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गीता दर्शन भाग-60
इसलिए विश्वविद्यालय से निकलते-निकलते बुद्धि का होना पहले जरूरी है। करीब-करीब कुंठित हो जाती है। बुद्धि लेकर नहीं लौटते हैं। करीब-करीब जैसे आपके पास एक दूरवीक्षण यंत्र हो, आप उसे विद्यार्थी विश्वविद्यालय से, खोकर लौटते हैं। हां, कुछ तथ्य याद लगाकर आंख में और किसी भी तारे की तरफ मोड़ दे सकते हैं। करके, स्मृति भरकर लौट आते हैं। परीक्षा दे सकते हैं। लेकिन | | फिर जिस तरफ आप मोड़ेंगे, वही तारा प्रगाढ़ होकर प्रकट हो बुद्धिमत्ता नाम-मात्र को भी नहीं दिखाई पड़ती।
जाएगा। ठीक वैसे ही जब सूक्ष्म बुद्धि भीतर होती है, तो एक रास्ता तो आज अगर सारे विश्वविद्यालयों में उपद्रव हैं सारी दुनिया में, है उसे हृदय की तरफ मोड़ देना, उस सूक्ष्म बुद्धि को हृदय पर लगा तो उसका कारण, बुनियादी कारण यह है कि आप उनसे बुद्धिमत्ता देना ध्यानपूर्वक, तो उस हृदय के मंदिर में परमात्मा का आविष्कार तो छीन लिए हैं और केवल स्मृति उनको दे दिए हैं। स्मृति का | | कर लेते हैं। उपद्रव है। बुद्धिमत्ता बिलकुल, विजडम बिलकुल भी नहीं है। कितने ही अन्य उसे ज्ञान-योग के द्वारा देखते हैं...।
और बुद्धिमत्ता पैदा होती है बुद्धि की सूक्ष्मता से। कितना आप ___यह हृदय की तरफ लगा देना भक्ति-योग है। हृदय भक्ति का जानते हैं, इससे नहीं। क्या आप जानते हैं, इससे भी नहीं। कितनी | केंद्र है, प्रेम का। तो जब सूक्ष्म हुई बुद्धि को कोई प्रेम के केंद्र हृदय . परीक्षाएं उत्तीर्ण की, इससे भी नहीं। कितनी पीएच.डी. और | की तरफ लगा देता है, तो मीरा का, चैतन्य का जन्म हो जाता है। डी.लिट. आपके पास हैं, इससे भी नहीं। बुद्धिमत्ता उपलब्ध होती | कृष्ण कहते हैं, कितने ही उसे ज्ञान-योग के द्वारा...। है, कितनी सूक्ष्म बुद्धि आपके पास है, उससे।
वही सूक्ष्म बुद्धि है, लेकिन उसे हृदय की तरफ न लगाकर इसलिए यह भी हो सकता है कि कभी कोई बिलकुल अपढ़ | मस्तिष्क का जो आखिरी केंद्र है, सहस्रार, उसकी तरफ मोड़ देना। आदमी भी बुद्धि की सूक्ष्मता को उपलब्ध हो जाए। और यह तो | तो सहस्रार में जो परमात्मा का दर्शन करते हैं, वह ज्ञान-योग है। अक्सर होता है कि बहुत पढ़े-लिखे आदमी बुद्धि की सूक्ष्मता को __ और कितने ही निष्काम कर्म-योग के द्वारा देखते हैं...। उपलब्ध होते दिखाई नहीं पड़ते हैं। पंडित में और बुद्धि की सूक्ष्मता | कितने ही अपनी उस सूक्ष्म हुई बुद्धि को अपने कर्म-धारा की पानी जरा मश्किल है। बहत कठिन है। जरा मुश्किल संयोग है। तरफ लगा देते हैं। वे जो करते हैं, उस करने में उस सक्ष्म बद्धि कभी-कभी गांव के ग्रामीण में, चरवाहे में भी कभी-कभी बुद्धिमत्ता को समाविष्ट कर देते हैं। तो करने से मुक्त हो जाते हैं, कर्ता नहीं की झलक दिखाई पड़ती है। उसके पास बुद्धि का संग्रह नहीं है। | रह जाते। लेकिन एक सूक्ष्म बुद्धि हो सकती है।
ये तीन मार्ग हैं, भक्ति, ज्ञान, कर्म। भक्ति उत्पन्न होती है हृदय इसलिए कबीर जैसा गैर पढ़ा-लिखा आदमी भी परम ज्ञान को | से। जो बुद्धि है, वह तो एक ही है; जो उपकरण है, वह तो एक ही उपलब्ध हो जाता है।
है। उसी एक उपकरण को हृदय की तरफ बहा देने से भक्त जन्म परम ज्ञान का संबंध, आपके पास कितनी संपदा है स्मृति की, | जाता है। उसी उपकरण को सहस्रार की तरफ बहा देने से ज्ञानी का इससे नहीं है। परम ज्ञान का संबंध इससे है, आपके पास कितने जन्म हो जाता है, बुद्ध पैदा होते हैं, महावीर पैदा होते हैं। और उसी सूक्ष्मतम को पकड़ने की क्षमता है। आप कितने ग्राहक, कितने | | को कर्म की तरफ लगा देने से क्राइस्ट पैदा होते हैं, मोहम्मद पैदा रिसेप्टिव हैं। कितनी बारीक ध्वनि आप पकड़ सकते हैं, और | होते हैं। कितना बारीक स्पर्श, कितना बारीक स्वाद, कितनी बारीक | | मोहम्मद और क्राइस्ट न तो भक्त हैं और न ज्ञानी हैं, शुद्ध गंध...। क्योंकि भीतर सब बारीक है। बाहर सब स्थूल है, भीतर | | कर्म-योगी हैं। इसलिए हम सोच भी नहीं सकते, जो लोग सब सूक्ष्म है। जब भीतर के जगत को अनुभव करना हो, तो | ज्ञान-योग की धारा में बहते हैं, वे सोच ही नहीं सकते कि मोहम्मद सूक्ष्मता और शुद्धि की जरूरत है।
को तलवार लेकर और युद्धों में जाने की क्या जरूरत! हम सोच कृष्ण कहते हैं, शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान के द्वारा हृदय में | भी नहीं सकते कि क्राइस्ट को सूली पर लटकने की क्या जरूरत! देखते हैं...।
उपद्रव में पड़ने की क्या जरूरत! जब किसी के पास भीतर सूक्ष्म बुद्धि होती है, तो हृदय की तरफ क्रांति इत्यादि तो सब उपद्रव हैं। ये तो उपद्रवियों के लिए हैं। हम उसे मोड़ दिया जाता है। वह बहुत कठिन नहीं है। पर सूक्ष्म बुद्धि | | सोच भी नहीं सकते कि बुद्ध कोई बगावत कर रहे हैं और सूली पर
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