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________________ गीता दर्शन भाग-660 कृष्ण कहते हैं, वही देखता है, जो इतनी बातें कर लेता हुआ देख रहा हूं। और मैं तीन सप्ताह सिर्फ देखूगा। मैं देखने को है-परिवर्तन में शाश्वत को पकड़ लेता है, प्रवाह में नित्य को देख नहीं भूलूंगा। मैं स्मरण रसुंगा उठते-बैठते, चाहे कितनी ही बार लेता है, बदलते हुए में न बदलते हुए की झलक पकड़ लेता है। चूक जाऊं; बार-बार अपने को लौटा लूंगा और खयाल रखूगा कि वही देखता है। मैं सिर्फ देख रहा हूं, मैं सिर्फ साक्षी हूं। मुझे कोई निर्णय नहीं लेना कर्तृत्व प्रकृति का है। भोक्तृत्व पुरुष का है। और जो दोनों के | है, क्या बुरा, क्या भला; क्या करना, क्या नहीं करना। मैं कोई बीच साक्षी हो जाता है। जो दोनों से अलग कर लेता है, कहता है, निर्णय न लूंगा। मैं सिर्फ देखता रहूंगा। न मैं भोक्ता हूं और न मैं कर्ता हूं...। तीन सप्ताह इस पर आप प्रयोग करें, तो कृष्ण का सूत्र समझ में सांख्य की यह दृष्टि बड़ी गहन दृष्टि है। कभी-कभी वर्ष में तीन | आएगा। तो शायद आपकी आंख से थोड़ी धूल हट जाए और सप्ताह के लिए छुट्टी निकाल लेनी जरूरी है। आपको पहली दफा जिंदगी दिखाई पड़े। आंख से थोड़ी धूल हट छुट्टियां हम निकालते हैं, लेकिन हमारी छुट्टियां, जो हम रोज जाए और आंख ताजी हो जाए। और आपको बढ़ते हुए वृक्ष में वह करते हैं, उससे भी बदतर होती हैं। हम छुट्टियों से थके-मांदे लौटते | भी दिखाई पड़ जाए, जो भीतर छिपा है। बहती हुई नदी में वह हैं। और घर आकर बड़े प्रसन्न अनुभव करते हैं कि चलो, छट्टी | | दिखाई पड़ जाए, जो कभी नहीं बहा। चलती, सनसनाती हवाओं खत्म हुई; अपने घर लौट आए। छुट्टी है ही नहीं। हमारा जो में वह सुनाई पड़ जाए, जो बिलकुल मौन है। सब तरफ आपको हॉली-डे है, जो अवकाश का समय है, वह भी हमारे बाजार की परिवर्तन के पीछे थोड़ी-सी झलक उसकी मिल सकती है, जो दुनिया की ही दूसरी झलक है। उसमें कोई फर्क नहीं है। शाश्वत है। लोग पहाड़ पर जाते हैं। और वहां भी रेडियो लेकर पहुंच जाते | लेकिन आपकी आंख पर जमी हुई धूल थोड़ी हटनी जरूरी है। हैं। रेडियो तो घर पर ही उपलब्ध था। वह पहाड़ पर जो सूक्ष्म संगीत उस धूल को हटाने का उपाय है, साक्षी के भाव में प्रतिष्ठा। अगर चल रहा है, उसे सुनने का उन्हें पता ही नहीं चलता। वहां भी जाकर आप तीन सप्ताह अवकाश ले लें, बाजार से नहीं, कर्म से, कर्ता रेडियो वे उसी तेज आवाज से चला देते हैं। उससे उनको तो कोई | से; भोग से नहीं, भोक्ता से...। शांति नहीं मिलती, पहाड़ की शांति जरूर थोड़ी खंडित होती है। __ भोग से भाग जाने में कोई कठिनाई नहीं है। आप अपनी पत्नी सारा उपद्रव लेकर आदमी अवकाश के दिनों में भी पहुंच जाता को छोड़कर भाग सकते हैं जंगल में। पत्नी भाग सकती है मंदिर में है जंगलों में। सारा उपद्रव लेकर! अगर उस उपद्रव में जरा भी पति को छोड़कर। भोग से भागने में कोई अड़चन नहीं है, क्योंकि कमी हो, तो उसको अच्छा नहीं लगता। वह सारा उपद्रव वहां जमा भोग तो बाहर है। लेकिन भोक्ता भीतर बैठा हुआ छिपा है, वह लेता है। हमारा मन है। वह वहां भी भोगेगा। वह वहां भी मन में ही भोग के इसलिए सभी सुंदर स्थान खराब हो गए हैं। क्योंकि वहां भी संसार निर्मित कर लेगा। वही रस लेने लगेगा। होटल खड़ी करनी पड़ती है। वहां भी सारा उपद्रव वही लाना पड़ता वहां भीतर से मैं भोक्ता नहीं हूं, भीतर से मैं कर्ता नहीं हूं, ऐसी है, जो जहां से आप छोड़कर आ रहे हैं, वही सारा उपद्रव वहां भी | दोनों धाराओं के पीछे साक्षी छिपा है। उस साक्षी को खोदना है। ले आना पड़ता है जहां आप जा रहे हैं। उसको अगर आप खोद लें, तो आपको आंख उपलब्ध हो जाएगी। __अगर यह कृष्ण का सूत्र समझ में आए, तो इसका उपयोग, आप | | और आंख हो, तो दर्शन हो सकता है। वर्ष में तीन सप्ताह के लिए अवकाश ले लें। अवकाश का मतलब ___ शास्त्र पढ़ने से नहीं होगा दर्शन; दृष्टि हो, तो दर्शन हो सकता है, एकांत जगह में चले जाएं। और इस भाव को गहन करें कि जो | । । है। शब्द सुन लेने से नहीं होगा सत्य का अनुभव; आंख हो, तो भी कर्म हो रहा है, वह प्रकृति में हो रहा है। और जो भी भाव हो सत्य दिखाई पड़ सकता है। क्योंकि सत्य प्रकाश जैसा है। अंधे को रहा है, वह मन में हो रहा है। और मैं दोनों का द्रष्टा हूं, मैं सिर्फ | | हम कितना ही समझाएं कि प्रकाश कैसा है, हम न समझा पाएंगे। देख रहा हूं। जस्ट ए वाचर ऑन दि हिल्स, पहाड़ पर बैठा हुआ मैं | अंधे की तो आंख की चिकित्सा होनी जरूरी है। सिर्फ एक साक्षी हूं। सारा कर्म और भाव का जगत नीचे रह गया। ऐसा हुआ कि एक गांव में बुद्ध ठहरे, और एक अंधे आदमी सारा भाव और कर्म मेरे चारों तरफ चल रहा है और मैं बीच में खड़ा को लोग उनके पास लाए। और उन लोगों ने कहा कि यह अंधा मित्र 362]
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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