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________________ पुरुष-प्रकृति-लीला विष्णु, महेश - ब्रह्मा बनाता है, विष्णु सम्हालते हैं, महेश मिटाते हैं इनका क्या अर्थ है ? ये भी सम्हालते, मिटातें, बनाते हैं संसारों को, अस्तित्व को नहीं। ये भी एक संसार को बनाते हैं। इसलिए बौद्धों ने तो अनेक ब्रह्मा माने हैं। क्योंकि जितने संसार हैं, उतने ब्रह्मा । क्योंकि हर संसार को बनाने की शक्ति का नाम ब्रह्मा है; ब्रह्मा कोई व्यक्ति नहीं हैं। सम्हालने की शक्ति का नाम विष्णु है; विष्णु कोई व्यक्ति नहीं हैं। विनष्ट हो जाने की संभावना का नाम शिव है; शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं। तो जहां-जहां जीवन है, जीवन का विस्तार है, और जहां-जहां जीवन का अंत है, वहां-वहां ये तीन शक्तियां काम करती रहेंगी। लेकिन इन सबका संबंध संसारों से है। इसलिए बहुत मजेदार घटना बौद्ध कथाओं में है। वह यह कि जब बुद्ध को ज्ञान हुआ, तो जो पहला व्यक्ति जिज्ञासा करने आया, वह था ब्रह्मा। ब्रह्मा ने आकर सिर टेक दिया बुद्ध के चरणों में और कहा कि मुझे ज्ञान दें। हमें तो बड़ी घबड़ाहट होगी। क्योंकि ब्रह्मा बनाने वाला संसार का, वह बुद्ध के चरणों में आया पूछने कि मुझे ज्ञान दें! ब्रह्मा संसार को बनाने वाला जरूर है, लेकिन संसार को वह बनाता ही इसलिए है कि उसमें संसार को बनाने की वासना है। बुद्ध वासना - मुक्त हो गए। इसलिए बुद्ध ब्रह्मा से ऊपर हो गए । बुद्ध शुद्ध पुरुष हो गए। ब्रह्मा उनसे नीचे रह गया। क्योंकि ब्रह्मा भी बनाता है। बनाने का अर्थ ही है कि कामवासना है। जहां वासना नहीं है, वहां कोई सृजन न होगा। इसलिए हम ब्रह्मा को मुक्त नहीं मानते। ब्रह्मा को भी हम मानते हैं कि वह भी बंधन में है, क्योंकि बनाने का... । स्वभावतः, आप एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं, कितनी मुसीबत है! अगर ब्रह्मा को हम समझें और इतने सारे संसार को चलाता है, तो उसकी मुसीबत का हम अंदाज लगा सकते हैं। उसकी मुसीबत का हम खयाल कर सकते हैं। इतना बड़ा संसार अगर किसी को चलाना पड़ रहा है, तो उसके पीछे एक तो प्रगाढ़ कामना होनी चाहिए, अंतहीन वासना होनी चाहिए। और फिर उसका उपद्रव और जाल भी होगा ही । वह बुद्ध से कहता है ब्रह्मा – यह कथा मीठी है— कि मुझे भी कुछ ज्ञान दें; मैं भी उलझा हूं अभी; मेरा मन भी शांत नहीं है। आप जहां पहुंच गए हैं, वहां से कुछ अमृत मेरे लिए भी ! लेकिन बुद्ध चुप हैं। और बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो उन्हें लगा कि अब बोलने की क्या जरूरत। जो जाना है, वह कहा नहीं जा सकता। और जो सुनने वाले हैं, उनमें कोई समझ भी न पाएगा। | इसलिए व्यर्थ की मेहनत नहीं करनी है। तो ब्रह्मा उनके पैर पर सिर रख रखकर बार-बार कहता है कि आप लोगों से कहें, क्योंकि हम हजारों-हजारों साल तक प्रतीक्षा करते हैं कि कोई बुद्ध हो, तो हमें कुछ ज्ञान मिले। हम भी कुछ जान पाएं। हमें भी कुछ पता चले कि क्या है। ब्रह्मा का यह पूछना बड़ा मजेदार है। उसे भी पता नहीं कि क्या है। वह भी अपनी वासना में जी रहा है। हम सब छोटे-छोटे ब्रह्मा हैं, जब हम बनाते हैं। और हम सब छोटे-छोटे विष्णु हैं, जब हम सम्हालते हैं। और हम सब छोटे-छोटे शिव हैं, जब हम मिटाते हैं। इसी को विराट करके देखें, तो पूरे संसार का खयाल आ जाएगा। कृष्ण कहते हैं, लेकिन दो मौलिक तत्व, प्रकृति और पुरुष अनादि हैं। और राग-द्वेष आदि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक संपूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न हुआ जान । और जो कुछ भी तुझे दिखाई पड़ता है इस जगत में पैदा होता हुआ - राग-द्वेष, विकार, त्रिगुण - यह संपूर्ण पदार्थ, इनको तू प्रकृति के ही रूप जान। ये प्रकृति से ही पैदा हुए हैं। तत्व दो हैं, प्रकृति और पुरुष । बाकी जितना फैलाव दिखाई पड़ता है, वह दो में से किसी से जुड़ा होगा। तो कृष्ण कहते हैं, यह जितना विस्तार है माया का, त्रिगुण का; ये जो भी दिखाई पड़ रहे हैं पदार्थ, इतने रूप, इतने रंग, इतना परिवर्तन; ये सब प्रकृति से ही उत्पन्न हुए जान। ये प्रकृति में ही उत्पन्न होते हैं और प्रकृति में ही लीन होते रहते हैं। जिससे ये उत्पन्न होते हैं और जिसमें लीन होते हैं, उसी का नाम प्रकृति है। यह प्रकृति शब्द हमारा बड़ा अदभुत है। ऐसा शब्द दुनिया की किसी भी भाषा में नहीं है। अंग्रेजी में अक्सर हम प्रकृति को नेचर | या क्रिएशन से अनुवादित करते हैं। दोनों ही गलत हैं। प्रकृति शब्द का अर्थ है, कृति के पहले। उसका अर्थ है, प्रि-क्रिएशन । शब्द बहुत अनूठा है। प्रकृति का अर्थ है कि कृति के पहले। जब कुछ भी नहीं था, तब भी जो था । जब कुछ भी नहीं बना था, तब भी जो था, प्रि-क्रिएशन। पहले जो था, सृजन के भी पहले जो था, उसका नाम प्रकृति है। इसलिए प्रकृति को क्रिएशन तो अनुवाद किया ही नहीं जा 305
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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