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0 गीता दर्शन भाग-60
भी गीता में अड़चन पाते हैं। मान लेते हैं, तो भी गीता उनको | | ठहरे हुए हो। तुम सिर्फ भावनाओं में जा सकते हो। दिक्कत देती है। कठिनाई मालूम पड़ती है।
__ एक आदमी सोच रहा है कि दूसरे को मार डालूं, चोट पहुंचाऊं। __ महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति को भी, जो गीता को माता कहते हैं, | | वह सब भावनाएं कर रहा है। वह जाकर शरीर को तोड़ भी सकता उनको भी गीता में तकलीफ है। क्योंकि यह हिंसा-अहिंसा उनको है। शरीर तक उसकी पहुंच हो जाएगी, क्योंकि शरीर टूटा ही हुआ भी सताती है। वे भी रास्ता निकालते हैं कोई। क्योंकि उनका मन | है। लेकिन वह जो भीतर चैतन्य था, उसको छू भी नहीं पाएगा। भी यह मानने की हिम्मत नहीं कर पाता कि कृष्ण जो कहते हैं, वह | | और अगर आपको लगता है कि आप छू पाए, तो अपने कारण ठीक ही कहते हैं कि काटो, कोई कटता नहीं। मारो, कोई मरता | नहीं, वह जो चैतन्य था भीतर, उसके भाव के कारण। अगर उसने नहीं। भयभीत मत होओ, डरो मत; तुम दूसरे को दुख पहुंचा नहीं | | मान लिया कि तुम मुझे मारने आए हो, तुम मुझे मार रहे हो, तुम सकते। इसलिए दूसरे को दुख न पहुंचाऊं, ऐसी चेष्टा भी व्यर्थ है। मुझे दुख दे रहे हो, तो यह उसका अपना भाव है। इस कारण तुम्हें
और मैंने दूसरे को दुख नहीं पहुंचाया, ऐसा अहंकार पागलपन है। लगता है कि तुम उसको दुख दे पाए। __ गांधी तक को तकलीफ होती है कि क्या करें। एक तरफ अहिंसा | ___ इसे हम ऐसा समझें। अगर आप महावीर को मारने जाएं, तो है। गांधी बुद्धि से जैन हैं, नब्बे प्रतिशत। जन्म से हिंदू हैं, दस | आप महावीर को दुख नहीं पहुंचा पाएंगे। बहुत लोगों ने मारा है प्रतिशत। तो गीता के साथ मोह भी है, लगाव भी है; कृष्ण को छोड़ और दुख नहीं पहुंचा पाए। महावीर के कानों में किसी ने खीले छेद भी नहीं सकते। और वह जो नब्बे प्रतिशत जैन होना है, क्योंकि दिए, लेकिन दुख नहीं पहुंचा पाए। क्यों? क्योंकि महावीर अब गुजरात की हवा जैनियों की हवा है। वहां हिंदू भी जैन ही हैं। उसके भावना नहीं करते। तम उन्हें दख पहंचाने की कोशिश करते हो. सोचने के तरीके के ढंग, वह सब जैन की आधारशिला पर निर्मित लेकिन वे दुख को लेते नहीं हैं। और जब तक वे न लें, दुख घटित हो गए हैं।
नहीं हो सकता। तुम-पहुंचाने की कामना कर सकते हो; लेने का तो गांधी गीता को भ्रष्ट कर देते हैं। वे फिर तरकीबें निकाल लेते | काम उन्हीं का है कि वे लें भी। जब तक वे न लें, तुम नहीं पहुंचा हैं समझाने की। वे कहते हैं, यह युद्ध वास्तविक नहीं है। यह युद्ध सकते। इसलिए महावीर को हम दुख नहीं पहुंचा सकते, क्योंकि तो मनुष्य के भीतर जो बुराई और अच्छाई है, उसका युद्ध है। यह | महावीर दुख लेने को अपने भीतर राजी नहीं हैं। कोई युद्ध वास्तविक नहीं है। और कृष्ण जो समझा रहे हैं आप उस व्यक्ति को दुख पहुंचा सकते हैं, जो दुख लेने को राजी काटने-पीटने को, यह बुराई को काटने-पीटने को समझा रहे हैं, | है। इसका अर्थ यह हुआ कि वह आपके कारण दुख नहीं लेता; मनुष्यों को नहीं। ये कौरव बराई के प्रतीक हैं: और ये पांडव भलाई| वह दुख लेने को राजी है, इसलिए लेता है। और अगर आप न के प्रतीक हैं। यह मनुष्य की अंतरात्मा में चलता शुभ और अशुभ | पहुंचाते, तो कोई और पहुंचाता। और अगर कोई भी पहुंचाने वाला का द्वंद्व है। बस, इस प्रतीक को पकड़कर फिर गीता में दिक्कत नहीं न मिलता, तो भी वह आदमी कल्पित करके दुख पाता। वह दुख रह जाती; फिर अड़चन नहीं रह जाती।
लेने को राजी था। वह कोई भी उपाय खोज लेता और दुखी होता। मगर यह बात सरासर गलत है। यह प्रतीक अच्छा है, लेकिन आप थोड़े दिन, सात दिन के लिए एक कमरे में बंद हो जाएं, यह बात गलत है। कृष्ण तो वही कह रहे हैं, जो वे कह रहे हैं। वे जहां कोई दुख पहुंचाने नहीं आता, कोई गाली नहीं देता, कोई क्रोध तो यह कह रहे हैं कि मारने की घटना घटती ही नहीं, इसलिए मार नहीं करवाता। आप चकित हो जाएंगे कि सात दिन में अचानक सकते नहीं हो, तो मारने की सोचो भी मत। पहली बात। और | आप किसी क्षण में दुखी हो जाते हैं, जब कि कोई दुख पहुंचाने बचाने का तो कोई सवाल ही नहीं है। बचाओगे कैसे? वाला नहीं है। और किसी क्षण में अचानक क्रोध से भर जाते हैं,
तुम दूसरे के साथ कुछ कर ही नहीं सकते हो; तुम जो भी कर | जब कि किसी ने कोई गाली नहीं दी, किसी ने कोई अपमान नहीं सकते हो, अपने ही साथ कर सकते हो! और जब तुम दूसरे को | | किया। और किसी समय आप बड़े आनंदित हो जाते हैं, जब कि भी मारते हो, तो तुम अपने को ही मार रहे हो। जब तुम दूसरे को कोई प्रेम करने वाला नहीं है। बचाते हो, तो तुम अपने को ही बचा रहे हो। कृष्ण यह कह रहे हैं . अगर सात दिन आप मौन में, एकांत में बैठे, तो आप चकित हो कि तुम अपने से बाहर जा ही नहीं सकते। तुम अपने पुरुष में ही जाएंगे कि आपके भीतर भावों का वर्तन चलता ही रहता है। और
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