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प्रेम का द्वार ः भक्ति में प्रवेश
जाओ, जहां कोई विचार का बादल न रह जाए, परमात्मा के विचार | तुम्हारे भीतर रत्तीभर जगह खाली न बचे। का भी नहीं।
ध्यान रखें, निराकार का साधक कहता है, तुम्हारे भीतर रत्तीभर बुद्ध कहते हैं, कोई मोक्ष नहीं है। क्योंकि मोक्ष की धारणा भी जगह भरी न रहे; सब खाली हो जाए। जिस दिन तुम पूरे खाली हो तुम्हारे मन में रह जाएगी, वह भी कामना बनेगी, इच्छा बनेगी; वह जाओगे, उस दिन वह घटना घट जाएगी, जिसकी तलाश है। भी तुम्हारे मन को आच्छादित कर लेगी। तुम बिलकुल खाली, | भक्ति का मार्ग कहता है, तुम्हारे भीतर जरा-सी भी जगह खाली शून्य हो जाओ। तुम कोई धारणा, कोई विचार मत बनाओ। | | न बचे। तुम इतने भर जाओ कि वही रह जाए, तुम न बचो। क्योंकि ___ इसलिए बुद्ध ईश्वर को, मोक्ष को, आत्मा तक को इनकार कर वह जो खाली जगह है, उसी में तुम बच सकते हो। वह जो खाली देते हैं। इसलिए नहीं कि ईश्वर नहीं है; इसलिए नहीं कि आत्मा जगह है, उसी में तुम छिप सकते हो। तो तुम्हारे विचार, तुम्हारे भाव, नहीं है; इसलिए भी नहीं कि मोक्ष नहीं है। बल्कि इसीलिए ताकि तुम्हारी धड़कनें, सब उसी की हो जाएं। अनन्य भक्ति का अर्थ यह तुम शून्य हो सको। और जिस दिन तुम शून्य हो जाओगे, तुमने होता है। जैसे प्रेमी अपनी प्रेयसी से भर जाता है या प्रेयसी अपने प्रेमी जो पूछा था कि मोक्ष है या नहीं, पूछा था कि ईश्वर है या नहीं, से भर जाती है, उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचता। वह तुम जान ही लोगे। इसलिए उसकी कोई चर्चा करनी बुद्ध ने अगर आप प्रेम में हैं, तो यह सारा संसार खो जाता है, बस जरूरी नहीं समझी।
आपका प्रेमी बचता है। आप खाना भी खाते हैं, लेकिन खाते समय - इस कारण बुद्ध को लोगों ने समझा नास्तिक। असल में जो भी प्रेमी ही आपके भीतर होता है। आप रास्ते पर चलते भी हैं, निराकार को मानता है, वह नास्तिक मालूम पड़ेगा ही। क्योंकि सभी | बाजार में भी जाते हैं, दुकान पर भी बैठते हैं, काम भी करते हैं; आकार इनकार करने हैं। सभी आकार तोड़ डालने हैं। सारी मूर्तियां | | सब होता रहता है; लेकिन भीतर चौबीस घंटे उसी की धुन बजती सारी प्रतिमाएं चित्त से हटा देनी हैं। सारे मंदिर, मस्जिद विदा कर रहती है। प्रेमी मौजूद रहता है। उठने में, बैठने में, चलने में, सोते देने हैं। कुछ भीतर न बचे। भीतर खालीपन रह जाए। उस खालीपन | में, सपने में, वही छा जाता है। साधारण प्रेमी भी! में ही निराकार का संस्पर्श होगा। क्योंकि जो मैं हो जाऊं, उसी को | ___ परमात्मा के प्रेम में पड़ना असाधारण प्रेम है। भक्त बचे ही न, मैं जान सकूँगा। बुद्ध इनकार कर देते हैं, ताकि आप शून्य हो सकें। इतना भर जाए।
अर्जुन पूछता है, ऐसे लोग हैं, ऐसे साधक, खोजी हैं, सिद्ध हैं, अर्जुन पूछता है, ऐसे दो मार्ग हैं। बड़े उलटे मालूम पड़ते हैं। क्या वे उत्तम हैं? या वे लोग जो प्रेम से, अनन्य भक्ति से आपको एक तरफ निराकार है और निर्विचार होना है। और एक तरफ खोजते हैं?
साकार आप हैं; और सब भांति आपकी भक्ति से ही परिपूर्ण रूप प्रेम की पकड़ बिलकुल दूसरी है। निर्विचार होना है, तो खाली | से भर जाना है। घड़ा जरा भी खाली न रहे। कौन-सा मार्ग इनमें होना पड़े। निराकार की तरफ जाना है, तो खाली होना पड़े, श्रेष्ठ है? बिलकुल खाली। और अगर भक्ति से जाना है, तो भर जाना इस प्रश्न को पूछने में कई बातें छिपी हैं। पड़े-पूरा। उलटा है! जो भी भीतर है, खाली कर दो, ताकि शून्य पहली बात, जरूरी नहीं है कि कृष्ण, अर्जुन के अलावा किसी रह जाए, और शून्य में संस्पर्श हो सके निराकार का। | और ने पूछा होता, तो यही उत्तर देते। पहला तो आप यह खयाल
भक्ति का मार्ग है उलटा। भक्ति कहती है, भर जाओ पूरे उसी में ले लें। जरूरी नहीं है कि अर्जुन के अलावा किसी और ने पूछा से, परमात्मा से ही। वही तुम्हारे हृदय में धड़कने लगे; वही तुम्हारी | होता, तो कृष्ण यही उत्तर देते। अगर बुद्ध जैसा व्यक्ति होता, तो श्वासों में हो; वही तुम्हारे विचारों में हो। निकालो कुछ भी मत; | कृष्ण यह कभी न कहते कि भक्ति का मार्ग ही श्रेष्ठ है। कृष्ण का सभी को उसी में रूपांतरित कर दो। तुम्हारा खून भी वही हो। उत्तर दूसरा होता। तुम्हारी हड्डी और मांस-मज्जा भी वही हो। तुम्हारे भीतर | | अर्जुन सामने है। यह उत्तर वैयक्तिक है, ए पर्सनल रो-रोआं उसी का हो जाए। तुम उसी में सांस लो। उसी में भोजन | | कम्युनिकेशन। सामने खड़ा है अर्जुन। और जब कृष्ण उससे कहते करो। उसी में उठो, उसी में बैठो। तुम में तुम जैसा कुछ भी न बचे। | हैं, तो इस उत्तर में अर्जुन समाविष्ट हो जाता है। इस कारण बड़ी तुम उसी के रंग-रूप में हो जाओ। तुम उससे इतने भर जाओ कि | | अड़चन होती है। इस कारण गीता पर सैकड़ों टीकाएं लिखी गईं