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पुरुष में थिरता के चार मार्ग
से जन्म लेना पड़ेगा। अब यह बड़ा जटिल विशियस सर्किल है। अगर इस हिंसा के लिए फिर से जन्म लेना पड़े, तो जन्म लेते से ही नई हिंसा शुरू जाएगी। तो फिर छुटकारे का कोई उपाय नहीं है। मुक्ति होगी कैसे ? जन्म-मरण से छुटकारा कैसे होगा? महावीर भी मानते हैं कि जैसे ही परम ज्ञान हो जाता है, फिर जो भी हो रहा है, उस होने से कोई बंध नहीं होता; उस होने से फिर कोई बंधन पैदा नहीं होता। तो ही मुक्ति संभव है, नहीं तो मुक्ति असंभव है। क्योंकि कुछ भी बाकी रहा, तो मुक्ति असंभव है। ज्ञान के बाद जो भी हो, उसका बंधन नहीं होगा। नहीं होगा इसलिए कि हम उसे कर नहीं रहे हैं। वह पुरानी क्रियाओं की इकट्ठी शक्ति के द्वारा हो रहा है। सच पूछें तो वह वर्तमान में हो ही नहीं रहा है । वह अतीत का ही हिस्सा है, जो आगे लुढ़का जा रहा है। जिस दिन आपका शरीर और आपका कर्म बिना पैडल चलाए साइकिल की तरह लुढ़कने लगते हैं और आप सिर्फ द्रष्टा रह हैं, उस दिन आपके लिए फिर कोई भविष्य, कोई जन्म, कोई जीवन नहीं है।
एक और मित्र ने पूछा है कि आपने कहा कि व्यक्ति जैसा भाव करता है, वैसा ही बन जाता है। तो क्या मुक्त होने के भाव को गहन करने से वह मुक्त भी हो सकता है?
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भी भी नहीं। क्योंकि मुक्त होने का अर्थ ही है, से मुक्त हो जाना। इसलिए संसार में सब कुछ हो | सकता है भाव से, मुक्ति नहीं हो सकती। मुक्ति संसार का हिस्सा नहीं है।
भाव है संसार का विस्तार या संसार है भाव का विस्तार | तो आप जो भी भाव से चाहें, वही हो जाएंगे। स्त्री होना चाहें, स्त्री; पुरुष होना चाहें, पुरुष; पशु होना चाहें, पशु, पक्षी होना चाहें, पक्षी; स्वर्ग में देवता होना चाहें तो, नरक में भूत-प्रेत होना चाहें तो, जो भी आप होना चाहें - एक मुक्ति को छोड़करअपने भाव से होते हैं और हो सकते हैं।
- आप
मुक्ति का अर्थ ही उलटा है। मुक्ति का अर्थ है कि अब हम कुछ भी नहीं होना चाहते। अब जो हम हैं, हम उससे ही राजी हैं। अब हम कुछ होना नहीं चाहते हैं।
जब तक आप कुछ होना चाहते हैं, तब तक आप जो हैं, उससे आप राजी नहीं हैं। कुछ होना चाहते हैं। गरीब अमीर होना चाहता है; स्त्री पुरुष होना चाहती है; दीन धनी होना चाहता है। कुछ होना चाहते हैं। पशु पुरुष होना चाहता है; पुरुष स्वर्ग में देवता होना चाहता है। लेकिन कुछ होना चाहते हैं, कुछ होना चाहते हैं।
होना चाहने का अर्थ है कि जो मैं हूं, उससे मैं राजी नहीं हूं; मैं कुछ और होना चाहता हूं। और जो आप हैं, वही आपका सत्य है। और जो भी आप होना चाहते हैं, वह झूठ है।
भाव से झूठ पैदा हो सकते हैं, सत्य पैदा नहीं होता। सत्य तो है ही । इसलिए सभी भाव असत्य को जन्माते हैं। सारा संसार | इसीलिए माया है, क्योंकि वह भाव से निर्मित है।
आप जो होना चाहते हैं, वह हो जाते हैं। जो आप हैं, वह तो आप हैं ही। वह इस होने के पीछे दबा पड़ा रहता है। जैसे राख में अंगारा दबा हो, ऐसे आपके होने में, बिकमिंग में आपका बीइंग, आपका अस्तित्व दबा रहता है।
जिस दिन आप थक जाते हैं होने से, और आप कहते हैं, अब कुछ भी मुझे होना नहीं है, अब तो जो मैं हूं, राजी हूं। अब मुझे कुछ भी नहीं होना है। अब तो जो मेरा होना है; वही ठीक है। मेरा अस्तित्व ही अब मेरे लिए काफी है। अब मेरी कोई वासना, कोई दौड़ नहीं है। जिस आपकी भाव की यात्रा बंद हो जाती है, आप मुक्त हो जाते हैं।
इसलिए भावना से आप मुक्त न हो सकेंगे। भावना संसार का | स्रोत है। भावना रुक जाएगी, तो आप मुक्त हो जाएंगे। यह कहना भी ठीक नहीं कि मुक्त हो जाएंगे; क्योंकि मुक्त आप हैं। भावना के कारण आप बंधे हैं। आपकी मुक्ति भावना के जाल में बंधी है। जिस दिन भावना का जाल गिर जाएगा, आप मुक्त हैं।
आप सदा मुक्त थे । मोक्ष कोई भविष्य नहीं है। और मोक्ष कोई स्थान नहीं है। ध्यान रहे, मोक्ष आपका स्वभाव है। आप जो हैं अभी, इसी वक्त, इसी क्षण, वही आपका मोक्ष है।
लेकिन वह आप होना नहीं चाहते। आप कुछ और होना चाहते हैं। कोई भी स्वयं होने से राजी नहीं है। कोई कुछ और होना चाहता | है, कोई कुछ और होना चाहता है।
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राजनीतिज्ञ रे पास आते हैं, वे साधु होना चाहते हैं। साधु मेरे | पास आते हैं, उनकी बातें सुनकर लगता है कि वे राजनीतिज्ञ होना चाहते हैं। गरीब अमीर होना चाहता है। अमीर मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं कि बुरे उलझ गए हैं, बड़ी मुसीबत में हैं। इससे तो