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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 के जीवन को समझना बहुत कठिन है। क्योंकि कृष्ण बहुत रूप में कितना ही धोखा देना चाहे, सही और गलत कायम रहेगा। वासना हैं। और उस सब के पीछे कारण यही है कि कृष्ण का मौलिक | के साथ जुड़ा है सही और गलत का बोध। खयाल है कि जैसे ही पुरुष का भेद स्पष्ट हो गया, फिर सभी भांति __समझें इसे। आपको मैंने कह दिया कि न कुछ गलत है, न कुछ बर्तता हुआ भी व्यक्ति बंधन को उपलब्ध नहीं होता; जन्मों को | सही है। जैसा चाहो, वैसा बरतो। आप फौरन गए और चोरी कर उपलब्ध नहीं होता। वह सभी भांति बर्तता हुआ भी मुक्त होता है। | लाए। न कुछ गलत, न कुछ सही। लेकिन आपको चोरी का ही उसके वर्तन में आचरण और अनाचरण का भी कोई सवाल नहीं है। | खयाल क्यों आया सबसे पहले? फिर भी ठीक है। कुछ भी वर्तन आचरण और अनाचरण का सवाल भी तभी तक है, जब तक | करें। आप ज्ञानी हो गए हैं, तो अब कोई आपको बाधा नहीं है। जिंदगी सत्य मालूम होती है। और जब जिंदगी एक स्वप्न हो जाती | लेकिन कोई आपकी चोरी कर ले गया, तब आप पुलिस में रिपोर्ट है, तो आचरण और अनाचरण दोनों समान हो जाते हैं। करने चले। और रो रहे हैं और कह रहे हैं, यह बहुत बुरा हुआ। लेकिन एक सवाल उठेगा। तो क्या बुद्ध को और महावीर को मैंने तो सुना है, एक आदमी पर अदालत में मुकदमा चला। यह पता नहीं चला ? क्या उनको यह पता नहीं चला कि हम अलग नौवीं बार मुकदमा चला। जज ने उससे पूछा कि तू आठ बार सजा हैं? और जब उन्हें पता चल गया कि हम अलग हैं, तो फिर उन्होंने भुगत चुका। तू बार-बार पकड़ जाता है। कारण क्या है तेरे पकड़े क्यों चिंता ली? फिर क्यों वे पंक्तिबद्ध, रेखाबद्ध, एक व्यवस्थित जाने का? उसने कहा, कारण साफ है कि मुझे अकेले ही चोरी और संगत, गणित की तरह जीवन को उन्होंने चलाया? करनी पड़ती है। मेरा कोई साझीदार नहीं है। अकेले ही सब काम कुछ कारण हैं। वह भी व्यक्तियों की अपनी-अपनी भिन्नता, करना पड़ता है। तोड़ो दीवार, दरवाजे तोड़ो, तिजोरी तोड़ो, सामान अद्वितीयता का कारण है। निकालो, बांधो, ले जाओ। कोई सहयोगी, पार्टनर न होने से सब सुना है मैंने कि एक बहुत बड़ा संत नारोपा अपने शिष्य को तकलीफ है। समझा रहा था कि जीवन तो अभिनय है। और जीवन में न कुछ तो उस जज ने पूछा कि तो तू सहयोगी क्यों नहीं खोज लेता, जब गलत है और न कुछ सही है। नारोपा ने कहा है कि सही और गलत आठ बार पकड़ा चुका! तो उसने कहा कि अब आप देखिए, जमाना का खयाल ही संसार है। कोई कहता है, यह सही है और यह गलत इतना खराब है कि किसी पार्टनर का भरोसा नहीं किया जा सकता। है; इतना ही भेद अज्ञानी बना देता है। न कुछ सही है, न कुछ गलत __चोर भी भरोसा रखने वाला पार्टनर खोजता है। और दुकानदारी है। यह ज्ञान है। में तो चल भी जाए थोड़ी धोखाधड़ी, चोरी में नहीं चल सकती। तो उसके शिष्य ने कहा, आप तो बड़ी खतरनाक बात कह रहे चोरी में बिलकुल ईमानदार आदमी चाहिए। इसलिए चोरों में जैसे हैं। इसका मतलब हुआ कि हम जैसा चाहें वैसा आचरण करें? तो ईमानदार आपको मिलेंगे, वैसे दुकानदारों में नहीं मिल सकते। नारोपा ने कहा, तू समझा नहीं। जब तक तू कहता है, जैसा चाहें | | डाकुओं में, हत्यारों में जिस तरह की निष्ठा, भ्रातृत्व, भाईचारा वैसा आचरण करें, जब तक चाह है, तब तक तो तुझे यह पता ही | | मिलेगा, वैसा अच्छे आदमियों में मिलना मुश्किल है। क्योंकि वहां नहीं चल सकता जो मैं कह रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं कि जब इतनी बुराई है कि उस बुराई को टिकने के लिए इतना भाईचारा न अनुभव होता है स्वयं का, तो पता चलता है, न कुछ गलत है, न | | हो, तो बुराई चल नहीं सकती। कुछ सही है। क्योंकि यह सब खेल है। नारोपा ने कहा कि अगर तेरे भीतर चाह है, तो तू रुक। पहले लेकिन उसके शिष्य ने फिर कहा कि इसका तो मतलब यह हुआ चाह को छोड़। और जब तेरे भीतर कोई चाह न रहे, तब के लिए कि जो हम चाहें वह करें। नारोपा ने फिर कहा कि तू गलती कर रहा | | मैं कह रहा हूं कि फिर तू जैसा भी चाहे, वैसा बर्त। फिर कोई पाप है। जब तक तू चाहता है, तब तक मेरी बात तो तेरी समझ में ही | नहीं है, फिर कोई पुण्य नहीं है। नहीं आ सकती। जब सब चाह छोड़ देगा, तब तुझे यह खयाल | | इस तरह का विचार पश्चिम के नीति शास्त्रियों को बहुत अजीब आएगा। और तूने अगर मेरी बात का यह मतलब लिया कि जैसा लगता है। और वे सोचते हैं कि भारत में जो नीति पैदा हुई, वह चाहें हम करें, तो उसका तो अर्थ हुआ कि तू मेरी बात समझा ही | | इम्मारल है; वह नैतिक नहीं है। नहीं। चाह जिसके भीतर है, वासना जिसके भीतर है, वह तो | हमारे पास टेन कमांडमेंट्स जैसी चीजें नहीं हैं। परी गीता में 328
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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