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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 इन तर्कों से वह खंडित नहीं होता। हम आकार हैं। और आकार के भीतर छिपा हुआ जो अस्तित्व ध्यान रहे, न तो तर्कों से वह सिद्ध होता है और न तर्कों से वह है, वह परमात्मा है। खंडित होता है। जो लोग समझते हैं, तों से वह सिद्ध होता है, वे श्रेष्ठ श्रद्धा उस श्रद्धा का नाम है, जो इस प्रतीति, इस साक्षात हमेशा मुश्किल में पड़ेंगे; क्योंकि फिर तर्कों से मानना पड़ेगा कि | से जन्म पाती है। यह किसी शास्त्र से पढ़ा हुआ, किसी गुरु का वह खंडित भी हो सकता है। जो चीज तर्क से सिद्ध होती है, वह कहा हुआ मान लेने से नहीं होगा। यह आपके ही जीवन-अनुभव तर्क से टूटने की भी तैयारी रखनी चाहिए। और जिस चीज के लिए | का हिस्सा बनना चाहिए। यह आपको ही प्रतीत होना चाहिए। आपके प्रमाण की जरूरत है, वह आपके प्रमाण के हट जाने पर | | अगर परमात्मा आपका निजी अनुभव नहीं है, तो आपकी खो जाएगी। आस्तिकता थोथी है। उसकी कोई कीमत नहीं है। वह कागज की परमात्मा को आपके प्रमाणों की कोई भी जरूरत नहीं है। नाव है; उससे भवसागर पार करने की कोशिश मत करना। उसमें परमात्मा का होना आपका निर्णय नहीं है, आपके गणित का निष्कर्ष | बुरी तरह डूबेंगे। उससे तो किनारे पर ही बैठे रहना, वही अच्छा है। नहीं है। परमात्मा का होना आपके होने से पर्व है। और परमात्मा अनुभव की नाव ही वास्तविक नाव है। का होना अभी, इस क्षण में भी आपके होने के भीतर वैसा ही छिपा मेरे में मन को एकाग्र करके निरंतर मेरे भजन व ध्यान में लगे है, जैसे लहर के भीतर सागर छिपा है। हुए जो भक्तजन अति श्रेष्ठ श्रद्धा से युक्त मुझ सगुणरूप परमेश्वर आप जब नहीं थे, तब क्या था? जब आप नहीं थे, तो आपके | को भजते हैं, वे मेरे को योगियों में भी अति उत्तम योगी मान्य हैं भीतर जो आज है, वह कहां था? क्योंकि जो भी है, वह नष्ट नहीं | | अर्थात उनको मैं अति श्रेष्ठ मानता हूं। होता। नष्ट होने का कोई उपाय नहीं है। विनाश असंभव है। प्रेम परम योग है। प्रेम से श्रेष्ठ कोई अनुभव नहीं है। और विज्ञान भी स्वीकार करता है कि जगत में कोई भी चीज विनष्ट | | इसीलिए भक्ति श्रेष्ठतम मार्ग बन जाती है, क्योंकि वह प्रेम का ही नहीं हो सकती। क्योंकि विनष्ट होकर जाएगी कहां? भेजिएगा कहां | | रूपांतरण है। उसे? पानी की एक बूंद को आप नष्ट नहीं कर सकते। भाप बन पांच मिनट रुकेंगे। कीर्तन करेंगे और फिर जाएंगे। सकती है, लेकिन भाप बनकर रहेगी। भाप को भी तोड़ सकते हैं। कोई भी बीच में उठे न। और जब तक कीर्तन पूरा न हो जाए, तो हाइड्रोजन-आक्सीजन बनकर रहेगी। लेकिन आप नष्ट नहीं कर | यहां धुन बंद न हो जाए, तब तक बैठे रहें। और सम्मिलित हों। सकते। एक पानी की बूंद भी जहां नष्ट नहीं होती, वहां आप जब | कौन जाने कोई धुन आपके हृदय को भी पकड़ ले और भक्ति का कल नहीं थे, तो कहां थे? जन्म हो जाए। झेन में, जापान में साधकों को वे एक पहेली देते हैं। उसे वे कहते हैं कोआन। वे कहते हैं कि जब तुम नहीं थे, तो कहां थे, इसकी खोज करो। और जब तुम पैदा नहीं हुए थे, तो तुम्हारा चेहरा कैसा था, इस पर ध्यान करो। और जब तुम मर जाओगे, तो तुम कहां पहुंचोगे, इसकी थोड़ी खोज करो। क्योंकि जब तक तुम्हें इसका पता न चल जाए कि जन्म के पहले तुम कहां थे और मरने के बाद तुम कहां रहोगे, तब तक तुम्हें यह भी पता नहीं चल सकता कि इसी क्षण अभी तुम कहां हो। __ अभी भी तुम्हें पता नहीं है। हो भी नहीं सकता। क्योंकि लहर का भर तुम्हें पता है, जो अभी नहीं थी, अभी है, अभी नहीं हो जाएगी। उस सागर का कोई पता नहीं है, जो था, इस लहर के पहले भी; अभी भी है; और लहर मिट जाएगी, तब भी होगा। सिर्फ आकार मिटते हैं जगत में, अस्तित्व नहीं।
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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