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________________ गीता दर्शन भाग-6 जगत प्रयोजनहीन नहीं मालूम पड़ता । जगत में एक्सिडेंट नहीं मालूम पड़ता; एक सिस्टम, एक व्यवस्था मालूम पड़ती है। तो जरूर कोई व्यवस्थापक होना चाहिए। जगत चैतन्य मालूम पड़ता है। यहां मन है, विचार है, चेतना है। यह चेतना पदार्थ से पैदा नहीं | हो सकती। तो जगत के पीछे कोई चैतन्य हाथ होना चाहिए। हजारों तर्क इस तरह के लोगों ने ईश्वर के होने के दिए हैं। और अगर आप इन तर्कों के कारण ईश्वर को मानते हैं, तो आपकी श्रद्धा निकृष्ट श्रद्धा है। निकृष्ट इसलिए कि ये सब तर्क कमजोर हैं और सब खंडित किए जा सकते हैं। इनमें कोई भी तर्क ऐसा नहीं है, जिसका खंडन न किया जा सके। और जिस तर्क से आप सिद्ध करते हैं ईश्वर को, उसी तर्क से ईश्वर को असिद्ध किया जा सकता है। जैसे कि आस्तिक हमेशा कहते रहे हैं कि जब भी कोई चीज हो, तो उसका बनाने वाला चाहिए, क्रिएटर, स्रष्टा चाहिए। तो चार्वाक ने कहा है कि अगर हर चीज का बनाने वाला चाहिए, तो तुम्हारे ईश्वर का बनाने वाला कौन है? वही तर्क है। आस्तिक नाराज हो जाता है इस तर्क से। लेकिन इसी तर्क पर उसकी श्रद्धा खड़ी है। वह कहता है, बनाने वाला चाहिए, स्रष्टा चाहिए; सृष्टि है, तो स्रष्टा चाहिए। बिना स्रष्टा के यह सब बनेगा कैसे ? नास्तिक कहता है, हम मानते हैं आपके तर्क को। लेकिन ईश्वर को कौन बनाएगा ? वहां आस्तिक को बेचैनी शुरू हो जाती है। इस बात को वह कहता है कुतर्क । अगर यह कुतर्क है, तो पहला तर्क कैसे हो सकता है ! और नास्तिक कहता है, अगर ईश्वर बिना बनाए हो सकता है, तो फिर जगत को भी बिना बनाए होने में कौन-सी अड़चन है ! अगर ईश्वर बिना बनाया है, अनक्रिएटेड है, अस्रष्ट है, तो फिर फिजूल की बात में क्यों पड़ना ! यह जगत ही अस्रष्ट मान लेने में हर्ज क्या है? जब अस्रष्ट को मानना ही पड़ता है, तो फिर इस प्रत्यक्ष जगत को ही मानना उचित है। इसके पीछे और छिपे हुए, रहस्यमय को व्यर्थ | बीच में लाने की क्या जरूरत है ! ऐसा कोई भी तर्क नहीं है, जो नास्तिक न तोड़ देते हों। इसलिए आस्तिक नास्तिकों से डरते हैं। इसलिए नहीं कि वे आस्तिक हैं; आस्तिक होते तो न डरते। निकृष्ट आस्तिक हैं। उनके जिन तर्कों पर आधार है ईश्वर - आस्था का, वे सब तर्क तोड़े जा सकते हैं। और नास्तिक उन्हें तोड़ता है। इसलिए नास्तिक से बड़ा भय है। और आज जो जमीन पर इतनी ज्यादा नास्तिकता दिखाई पड़ रही है, वह इसलिए नहीं कि दुनिया नास्तिक हो गई है। वह निकृष्ट 12 आस्तिकता थी, वह मुश्किल में पड़ गई है। दुनिया ज्यादा तर्कवान हो गई है। जिन तर्कों से आप ईश्वर को सिद्ध करते थे, उन्हीं से लोग अब ईश्वर को असिद्ध कर रहे हैं। दुनिया ज्यादा तर्कवान हो गई है, ज्यादा विचारशील हो गई है। इसलिए अब धोखा नहीं दिया जा सकता। अब आपको तर्क | को उसकी पूरी अंतिम स्थिति तक ले जाना पड़ता है। अड़चन हो जाती है। श्रेष्ठ श्रद्धा क्या है? जो तर्क पर खड़ी नहीं है, अनुभव पर खड़ी है। जो विचार पर खड़ी नहीं है, प्रतीति पर खड़ी है। जो यह नहीं कहती कि इस कारण ईश्वर होना चाहिए। जो कहती है कि ऐसा अनुभव है, ईश्वर है। होना चाहिए नहीं, है! अरविंद को किसी ने पूछा कि क्या ईश्वर में आपका विश्वास है ? तो अरविंद ने कहा, नहीं। जिसने पूछा था, वह बहुत हैरान हुआ। उसने पूछा था, डू यू बिलीव इन गॉड ? और अरविंद ने कहा, नो। सोचकर आया था दूर से वह खोजी कि कम से कम एक अरविंद तो ऐसा व्यक्ति है, जो मेरा ईश्वर में भरोसा बढ़ा देगा। और अरविंद से यह सुनकर कि नहीं! उसकी बेचैनी हम समझ सकते हैं। उसने कहा, आप क्या कह रहे हैं! ईश्वर नहीं! आपका भरोसा नहीं; विश्वास नहीं। तो क्या ईश्वर नहीं है? तो अरविंद ने कहा, नहीं, ईश्वर है । लेकिन मुझे उसमें विश्वास की जरूरत नहीं है। क्योंकि मैं जानता हूं, वह है। एंड दिस इज़ नाट ए बिलीफ; आइ नो, ही इज़ यह थोड़ा सोचने जैसा है। हम विश्वास ही उन चीजों में करते हैं, जिनका हमें भरोसा नहीं है। आप सूरज में विश्वास नहीं करते। पृथ्वी में विश्वास नहीं करते। मैं यहां बैठा हूं, इसमें आप विश्वास नहीं करते। आप जानते हैं कि मैं यहां बैठा हूं। आप ईश्वर में विश्वास करते हैं, क्योंकि आप जानते नहीं कि ईश्वर है या नहीं है। जहां भरोसा नहीं है, वहां विश्वास । यह जरा उलटा लगेगा, पैराडाक्सिकल लगेगा। क्योंकि हम तो विश्वास का मतलब ही भरोसा समझते हैं। जब कोई आदमी आपसे आकर कहे कि मुझे आपमें पक्का विश्वास हैं, तब आप समझ लेना कि इस आदमी को आपमें विश्वास नहीं है। नहीं तो पक्का विश्वास कहने की जरूरत न थी । भरोसा विश्वास शब्द का उपयोग ही नहीं करता। और जब कोई आदमी बहुत ही ज्यादा जोर देने लगे कि नहीं, पक्का ही विश्वास है, तब आप अपनी जेब
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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