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गीता में समस्त मार्ग हैं
बाइबिल जैसी टेन कमांडमेंट्स नहीं हैं, कि चोरी मत करो, यह मत करो, यह मत करो, यह मत करो। बल्कि उलटा यह कहा है कृष्ण ने कि अगर तुमको पता चल जाए कि यह पुरुष और प्रकृति अलग है, तो तुम जो हो, होने दो। फिर कोई बर्ताव हो, तुम्हारे लिए कोई बंधन नहीं है, कोई पाप नहीं है।
ईसाई बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है यह सोचकर, मुसलमान बड़ी दिक्कत में पड़ जाता है यह सोचकर कि गीता कैसा धर्म-ग्रंथ है! यह तो खतरनाक है।
अभी टर्की ने गीता पर नियंत्रण लगा दिया है, बंध लगा दिया है कि टर्की में गीता प्रवेश नहीं कर सकती। मेरे पास कुछ मित्रों ने पत्र लिखे हैं कि इसका आप भी विरोध करिए। गीता जैसी महान किताब पर टर्की ने क्यों प्रतिबंध लगाया ?
मैंने कहा, तुम्हें खुश होना चाहिए। कृष्ण को मरे पांच हजार साल हो गए होंगे और अभी भी गीता इतनी जिंदा है कि कोई मुल्क डरता है। खुश होना चाहिए। इसका मतलब है, गीता में अभी भी जान है, अभी भी ख़तरा और आग है। पर आग क्या है?
मुल्क में सब जगह विरोध हो गए। आर्यसमाजी हैं, फलां हैं, ढिकां हैं, जिनको विरोध करने का ही रस है, उन्होंने सबने विरोध कर दिया, प्रस्ताव कर दिए। और हमारे मुल्क में तो प्रस्ताव करने वालों की तो कोई कमी नहीं है। कि ऐसा नहीं होना चाहिए; बहुत बुरा हो गया; बड़ा अन्याय हो गया। लेकिन किसी ने खयाल न किया कि टर्की ने यह नियम लगाया क्यों है!
इस नियम के पीछे इस तरह के सूत्र हैं। क्योंकि यह भय मालूम पड़ता है कि अगर इस तरह की बात प्रचारित हो जाए, तो लोग . अनैतिक हो जाएंगे। यह भय थोड़ी दूर तक सच है । क्योंकि सामान्य आदमी अपने मतलब की बात निकाल लेता है।
गीता कहती है, जब पुरुष और प्रकृति का भेद स्पष्ट हो जाए, तो फिर कुछ भी बरतो, कोई पाप नहीं, कोई पुण्य नहीं, कोई बंधन नहीं; फिर कोई जन्म नहीं है। लेकिन पहली शर्त खयाल में रहे। अगर शर्त हटा दें हम, तो निश्चित ही एक अराजकता और अनैतिकता फैल सकती है। और तब टर्की अगर नियंत्रण लगाता हो कि गीता को मुल्क में नहीं आने देंगे, तो सामान्य आदमी को जो खतरा हो सकता है, उस खतरे की दृष्टि से ठीक ही है।
पर मैं तो खुश हुआ। खुश हुआ, क्योंकि इतनी पुरानी
किताबों पर कभी भी नियंत्रण नहीं लगते। क्योंकि जिंदा किताबें मर जाती हैं दो-चार-दस साल में। फिर उनसे कोई क्रांति-क्रांति
नहीं होती। पांच हजार साल ! उसके बाद भी कोई मुल्क चिंतित हो सकता है । तो उसका अर्थ है कि कोई चिंगारी, कोई बहुत विस्फोटक तत्व गीता में है ।
वह यही तत्व है, अनैतिक मालूम होता है।
अतिनैतिक है गीता का संदेश। सुपर इथिकल है। इथिकल तो बिलकुल नहीं है; नैतिक नहीं है। अतिनैतिक है। और उस | अतिनैतिकता को समझने में खतरा है। और जितनी ऊंचाई पर कोई चले, उतना ही डर है; गिर जाए, तो गड्ढे हैं बहुत बड़े । इस सूत्र को ठीक से समझ लेना ।
आपके मन में अगर कोई चाह बसी हो; मैं आपसे कहूं कि जो भी करना हो करो, कोई पाप नहीं है; और फौरन आपको खयाल आ जाए कि क्या करना है, तो आप समझ लेना कि आपके लिए अभी यह नियम नहीं है। यह सूत्र सुनकर, कि कुछ भी करो, कोई हर्ज नहीं है, आपके भीतर करने का कोई भी खयाल न उठे। यह सुनकर, कि कोई भी बरताव हो, कोई जन्म नहीं होगा; कोई दुख, कोई नरक नहीं होगा, और आपके भीतर कोई बरताव करने का खयाल न आए, तो यह सूत्र आपकी समझ में आ सकता है।
और तत्क्षण आपको लगे कि ऐसा? कुछ भी करो ! ले भागो पड़ोसी की पत्नी को !
क्योंकि मैंने सुना है, एक दफ्तर में ऐसा हो गया। दफ्तर के नौकर-चाकर ठीक से काम नहीं कर रहे थे, तो एक मनोवैज्ञानिक से सलाह ली मालिक ने | तो उसने कहा कि आप ऐसा करें, वहां एक तख्ती लगा दें। तख्ती में लिख दें कि जो भी कल करना है, वह आज करो; जो आज करना है, वह अभी करो। क्योंकि क्षणभर में प्रलय हो जाएगी, फिर कब करोगे! काल करै सो आज कर, आज करै सो अब; पल में परलै होएगी, बहुरि करोगे कब । तख्ती लगा दी बड़ी ।
दूसरे दिन मनोवैज्ञानिक पूछने आया कि क्या परिणाम हुआ । मालिक के सिर पर पट्टी बंधी थी। बिस्तर पर पड़े थे। उसने कहा, परिणाम? बरबाद हो गए ! क्योंकि टाइपिस्ट लड़की को लेकर भाग गया मुनीम । चिट्ठी लिख गया कि बहुत दिन से सोच रहा था कि कब भागूं । देखा कि काल करै सो आज कर, आज करै सो अब; पल में परलै होएगी, बहुरि करेगा कब । तो मैंने सोचा कि अब भागो । पल में परलै हो जाए, फिर कब करोगे!
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पर।
और वह जो आफिस बॉय था, उसने आकर जूते मार दिए सिर | क्योंकि वह कहता है, कई दिन से सोच रहे थे कि मारो। आफिस बॉय सोचता ही रहता है, कैसे मारें । उसको तो मालिक