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0 गीता दर्शन भाग-
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रोज ही मार रहा है। वह भी सोचता रहता है। उसने कहा कि जब लिखा ही है कि आज ही कर लो जो करना है, कल का कुछ भरोसा नहीं। तो उसने लगा दिए जूते।
जो कैशियर था, वह सब लेकर भाग गया। दफ्तर बंद पड़ा है। खूब कृपा की, उस मालिक ने कहा मनोवैज्ञानिक को, अच्छी तरकीब बताई। बरबाद कर डाला।
यह सूत्र आपके लिए नहीं है। यह सूत्र तभी है, जब पुरुष और प्रकृति का स्पष्ट बोध, भेद हो जाए, तो नीति का कोई बंधन नहीं है।
पांच मिनट रुकें। कीर्तन में सम्मिलित हों, और फिर जाएं।
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