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o गीता दर्शन भाग-60
कोई पहेली हल हो गई थी। खाना भूल जाएगा। पत्नी भूल जाएगी। पड़ता है। लेकिन वह जो गणित की पहेली है, वह नहीं भूलेगी। ___ इसलिए कहता हूं कि अगर आपने किसी को कभी प्रेम किया हो,
जहां प्रेम है, वहां एकाग्रता सहज फलित हो जाती है। एकाग्रता | | तो एक बात आपके खयाल में आई होगी कि आप जहां भी देखें, प्रेम की छाया है। आप चाहें भी तो फिर मन की एकाग्रता को तोड़ | आपको अपने प्रेमी की भनक अनुभव होगी। अगर प्रेमी आकाश में नहीं सकते। इसीलिए तो जब आप किसी के प्रेम में होते हैं और | देखे, तो तारों में उसकी प्रेयसी की आंख उसे दिखाई पड़ेगी। चांद उसे भुलाना चाहते हैं, तो बड़ी मुश्किल हो जाती है। जिससे प्रेम | | को देखे, तो प्रेयसी दिखाई पड़ेगी। सागर की लहरों को सुने, तो नहीं है, उसे याद करना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल | प्रेयसी की प्रतीति होगी। फूलों को खिलता देखे, कि कहीं कोई गीत है, जिससे प्रेम है उसे भुलाना।
| सुने, कि कहीं कोई वीणा का स्वर सुने, कि पक्षी सुबह गीत गाएं, जिससे प्रेम है, उसे भुलाइएगा कैसे? कोई उपाय नहीं है। भुलाने कि सूरज निकले, कि कुछ भी हो, इससे फर्क नहीं पड़ेगा। सब तरफ की कोशिश भी बस, उसको याद करने की कोशिश बनकर रह जाती से उसे एक ही खबर मिलती रहेगी और एक ही स्मरण पर चोट पड़ती है। और भुलाने में भी उसकी याद ही आती है, और कुछ भी नहीं रहेगी, और उसके हृदय में एक ही धुन बजती रहेगी। होता। और भुलाने में भी याद मजबूत होती है, पुनरुक्त होती है। जब कोई परमात्मा की तरफ इस भांति झुक जाता है कि फूल में
जहां प्रेम है, वहां एकाग्रता छाया की तरह चली आती है। वही दिखाई पड़ने लगता है: आकाश में उड़ते पक्षी में वही दिखाई इसलिए कृष्ण कहते हैं, मेरे में मन को एकाग्र करके! | पड़ने लगता है; कि घास पर जमी हुई सुबह की ओस में वही
एकाग्रता का अर्थ ही है, मुझमें अपने प्रेम को पूरी तरह डुबाकर; | | दिखाई पड़ने लगता है; तब समझना, भजन पूरा हुआ। मुझमें अपने हृदय को पूरी तरह रखकर या अपने हृदय में मुझे पूरी | | भजन का मतलब है, वही दिखाई पड़ता हो सब जगह। ऐसा मुंह तरह रखकर। प्रेम का अर्थ है, अपने को गंवाकर, अपने को | से राम-राम कहते रहने से भजन नहीं हो जाता। वह भी सब्स्टीटपट खोकर। मैं ही बचं; रोआं-रोआं मेरी ही याद करे। | है। जब अस्तित्व में अनुभव नहीं होता, तो आदमी मुंह से कहकर मेरे भजन और ध्यान में लगे हुए!
परिपूर्ति कर लेता है। मेरा ही गीत, मेरा ही नृत्य, उठते-बैठते जीवन की सारी क्रिया एक आदमी सुबह से राम-राम कहता चला जा रहा है। पास में मेरी ही स्मृति बन जाए। जहां भी देखें, मैं दिखाई पडूं। | खिले फूल में उसे राम नहीं दिखाई पड़ता। आकाश में सूरज ऊग __ अगर आपने कभी किसी को प्रेम किया है...। अगर इसलिए रहा है, उसे राम नहीं दिखाई पड़ता। वह अपने होंठों से ही राम-राम कहता हूं, क्योंकि प्रेम की घटना कम होती जाती है। प्रेम की चर्चा | कहे चला जा रहा है। बुरा नहीं है; कुछ और कहने से बेहतर ही है। बहुत होती है, प्रेम की कहानियां बहुत चलती हैं, प्रेम की फिल्में | कुछ न कुछ तो वह कहेगा ही। होंठ कुछ न कुछ करेंगे ही। बेहतर बहत बनती हैं। वे बनती ही इसलिए हैं कि प्रेम नहीं रहा है। वे | है; कुछ बुरा नहीं है; लेकिन यह भजन नहीं है। भजन तो यह है सब्स्टीटयूट हैं।
| कि चारों तरफ जो भी हो रहा है. वह सभी राम-मय हो जाए और भूखा आदमी भोजन की बात करता है। जिसके पास भोजन | | सभी में वही दिखाई पड़ने लगे। पर्याप्त है, वह भोजन की बात नहीं करता। नंगे आदमी कपड़े की | ___ जब तक आपको मंदिर में ही भगवान दिखाई पड़ता है, तब तक चर्चा करते हैं। और जब कोई आदमी कपड़े की चर्चा करता मिले, | समझना कि अभी आपको भगवान के मंदिर का कोई पता नहीं है। तो समझना कि नंगा है, भला कितने ही कपड़े पहने हो। क्योंकि जब तक आपको उसकी किसी बंधी हुई मूर्ति में ही उसकी प्रतीति हम जो नहीं पूरा कर पाते जीवन में, उसको हम विचार कर-करके | | होती है, तब तक समझना कि अभी आपको उसका कोई पता ही पूरा करने की कोशिश करते हैं।
नहीं है। अन्यथा सभी मूर्तियां उसकी हो जाएंगी। अनगढ़ पत्थर भी ___ आज सारी जमीन पर प्रेम की इतनी चर्चा होती है, इतने गीत | | उसी की मूर्ति होगा। रास्ते के किनारे पड़ी हुई चट्टान भी उसी की लिखे जाते हैं, इतनी किताबें लिखी जाती हैं, उसका कुल मात्र | | मूर्ति होगी। क्योंकि भजन से भरे हुए हृदय को सब तरफ वही सुनाई कारण इतना है कि जमीन पर प्रेम सूखता चला जा रहा है। अब पड़ने लगता है। चर्चा करके ही. फिल्म देखकर ही अपने को समझाना-सुलझाना यह जगत एक प्रतिध्वनि है। जो हमारे हृदय में होता है, वही हमें