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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 और बड़ा विवाद है कि कृष्ण ऐसा क्यों कहते हैं! ही मर जाते हैं। भोजन पूरा दिया जाए, चिकित्सा परी दी जाए, सिर्फ अगर शंकर लिखेंगे टीका, तो निश्चित ही उनको बड़ी अड़चन | मां की ऊष्मा, वह जो मां की गरमी है प्रेम की, वह उनको न मिले। मालूम पड़ेगी कि भक्ति-योग श्रेष्ठ! बहुत मुश्किल होगा। फिर | अगर उनको किसी और की गरमी और ऊष्मा और प्रेम दिया जाए, तोड़-मरोड़ होगी। फिर कृष्ण के मुंह में ऐसे शब्द डालने पड़ेंगे, जो तो भी उनके भीतर कुछ कमी रह जाती है, जो जीवनभर उनका पीछा उनका प्रयोजन भी न हो। इस तोड़-मरोड़ के करने की कोई भी करती है। जरूरत नहीं है। मनसविद कहते हैं कि जब तक हम इस जमीन पर और बेहतर मेरी दृष्टि ऐसी है कि जब भी दो व्यक्तियों के बीच कोई संवाद | | माताएं पैदा नहीं कर सकते, तब तक दुनिया को बेहतर नहीं किया होता है, तो इसमें बोलने वाला ही महत्वपूर्ण नहीं होता, सुनने वाला जा सकता। और प्रेमपूर्ण माताएं जब तक हम पैदा नहीं करते, भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि जिससे बात कही गई है, वह दुनिया में युद्ध बंद नहीं किए जा सकते, घृणा बंद नहीं की जा भी समाविष्ट है। जब कृष्ण कहते हैं कि भक्ति का मार्ग श्रेष्ठ है, तो सकती, वैमनस्य बंद नहीं किया जा सकता। क्योंकि आदमी के पहली तो बात यह है कि अर्जुन के लिए भक्ति का मार्ग श्रेष्ठ है। | भीतर कुछ मौलिक तत्व, प्रेम के न मिलने से, अविकसित रह जाता दूसरी बात यह जान लेनी चाहिए कि अर्जुन जैसे सभी लोगों के | है। और वह जो अविकसित तत्व भीतर रह जाता है, वही जीवन लिए भक्ति का मार्ग श्रेष्ठ है। और अर्जुन जैसे लोगों की संख्या का सारा उपद्रव है। घृणा, हिंसा, क्रोध, हत्या, विध्वंस, सब उस बहुत बड़ी है। थोड़ी नहीं, सौ में निन्यानबे लोग ऐसे हैं, जिनके लिए अविकसित तत्व से पैदा होते हैं। भक्ति का मार्ग श्रेष्ठ है। क्योंकि निर्विचार होना अति दुरूह है। अगर आपके भीतर प्रेम की एक सहज-स्वाभाविक भूख लेकिन प्रेम से भर जाना इतना दुरूह नहीं है। क्योंकि प्रेम एक है-जो कि है। आप प्रेम चाहते भी हैं, और आप प्रेम करना भी नैसर्गिक उदभावना है। और निर्विचार होने के लिए तो आपको | चाहते हैं। कोई आपको प्रेम करे, इसकी भी गहन कामना है। बहुत सोचना पड़ेगा कि क्यों निर्विचार हों! लेकिन प्रेम से भरने के | क्योंकि जैसे ही कोई आपको प्रेम करता है, आपके जीवन में मूल्य लिए बहुत सोचना न होगा। प्रेम एक स्वाभाविक भूख है। पैदा हो जाता है। लगता है, आप मूल्यवान हैं। जगत आपको निर्विचार कौन होना चाहता है? शायद ही कोई आदमी मिले। चाहता है। कम से कम एक व्यक्ति तो चाहता है। कम से कम एक लेकिन प्रेम से कौन नहीं भर जाना चाहता? शायद ही कोई आदमी व्यक्ति के लिए तो आप अपरिहार्य हैं। कम से कम कोई तो है, जो मिले, जो प्रेम से न भर जाना चाहता हो! आपकी गैर-मौजूदगी अनुभव करेगा; आपके बिना जो अधूरा हो जो आदमी प्रेम में जरा भी उत्सुक न हो, निराकार उसका रास्ता जाएगा। आप न होंगे, तो इस जगत में कहीं कुछ जगह खाली हो है। लेकिन आपकी अगर जरा-सी भी उत्सुकता प्रेम में हो, तो जाएगी, किसी हृदय में सही। साकार आपका रास्ता है। क्योंकि जो आपके भीतर है, उसके ही जैसे ही कोई आपको प्रेम करता है, आप मूल्यवान हो जाते हैं। रास्ते से चलना आसान है। और जो आपमें छिपा है, उसको ही | अगर आपको कोई भी प्रेम नहीं करता, तो आपको कोई मूल्य नहीं रूपांतरित करना सुगम है। और जो आपके भीतर अभी मौजूद ही | मालूम पड़ता। आप कितने ही बड़े पद पर हों, और कितना ही धन है, उसी को सीढ़ी बना लेना उचित है। | इकट्ठा कर लें, और आपकी तिजोड़ी कितनी ही बड़ी होती जाए, प्रेम की गहन भूख है। आदमी बिना भोजन के रह जाए, बिना लेकिन आप समझेंगे कि आप निर्मूल्य हैं; आपका कोई मूल्य नहीं है। प्रेम के रहना बहुत कठिन है। और जो लोग बिना प्रेम के रह जाते | क्योंकि प्रेम के अतिरिक्त और कोई मूल्य का अनुभव होता ही नहीं। हैं, वे आदमी हो ही नहीं पाते। लेकिन इतना ही काफी नहीं है कि कोई आपको प्रेम करे। इससे अभी मनसविद बहुत खोज करते हैं। और मनसविद कहते हैं भी ज्यादा जरूरी है कि कोई आपका प्रेम ले। ठीक जैसे आप श्वास कि अब तक खयाल में भी नहीं था कि प्रेम के बिना आदमी जीवित | | लेते हैं और छोड़ते हैं। सिर्फ आप श्वास लेते चले जाएं, तो मर न रह सकता है, न बढ़ सकता है, न हो सकता है। जाएंगे। आपको श्वास छोड़नी भी पड़ेगी। श्वास लेनी भी पड़ेगी जिन बच्चों को मां के पास न बड़ा किया जाए और बिलकुल और श्वास छोड़नी भी पड़ेगी, तभी आप जिंदा और ताजे होंगे; और प्रेमशून्य व्यवस्था में रखा जाए, वे बच्चे पनप नहीं पाते और शीघ्र | तभी आपकी श्वास नई और जीवंत होगी। प्रेम लेना भी पड़ेगा और
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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