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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 भीतर। वह नाटक नहीं है। उसको आप बहुत जोर से पकड़े हुए हैं। हाथों में नहीं। तो आप बैठकर राम-राम कर रहे हैं और भीतर नोट गिन रहे हैं। | __ जीसस के हाथों में खीलें ठोकने का कोई उपाय नहीं है। जीसस इधर राम-राम कर रहे हैं, वहां भीतर कुछ और चला रहे हैं। वहां को सूली देने का कोई उपाय नहीं है। जीसस जिंदा ही हैं। आप कोई हिसाब लगा रहे हैं कि वह नंबर दो के खाते में लिखना भूल शरीर को ही काट रहे हैं और मार रहे हैं। अगर जीसस भी शरीर गए हैं। या कल कैसे इनकम टैक्स वालों को धोखा देना है। वह | | से जुड़े हों, तो उनको भी पीड़ा होगी। तो वे भी रोएंगे, चिल्लाएंगे। भीतर चल रहा है। यहां राम-राम चल रहा है। | वे भी छाती पीटेंगे कि बचाओ; कोई मुझे बचा लो। यह क्या कर आप ध्यान रखिए कि राम-राम झूठा है, जो ऊपर चल रहा है। | रहे हो! क्षमा करो, मुझसे भूल हो गई। वे कुछ उपाय करेंगे। और असली भीतर चल रहा है। उससे आपका काफी तादात्म्य है। | लेकिन वे कोई उपाय नहीं कर रहे हैं। उलटे वे प्रार्थना करते हैं आप दुकानदार ही हो गए हैं। आपके पास कोई भीतर पृथक नहीं | | परमात्मा से कि इन सब को माफ कर देना, क्योंकि इनको पता बचा है, जो दुकानदार न हो। नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं। __ जैसे ही कोई व्यक्ति प्रकृति और पुरुष के फासले को थोड़ा-सा किस चीज के लिए जीसस ने कहा है कि इनको पता नहीं है, ये. स्मरण करने लगता है कि यह मैं नहीं हूं...। इतना ही स्मरण कि क्या कर रहे हैं? इस चीज के लिए जीसस ने कहा है कि जिसको यह मैं नहीं हूं। दुकान पर बैठे हुए, कि दुकान कर रहा हूं; जरूरी | ये सूली पर लटका रहे हैं, वह तो लटकाया नहीं जा सकता; और है, दायित्व है; काम है, उसे निपटा रहा हूं। लेकिन घर पहुंचकर, | | जिसको ये लटका रहे हैं, वह मैं नहीं हूं। इनको कुछ पता नहीं है स्नान करके अपने मंदिर के कमरे में आदमी प्रविष्ट हो गया। वह |कि ये क्या कर रहे हैं। ये मेरी भ्रांति में किसी और को सूली पर परदे के पीछे चला गया. नाटक के मंच से हट आया. सब छोड | लटका रहे हैं। यह मतलब है। इनको खयाल तो यही है कि मुझे आया बाहर। और घंटेभर शांति से बैठ गया बाहर दुनिया के। | मार रहे हैं, लेकिन मुझे ये कैसे मारेंगे? जिसको ये मार रहे हैं, वह इसका अभ्यास जितना गहन होता चला जाए, उतना ही योग्य | मैं नहीं हूं। और वह तो इनके बिना मारे भी मर जाता, उसके लिए है, उतना ही उचित है। तो धीरे-धीरे-धीरे कोई भी चीज आपको | | इतना आयोजन करने की कोई जरूरत न थी। और मैं इनके बांधेगी नहीं। कोई भी चीज बांधेगी नहीं। हो सकता है, जंजीरें भी | आयोजन से भी न मरूंगा। आपको बांध दी जाएं और कारागृह में आपको डाल दिया जाए, तो | इस भीतर के पुरुष का बोध जैसे-जैसे साफ होने लगेगा, भी आप स्वतंत्र ही होंगे। क्योंकि वह कारागृह में जो जंजीरें बांधेगे | वैसे-वैसे कृष्ण कहते हैं, फिर सब प्रकार से बर्तता हुआ...। जिसको, वह प्रकृति होगी। और आप बाहर ही होंगे। इसलिए कृष्ण का जीवन जटिल है। कृष्ण का जीवन बहुत अपने भीतर एक ऐसे तत्व की तलाश ही अध्यात्म है. जिसको | जटिल है। और जो तर्कशास्त्री हैं, नीतिशास्त्री हैं, और जो नियम बांधा न जा सके, जो परतंत्र न किया जा सके, जो सदा स्वतंत्र है, से जीते और चलते और सोचते हैं, उन्हें कृष्ण का जीवन बहुत जो स्वतंत्रता है। यह पुरुष ऐसी स्वतंत्रता का ही नाम है। और सारे | असंगत मालूम पड़ता है। आध्यात्मिक यात्रा का एक ही लक्ष्य है कि आपके भीतर उस तत्व ___ एक मित्र ने सवाल पूछा है कि कृष्ण अगर भगवान हैं, तो वे की तलाश हो जाए, जिसको दुनिया में कोई सीमा न दे सके, कोई छल-कपट कैसे कर सके? जंजीर न दे सके, कोई कारागृह में न डाल सके। जिसका मुक्त होना | स्वभावतः, छल-कपट हम सोच ही नहीं सकते, नैतिक आदमी स्वभाव है। कैसे छल-कपट कर सकता है! और छल-कपट करके वह कैसे इसका यह मतलब नहीं है कि आप कृष्ण को जंजीरें नहीं डाल भगवान हो सकता है! और वचन दिया था कि शस्त्र हाथ में नहीं सकते। इसका यह मतलब नहीं है कि बुद्ध को कारागृह में नहीं | | लूंगा और अपना ही वचन झुठला दिया। ऐसे आदमी का क्या डाला जा सकता। जीसस को हमने सूली दी ही है। लेकिन फिर भी | | भरोसा जो अपना ही आश्वासन पूरा न कर सका और खुद ही अपने आप जीसस को सूली नहीं दे सकते। जिसको आप सूली दे रहे | आश्वासन को झूठा कर दिया! हैं, वह प्रकृति ही है। और जब आप जीसस के हाथ में खीलें ठोक | | हमें तकलीफ होती है। हमें बड़ी अड़चन होती है। कृष्ण बेबूझ रहे हैं, तो आप प्रकृति के हाथ में खीलें ठोक रहे हैं, जीसस के मालूम पड़ते हैं। कृष्ण को समझना कठिन मालूम पड़ता है। 3261
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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