________________
ॐ पुरुष में थिरता के चार मार्ग
बिना किसी के आप सुखी-दुखी भी होते रहते हैं।
आप कहेंगे, हम चलेंगे किसलिए? चलने का कोई अर्थ ही न रहा, एक दफा यह आपको दिखाई पड़ जाए कि मैं बिना किसी के कोई प्रयोजन न रहा, कोई कारण न रहा, तो चलेंगे किसलिए? कोई सुखी-दुखी हो रहा हूं, तो आपको खयाल आ जाएगा कि दूसरे पागल तो नहीं हैं कि अकारण चलते रहें, जब कि कहीं पहुंचने को ज्यादा से ज्यादा आपको अपनी भावनाएं टांगने के लिए खूटी का | | नहीं है, कोई वासना नहीं है, कोई चाह नहीं है, कोई मंजिल नहीं है। काम करते हैं, इससे ज्यादा नहीं। वे निमित्त से ज्यादा नहीं हैं। । | हम कर्म करते हैं किसी वासना से। तो उन मित्र का पूछना
यही कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि तू निमित्त से ज्यादा नहीं| बिलकुल ठीक है कि जब वासना ही मिट गई और कर्म अभिनय है। तू यह खयाल ही छोड़ दे कि तू कर्ता है। उस कर्ता में ही कृष्ण | | है, यह समझ में आ गया; और कुछ पाने योग्य नहीं है, कुछ के लिए एकमात्र अज्ञान है।
पहुंचने योग्य नहीं है, यह दृष्टि स्पष्ट हो गई; तो कृष्ण का यह हमें समझ में आता है कि हिंसा करना बुरा है। हमें यह समझ में कहना कि फिर जो भी वर्तन हो, होने दें, फिर न कोई जन्म होगा, नहीं आता कि अहिंसा करना भी बुरा है। हिंसा करना बुरा है, | न वर्तन का कोई कर्म परिणाम होगा-इसका क्या अर्थ है? फिर क्योंकि दूसरे को दुख पहुंचता है, हमारा खयाल है। लेकिन कृष्ण वर्तन होगा ही क्यों? के हिसाब से हिंसा करना इसलिए बुरा है कि कर्ता का भाव बुरा है, यह थोड़ा जटिल और टेक्निकल है सवाल। इसे समझने की कि मैं कर रहा हूं। इससे अहंकार घना होता है।
कोशिश करें। अगर हिंसा करना बुरा है कर्ता के कारण, तो अहिंसा करना भी | | करीब-करीब बात ऐसी है कि आप एक साइकिल पर चल रहे उतना ही बरा है कर्ता के कारण। और कृष्ण कहते हैं, जड़ को ही हैं, पैडल चला रहे हैं। फिर आपने पैडल रोक दिए। पैडल रुकते काट दो; तुम कर्ता मत बनो। न तो तुम हिंसा कर सकते हो, न तुम से ही साइकिल नहीं रुक जाएगी। हालांकि रुक जाना चाहिए, अहिंसा कर सकते हो। तुम कुछ कर नहीं सकते। तुम केवल हो | | क्योंकि पैडल से चलती थी। पैडल चलाने से चलती थी, बिना सकते हो। तुम अपने इस होने में राजी हो जाओ। फिर जो कुछ हो | | पैडल चलाए साइकिल नहीं चल सकती थी। पैडल से चलती थी। रहा हो, उसे होने दो।
लेकिन आपने पैडल रोक दिए, तो भी साइकिल थोड़ी दूर जाएगी। और थोड़ी दूर जाना बहुत चीजों पर निर्भर होगा। थोड़ी दूर
बहुत दूर भी हो सकती है, अगर साइकिल उतार पर हो। अगर एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि अगर यह बात सच है |चढ़ाव पर हो, तो थोड़ी दूर बहुत कम दूर होगी। अगर समतल पर कि मैं कुछ न करने में ठहर जाऊं, पुरुष में ठहर जाऊं, | हो, तो भी काफी दूर होगी। अगर बिलकुल उतार हो, तो मीलों भी
अपने चैतन्य में साक्षी-भाव से रुक जाऊं, तो कृष्ण जा सकती है। साइकिल का पैडल बंद करते से साइकिल नहीं . कहते हैं, फिर जो भी वर्तन हो, उस वर्तन से कुछ भी | | रुकेगी, क्योंकि पैडल जो पीछे आपने चलाए थे अतीत में, उनसे
हानि-लाभ नहीं है, कोई पाप-पुण्य नहीं है। उन मित्र | | मोमेंटम पैदा होता है, उनसे गति पैदा होती है और चाकों में गति ने पूछा है कि जब मेरी सब चाह मिट गई, वासना | भर जाती है। वह गति काम करेगी। मिट गई, और जब मैंने अपने पुरुष को जान लिया, जिस दिन कोई व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध होता है और पुरुष में तो वर्तन होगा ही कैसे? जब मैं अपने आत्मा में ठहर | ठहर जाता है, तब भी शरीर में मोमेंटम रहता है। शरीर चाक की गया, तो वर्तन होगा ही कैसे?
| तरह गति इकट्ठी कर लेता है अनेक जन्मों में। अगर उतार पर यात्रा
हो, तो शरीर बहुत लंबा चल जाएगा।
___ इसलिए जिन लोगों को पैंतीस साल के पहले ज्ञान उपलब्ध हो गह बात सोचने जैसी है। यह सवाल उठेगा, क्योंकि हम || जाता है, उनको शरीर को लंबा चलाना बहुत कठिन है। क्योंकि 4 जितना भी वर्तन जानते हैं, वह चाह के कारण है। पैंतीस साल पीक है, पैंतीस साल के बाद शरीर में उतार शुरू होता
आप चलते हैं, क्योंकि कहीं पहुंचना है। कोई कहे कि है। इसलिए विवेकानंद, शंकर या क्राइस्ट, जो बहुत जल्दी ज्ञान को कहीं पहुंचने की जरूरत नहीं है, फिर चलना हो जितना, चलो। तो | | उपलब्ध हो गए, पैंतीस साल के पहले मर जाते हैं। शरीर में
337]