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O गीता दर्शन भाग-60
जाएं, उससे उनकी उपासना का जन्म हो जाए, तो वे भी मृत्यु के | खबर भेजी कि आप हमारे यहां आएं; हमारे घर में मृत्यु घटित हो सागर को तर जाते हैं, अमृत को उपलब्ध हो जाते हैं। | गई है, तो आप कुछ अमृत के संबंध में हमें समझाएं। तो मैंने उन्हें
मगर कई शर्ते हैं। पहली शर्त, जिन्होंने जाना है, उनसे सुनें, | कहा, समझना तुम्हें हो, तो तुम्हें मेरे पास आना होगा। उन्होंने मुझे फर्स्ट हैंड। जिन्होंने जाना है! अगर आप खुद जान लें मौलिक रूप | खबर भेजी, लेकिन आप ऐसा क्यों कहते हैं। क्योंकि और सब गुरु से स्वयं, तब तो ठीक है, वे तीन रास्ते हैं। अगर यह संभव न हो, | तो आ रहे हैं। और हम हजार रुपया प्रत्येक को भेंट भी करते हैं। तो जिन्होंने जाना है, उनसे सीधा सुनें। शास्त्र काम न देंगे, कोई गुरु | तो वे अमृत को हजार रुपए में खरीदने का इरादा रखते हैं। या उपयोगी होगा। जिसने जाना हो, उससे सीधा सुनें। क्योंकि अभी | | अमृत के संबंध में हजार रुपए में उनको कोई बता देगा, ऐसा उससे जो शब्द निकलेंगे, उसका जो स्पर्श होगा, उसकी जो वाणी | | खयाल रखते हैं। और जो उन्हें वहां बताने जा रहा है, उसे भी अमृत होगी, उसमें ताजी हवा होगी उसके अपने अनुभव की। इसलिए से कोई मतलब नहीं है; उसे भी हजार रुपए से ही मतलब होगा। शास्त्र पर कम जोर और गुरु पर ज्यादा जोर है।
। असल में गुरु आपके पास नहीं आ सकता। इसलिए नहीं कि अधिक लोगों के लिए, चौथा मार्ग जिनका होगा, उनके लिए गुरु इसमें कोई अड़चन है, बल्कि इसलिए कि आने में बात ही व्यर्थ हो. रास्ता है। और शास्त्र का अर्थ भी गुरु के द्वारा ही खुलेगा। क्योंकि | गई। कोई अर्थ ही न रहा। आपको ही उसके पास जाना पड़ेगा। शास्त्र तो कोई हजार साल, दस हजार साल पहले लिखा गया है। क्योंकि जाना केवल कोई भौतिक प्रक्रिया नहीं है; जाना भीतर के दस हजार साल पहले जो कहा गया है, उसमें बहुत कुछ जोड़ा गया, अहंकार का सवाल है। घटाया गया; दस हजार साल की यात्रा में बहुत कचरा भी इकट्ठा हो वे हैं करोड़पति, अरबपति, तो कैसे वे किसी के पास जा सकते गया, धूल भी जम गई। वह जो अनुभव था दस हजार साल पहले | हैं! अगर कैसे किसी के पास जा सकते हैं और सभी उनके पास का शुद्ध, वह अब शुद्ध नहीं है, वह बहुत बासा हो गया है। आते हैं, तो एक बात पक्की है कि वे गुरु के पास कभी नहीं पहुंच
फिर किसी व्यक्ति के पास जाएं, जिसमें अभी आग जल रही सकते हैं। और जो तथाकथित गुरु उनके पास पहुंचते हैं, वे गुरु हो, जो अभी जिंदा हो, अपने अनुभव से दीप्त हो; जिसके नहीं हो सकते। क्योंकि पहुंचने का जो संबंध है, वह शिष्य को ही रोएं-रोएं में अभी खबर हो; जिसने अभी-अभी जाना और जीया शुरू करना पड़ेगा; उसे ही निकटता लानी पड़ेगी, उसे ही पात्र हो सत्य को; जो अभी-अभी परमात्मा से मिला हो; जिसके भीतर बनना पड़ेगा। पुरुष ठहर गया हो और जिसका शरीर और जिसका संसार अब नदी घड़े के पास नहीं आती, घड़े को ही नदी के पास जाना केवल एक अभिनय रह गया हो; अब उसके पास बैठकर सुनें। पड़ेगा। और घड़े को ही झुकना पड़ेगा नदी में, तो ही नदी घड़े को
उपासना का अर्थ है, पास बैठना। उपासना शब्द का अर्थ है, पास भर सकेगी। नदी तैयार है भरने को। लेकिन घड़ा कहे कि मैं बैठना। उपनिषद शब्द का अर्थ है, पास बैठकर सुनना। ये शब्द बड़े | अकड़कर अपनी जगह बैठा हूं, मैं झुकूँगा नहीं; नदी आए और मुझे कीमती हैं. उपासना. उपदेश. उपनिषद। पास बैठकर। किसके भर दे और मैं हजार रुपए भेंट करूंगा पास? कोई जीवंत अनुभव जहां हो–सुनना। सुनना भी बहुत हां, कोई नल की टोंटी आ सकती है। पर नल की टोंटियों में और कठिन है, क्योंकि पास बैठने में पात्रता बनानी पड़ेगी। अगर जरा-सा नदियों में बड़ा फर्क है। कोई पंडित आ सकता है, कोई गुरु नहीं भी अहंकार है, तो आप पास बैठकर भी बहुत दूर हो जाएंगे। आ सकता।
गुरु के पास बैठना हो तो अहंकार बिलकुल नहीं चाहिए, तो पास पहुंचना एक कला है। विनम्रता, निरअहंकार भाव, क्योंकि वही फासला है। स्थान का कोई फासला नहीं है गुरु के और | सीखने की तैयारी, सीखने की उत्सुकता, सीखने में बाधा न तुम्हारे बीच, फासला तुम्हारे अहंकार का है। लोग सीखने भी आते | डालना। फिर सुने। क्योंकि सुनना भी बहुत कठिन है। क्योंकि जब हैं, तो बड़ी अकड़ से आते हैं। लोग सीखने भी आते हैं, तो भी | | आप सुनते भी हैं, तब भी सुनते कम हैं, सोचते ज्यादा हैं। आते नहीं हैं। उनको खयाल होता है कि आते हैं।
सोचेंगे आप क्या? जब आप सुन रहे हैं, तब भी आप सोच रहे यहां ऐसा हुआ। एक बहुत बड़े करोड़पति परिवार में, भारत के हैं कि अच्छा, यह अपने मतलब की बात है ? यह अपने संप्रदाय सबसे बड़े करोड़पति परिवार में किसी की मृत्यु हुई। तो मुझे उन्होंने की है? अपने शास्त्र में ऐसा लिखा है कि नहीं?
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