प्रकट हो जाता है। या अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे को भी क्या है अनुभव उसके होने का? और आपको नहीं हो पाता | ठीक से समझ पाता है, तो लहर खो जाती है और सागर प्रकट हो अगर अनुभव, तो बाधा क्या है? |
जाता है। ऐसा ही समझें कि सागर के किनारे खड़े हैं; लहरें उठती हैं। हर ___ अगर आप किसी के गहरे प्रेम में हैं, तो जिस क्षण गहरा प्रेम लहर समझ सकती है कि मैं हूं। लेकिन लहर है नहीं; है तो सिर्फ | होगा, उस क्षण उस व्यक्ति की लहर खो जाएगी और उस लहर में सागर। अभी लहर है, अभी नहीं होगी। अभी नहीं थी, अभी है, आपको सागर दिखाई पड़ेगा। इसलिए अगर प्रेमियों को अपने अभी नहीं हो जाएगी। लहर का होना क्षणभंगुर है। लेकिन लहर के प्रेमियों में परमात्मा दिखाई पड़ गया है, तो आश्चर्य नहीं है। दिखाई भीतर वह जो सागर है, वह शाश्वत है।
पड़ना ही चाहिए। और वह प्रेम प्रेम ही नहीं है, जिसमें लहर न खो आप अभी नहीं थे, अभी हैं, अभी नहीं हो जाएंगे। आप एक जाए और सागर का अनुभव न होने लगे। लहर सेज ज्यादा नहीं हैं। इस जगत के सागर में इस होने के सागर दसरे में भी दिखाई पड सकता है। स्वयं में भी दिखाई पड़ सकता में, अस्तित्व के सागर में आप एक लहर हैं। लेकिन लहर अपने | है। जहां भी ध्यान गहरा हो जाए, वहीं दिखाई पड़ सकता है। ऐसी को मान लेती है कि मैं हूं। और जब लहर अपने को मानती है, मैं | प्रतीति जब आपको हो जाए सागर की, तो उस प्रतीति से जो श्रद्धा हूं, तभी सागर को भूल जाती है। स्वयं को मान लेने में परमात्मा | का जन्म होता है, वह विश्वास नहीं है। दैट्स नाट ए बिलीफ। विस्मरण हो जाता है। क्योंकि जो लहर अपने को मानेगी, वह | श्रद्धा कोई विश्वास नहीं है, श्रद्धा एक अनुभव है। और तब ये सारी सागर को कैसे याद रख सकती है!
दुनिया के तर्क आपसे कहें कि परमात्मा नहीं है, तो भी आप हंसते इसे थोड़ा समझ लें। लहर अगर अपने को मानती है कि मैं हूं, | रहेंगे। और सारे तर्क सुनने के बाद भी आप कहेंगे कि ये सारे तर्क तो उसे मानना ही पड़ेगा कि सागर नहीं है। क्योंकि अगर उसे सागर | | बड़े प्यारे हैं और मजेदार हैं, मनोरंजक हैं। लेकिन परमात्मा है, और