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O गीता में समस्त मार्ग हैं 0
का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानंदघन होने से | | हैं, किसी को मित्र कहते हैं। वे सब संबंध हैं, जो आपने निर्मित परमात्मा, ऐसा कहा गया है।
कर लिए हैं। वैसे संबंध कहीं हैं नहीं; सिर्फ भावों में है। परंतु प्रकृति में स्थित हुआ ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए सब कृष्ण कह रहे हैं कि यह जो प्रकृति है चारों तरफ, उससे उत्पन्न पदार्थों को भोगता है...।
हुए ये जो सारे पदार्थ हैं, इनको आप भोगते हैं अपने ही भाव से। वह जो भीतर चैतन्य है, वह जो पुरुष है, उसके बाहर चारों तरफ | | और इन भावों के कारण ही अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेते हैं। जो प्रकृति का त्रिगुण विस्तार है, यह पुरुष ही सभी स्थितियों में | आप जैसा भाव करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। भाव जन्मदाता है। प्रकृति से संबंधित होता है। प्रकृति किसी भी स्थिति में पुरुष से| आप जैसा भाव करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। आप जो मांगते हैं, संबंधित नहीं होती। पहली तो बात यह खयाल में ले लें। | बड़े दुख की बात यही है कि वही मिल जाता है। जो कुछ भी आप
आप अपने मकान में हैं। आप कहते हैं, मेरा मकान। मकान हैं, वह आपकी ही वासनाओं का परिणाम है। कभी नहीं कहता कि आप मेरे हैं। और आप कल चले जाएंगे, तो | | थोड़ा खयाल करें, कितनी वासनाएं आप करते हैं! और जिन मकान रोएगा नहीं। मकान गिर जाएगा, तो आप रोएंगे। बहुत मजे | वासनाओं को आप करते हैं, धीरे-धीरे-धीरे उन वासनाओं को पूरा की बात है। मकान धेला भर भी आपकी चिंता नहीं करता; आप करने के योग्य आप हो जाते हैं। वैज्ञानिक भी कहते हैं, डार्विन ने बड़ी चिंता करते हैं।
प्रस्तावित किया है कि मनुष्य के पास जो-जो इंद्रियां हैं, वे इंद्रियां आपकी कार बिगड़ जाए, तो आंसू निकल आते हैं। जिस जमीन | | भी मनुष्य की वासनाओं से ही जन्मी हैं। पर आप खून-खराबा कर सकते हैं, जान दे सकते हैं, वह जमीन __आपके पास आंख है, इसलिए आप देखते हैं, यह बात ठीक आपकी रत्तीभर भी चिंता नहीं करती। बहुत पहले आप जैसे पागल | नहीं है। आप देखना चाहते थे, इसलिए आंख पैदा हुई। जिराफ है, और भी उस पर जान दे चुके हैं। जिस जमीन को आप अपना कहते | | उसकी लंबी गर्दन है। तो डार्विन कहता है कि जिराफ की इतनी लंबी हैं, आप नहीं थे, तब भी वह थी। कोई और उसको अपना कह रहा | | गर्दन क्यों है? ऊंट की इतनी लंबी गर्दन क्यों है? था। न मालूम कितने लोग दावा कर चुके। और दावेदार समाप्त हो हम तो ऊपर से यही देखते हैं कि ऊंट की इतनी लंबी गर्दन है, जाते हैं और जिस पर दावा किया जाता है, वह बना है। | इसलिए झाड़ पर कितने ही ऊंचे पत्ते हों, उनको तोड़कर खा लेता
प्रकृति आपसे कोई संबंध स्थापित नहीं करती। आप ही प्रकृति है। लेकिन विकासवादी कहते हैं कि झाड़ के ऊंचे पत्ते पाने के लिए से संबंध स्थापित करते हैं। आप ही संबंध बनाते हैं, आप ही तोड़ते | | ही जो वासना है उसकी, वही उसकी गर्दन को लंबा कर देती है हैं। संबंध बनाकर आप ही सुख पाते हैं, आप ही दुख पाते हैं। यह नहीं तो उसकी गर्दन लंबी नहीं हो जाएगी। और जंगल में बड़ा निपट आप पर ही निर्भर है। कुछ भी प्रकृति की उत्सुकता नहीं है संघर्ष है। क्योंकि नीचे के पत्ते तो कोई भी जानवर खा जाते। कि आपको दुख दे कि सुख दे। आप अपना सुख-दुख अपने हाथ | | जिसकी गर्दन जितनी ऊंची होगी, वह उतनी देर तक सरवाइव कर से निर्मित करते हैं।
| सकता है; उसका बचाव उतनी देर तक हो सकता है। और इसलिए एक मजे की घटना घटती है। जिस चीज से तो डार्विन और उनके अनुयायी कहते हैं कि यह ऊंट है, जिराफ आपको सुख मिलता है, आपकी दृष्टि बदल जाए, उसी से दुख है, यह सरवाइवल आफ दि फिटेस्ट, वह जो बचाव करने में सक्षम मिलने लगता है। चीज वही है। जिस चीज से आपको दुख मिलता है अपने को, वह वही इंद्रियां पैदा कर लेता है, जिनकी उसकी वासना है, दृष्टि बदल जाए, उसी से सुख मिलने लगता है। चीज वही है। है। लंबी गर्दन के कारण ऊंट बड़े वृक्षों के पत्ते नहीं खाता है, बड़े पर आपकी दृष्टि बदली कि सारा अर्थ बदल जाता है। आपका | | वृक्षों के पत्ते खाना चाहता है, इसलिए उसके पास लंबी गर्दन है। खयाल बदला कि सारा संसार बदल जाता है।
आप जो देखते हैं, वह आंख के कारण नहीं देखते हैं; देखने की आप वस्तुओं के संसार में नहीं रहते, आप भावों और विचारों के वासना है भीतर, इसलिए आंख है। और इसकी बड़ी अदभुत संसार में रहते हैं। वस्तुएं तो बहुत दूर हैं, उनसे आपका कोई संबंध कभी-कभी घटनाएं घटी हैं। नहीं है। आ
वों को फैलाकर सेतु बनाते हैं, वस्तुओं से| | रूस में एक महिला अंधी हो गई। उसे देखने का रस तो लग संबंधित हो जाते हैं। किसी को पत्नी कहते हैं, किसी को पति कहते | गया था। देखा था उसने बहुत दिनों तक, फिर अंधी हो गई। और
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