SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-6600 देखने की वासना उसमें प्रगाढ़ थी। और देखना है, क्योंकि देखे | उसके योग्य इंद्रिय पैदा हो जाती है। उसकी चाह की छाया है। बिना जिंदगी एकदम बे-रौनक हो गई। यह जरा कठिन होगा। क्योंकि अक्सर हम कहते हैं कि इंद्रियों __ आप सोच नहीं सकते कि जिसके पास आंख रही हों और आंखें | के कारण वासना है। गलत है बात। वासनाओं के कारण इंद्रियां हैं। नाएं, उसकी जिंदगी एकदम अस्सी प्रतिशत समाप्त हो गई। इसीलिए तो ज्ञानी कहते हैं कि जब वासनाएं समाप्त हो जाएंगी, तो क्योंकि सब रंग खो गए; जिंदगी से सारी रंगीनी खो गई; सब चेहरे | | तुम जन्म न ले सकोगे। जन्म न ले सकने का मतलब यह है कि खो गए; सब रूप खो गए। ध्वनियों का एक उबाने वाला | तुम फिर इंद्रियां और शरीर को ग्रहण न कर सकोगे। क्योंकि इंद्रियां मोनोटोनस जगत रह गया, जहां कोई रंग नहीं, जहां कोई रूप नहीं। और शरीर मूल नहीं हैं, मूल वासना है। तुम जिस घर में पैदा हुए तो उसकी देखने की प्रगाढ़ आकांक्षा उसमें पैदा हुई। और उसने | | हो, वह भी तुम्हारी वासना है। तुम जिस योनि में पैदा हुए हो, वह हाथ से चीजों को टटोलना शुरू किया। और धीरे-धीरे उसकी | भी तुम्हारी वासना है। अंगुलियां आंखों जैसा काम करने लगीं। अब तो उस पर बड़े इधर मैं एक बहुत अनूठे अनुभव पर आया। कुछ लोगों के वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं। वह आपके चेहरे के पास अंगुलियों को पिछले जन्मों के संबंध में मैं काम करता रहा हूं, कि उनके पिछले. लाकर, बिना छुए, हाथ घुमाकर कह सकती है कि चेहरा सुंदर है | जीवन की स्मृतियों में उन्हें उतारने का प्रयोग करता रहा हूं। एक या कुरूप है-बिना छुए! | चकित करने वाला अनभव हआ। वह अनभव यह हआ कि परुष तो वैज्ञानिक कहते हैं कि उसके हाथ आपके चेहरे से निकलती | तो अक्सर पिछले जन्मों में भी पुरुष होते हैं, लेकिन अक्सर स्त्रियां किरणों के स्पर्श को अनुभव करने लगे। और सच तो बात यही है। | जन्म में बदलती हैं। जैसे अगर कोई पिछले जन्म में स्त्री थी, तो कि आंख भी चमड़ी ही है। हाथ भी चमड़ी है। आंख की चमड़ी ने | | इस जन्म में पुरुष हो जाती है। एक स्पेशिएलिटी, एक विशेष गुण पैदा कर लिया है देखने का। तो शायद स्त्रियों के मन में गहरी वासना पुरुष होने की होगी। कोई वजह नहीं है कि हाथ की चमड़ी वैसा गुण क्यों पैदा न कर ले! | स्त्रियों की परतंत्रता, शोषण के कारण स्त्रियों के मन में वासना होती कुछ पशु हैं, जो पूरे शरीर से सुनते हैं। उनके पास कोई कान | | है कि पुरुष होती तो अच्छा था। प्रगाढ़...। और जीवनभर का नहीं है। पूरा शरीर ही कान का काम करता है। आप रात को | अनुभव उनको कहता है कि पुरुष होती तो अच्छा था। चमगादड़ देखते हैं। चमगादड़ कभी दिन में भी घर में घुस आता । लेकिन पश्चिम में स्त्रियों की स्वतंत्रता बढ़ रही है। पचास-सौ है। उसे दिन में दिखाई नहीं पड़ता। उसकी आंखें खुल नहीं सकतीं। | वर्ष के बाद यह बात मिट जाएगी। स्त्रियां स्त्री योनि में जन्म ले लेकिन आपने कभी खयाल किया हो, न किया हो; ठीक चमगादड़ सकेंगी; वह वासना क्षीण हो जाएगी। दीवाल के बिलकुल किनारे आकर चार-छः अंगुल की दूरी से लौट अक्सर ऐसा होता है कि जो ब्राह्मण घर में है, वह दूसरे जन्म में जाता है, टकराता नहीं। टकराने को होता है और लौट जाता है। | भी ब्राह्मण घर में है; उसके पीछे भी ब्राह्मण घर में है। क्योंकि और आंख उसकी देखती नहीं। | ब्राह्मण घर का बेटा एक दफा ब्राह्मण घर का अहंकार और दर्प तो वैज्ञानिक उस पर बहुत काम करते हैं। तो उसका पूरा शरीर अनुभव किया हो, तो किसी और घर में पैदा नहीं होना चाहेगा। वह दीवाल की मौजूदगी को छः इंच की दूरी से अनुभव करता है। | उसकी वासना नहीं है। लेकिन शूद्र अक्सर बदल लेंगे। एक जन्म इसलिए वह करीब आ जाता है टकराने के, लेकिन टकराता नहीं। | में शूद्र है, तो दूसरे जन्म में वह दूसरे वर्ण में प्रवेश कर जाएगा। हां, आप उसको घबड़ा दें और परेशान कर दें, तो टकरा जाएगा। | उसकी गहरी वासना उस शूद्र के वर्ण से हट जाने की है। वह भारी लेकिन अपने आप वह टकराता नहीं। बिलकुल पास आकर हट है, कष्टपूर्ण है, वह बोझ है; उसमें होना सुखद नहीं है। जाता है। राडार है उसके पास, जो छः इंच की दूरी से उसको स्पर्श | तो हम जो वासना करते हैं, उस तरफ हम सरकने लगते हैं। का बोध दे देता है। दिन में उसके पास आंख नहीं है, लेकिन बचाव | | हमारी वासना हमारे आगे-आगे चलती है और हमारे जीवन को की सुविधा तो जरूरी है। उसका पूरा शरीर अनुभव करने लगा है। | पीछे-पीछे खींचती है। उसका पूरा शरीर संवेदनशील हो गया है। कृष्ण कहते हैं, यह जो प्रकृति से फैला हुआ संसार है, हमारे हमारे भीतर वह जो छिपा हुआ पुरुष है, वह जो भी चाहता है, | भीतर छिपा हुआ पुरुष ही इसे भोगता है और गुणों का संग ही 322
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy