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0 पुरुष में थिरता के चार मार्ग
लटकाए जा रहे हैं। क्योंकि बुद्ध ज्ञान-योगी हैं। वे अपने सहस्रार पिलाना पड़ता। वे मूर्छित ही पड़े हैं। वे डूब गए हैं अपने केंद्र में; की तरफ शुद्ध सूक्ष्म बुद्धि को मोड़ रहे हैं। क्राइस्ट अपने कर्म की वहां से लौटने के लिए शरीर को सम्हालना पड़ेगा। नहीं तो वे खतम धारा की तरफ। .
ही हो जाएंगे; शरीर सड़ जाएगा। __इसलिए ईसाइयत की सारी धारा कर्म की तरफ हो गई है। तो संन्यासी की हमने सेवा की, क्योंकि संन्यासी या तो ज्ञान या इसलिए सेवा धर्म बन गया। इसलिए ईसाई मिशनरी जैसी सेवा कर भक्ति की तरफ मुड़ा हुआ था। क्राइस्ट ने धारा मोड़ दी कर्म की सकता है, दुनिया के किसी धर्म का कोई मिशनरी वैसी सेवा नहीं तरफ। कर सकता। उसके कारण बहुत गहरे हैं। उसमें कोई कितनी ही कृष्ण कहते हैं, कोई कर्म की तरफ, निष्काम कर्म-योग के द्वारा नकल करे...।
| परमात्मा को देख लेते हैं। यहां हिंदुओं के बहुत-से समूह हैं, जो नकल करने की कोशिश | निष्काम कर्म-योग के द्वारा परमात्मा दूसरों में दिखाई पड़ेगा। करते हैं। पर वह नकल ही साबित होती है। क्योंकि वह उनकी मूल | निष्काम कर्म-योग के द्वारा परमात्मा चारों तरफ दिखाई पड़ने धारा नहीं है। क्राइस्ट की पूरी साधना सूक्ष्म हुई बुद्धि को कर्म की | लगेगा। जिसकी भी आप सेवा करेंगे, वहीं परमात्मा दिखाई पड़ने तरफ लगाने की है। फिर कर्म ही सब कुछ है। फिर वही पूजा है, | | लगेगा। क्योंकि वह सूक्ष्म यंत्र जो बुद्धि का है, अब उस पर लग वही प्रार्थना है।
गया। — इसलिए एक ईसाई फकीर कोढ़ी के पास जिस प्रेम से बैठकर एक बात सार की है कि शुद्ध हुई बुद्धि को जहां भी लगा दें, वहां सेवा कर सकता है, कोई हिंदू संन्यासी नहीं कर सकता। कोई जैन | परमात्मा दिखाई पड़ेगा। और अशुद्ध बुद्धि को जहां भी लगा दें, संन्यासी तो पास ही नहीं आ सकता, करने की तो बात बहुत दूर। | वहां सिवाय पदार्थ के और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ सकता है। कोढ़ी के पास! वह सोच ही नहीं सकता। वह अपने मन में सोचेगा, | ___ परंतु इससे दूसरे अर्थात जो मंद बुद्धि वाले पुरुष हैं, वे स्वयं इस ऐसे हमने कोई पाप कर्म ही नहीं किए, जो कोढ़ी की सेवा करें। प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व को जानने वाले पुरुषों से कोढ़ी की सेवा तो वह करे, जिसने कोई पाप कर्म किए हों। हमने | | सुनकर ही उपासना करते हैं और वे सुनने के परायण हुए भी ऐसे कोई पाप कर्म नहीं किए हैं।
मृत्युरूप संसार-सागर को निस्संदेह तर जाते हैं। हिंदू संन्यासी सोच ही नहीं सकता सेवा की बात, क्योंकि हिंदू लेकिन ये तीन बड़ी प्रखर यात्राएं हैं; ज्ञान की, भक्ति की, कर्म संन्यासी को खयाल ही यह है कि संन्यासी की सेवा दूसरे लोग | की, ये बड़ी प्रखर यात्राएं हैं। और कोई बहुत ही जीवट के पुरुष करते हैं। संन्यासी किसी की सेवा करता है! यह क्या पागलपन की | | इन पर चल पाते हैं। सभी लोग इतनी प्रगाढ़ता से, इतनी प्रखरता बात है कि संन्यासी किसी के पैर दबाए। संन्यासी के सब लोग पैर से, इतनी त्वरा और तीव्रता से, इतनी बेचैनी, इतनी अभीप्सा से नहीं दबाते हैं। .
चल पाते हैं। उनके लिए क्या मार्ग है? उसकी भी गलती नहीं है, क्योंकि वह जिस धारा से निष्पन्न हुआ तो कृष्ण कहते हैं, अर्थात वे दूसरे भी इस प्रकार न जानते हुए, है, वह ज्ञान-योग की धारा है। उसका कर्म से कोई लेना नहीं है। । दूसरों से, जिन्होंने जाना है, उनसे सुनकर भी उपासना करते हैं उसका सहस्रार से संबंध है। वह अपनी सारी चेतना को सहस्रार | | और सुनने में परायण हुए मृत्युरूप संसार-सागर को निस्संदेह तर की तरफ मोड़ लेता है। और जब कोई अपनी सारी चेतना को | | जाते हैं। सहस्रार की तरफ मोड़ लेता है, तो स्वभावतः दूसरों को उसकी सेवा ___ इसे थोड़ा समझ लेना चाहिए। क्योंकि हममें से अधिक लोग उन करनी पड़ती है, क्योंकि वह बिलकुल ही बेहाल हो जाता है। न उसे | | तीन कोटियों में नहीं आएंगे। हममें से अधिक लोग इस चौथी कोटि भोजन की फिक्र है, न उसे शरीर की फिक्र है। दूसरे उसकी सेवा | में आएंगे, जो तीनों में से किसी पर भी जा नहीं सकते, जो तीनों में करते हैं। इसलिए हमने संन्यासियों की सेवा की, क्योंकि वे समाधि | | से किसी पर जाने की अभी अभीप्सा भी अनुभव नहीं करते हैं। में जा रहे थे।
| लेकिन वे भी, जिन्होंने जाना है, अगर उनकी बात सुन लें-वह रामकृष्ण मूर्छित पड़े रहते थे छः-छः दिन तक। दूसरे उनकी | | भी आसान नहीं है जिन्होंने जाना है, उनकी बात सुन लें; और सेवा करते थे। छः दिन तक उनको दूध पिलाना पड़ता, पानी | | उनकी बात सुनकर उसमें परायण हुए, उसमें डूब जाएं, लीन हो
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