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0 गीता दर्शन भाग-60
हैं, जो लाखों साल पुरानी हैं, तो पृथ्वी कैसे बन सकती है चार | | और संयोग का वियोग होता है, विनाश होता है। लेकिन जो तत्व हजार साल पहले या छः हजार साल पहले?
है, उसका विनाश नहीं होता। जब आप मरेंगे, तो शरीर अपनी उस बिशप ने कहा कि भगवान के लिए सभी कुछ संभव है। दुनिया में लौट जाएगा मिट्टी-पत्थर की। और आपकी चेतना चेतना उसने चार हजार साल पहले पथ्वी बनाई और पथ्वी में ऐसी चीजें की दनिया में लौट जाएगी। वे दोनों पहले भी थे। रख दीं जो लाखों साल पुरानी मालूम पड़ती हैं; लोगों की भक्ति की आप? आप एक संयोग हैं दो के। आपका जन्म होता है, परीक्षा के लिए! कि लोग अगर सच में निष्ठावान हैं, तो वे कहेंगे, आपका अंत होता है। हमारी तो निष्ठा है। यह भगवान हमारी परीक्षा ले रहा है। भारतीय मनीषा कहती है कि न तो प्रकृति का कोई आदि है, न
ये आदमी के बेईमान होने के ढंग इतने हैं कि वह अपनी बेईमानी | कोई अंत है। और न पुरुष का कोई आदि है और अंत है। लेकिन में ईश्वर तक को भी फंसा लेता है। ईश्वर ने बनाई तो चार हजार | संसार का आदि और अंत है। साल पहले ही चीजें, लेकिन ईश्वर के लिए क्या असंभव है! सर्व संसार ऐसे ही है, जैसे आपका शरीर और आत्मा के मिलने से शक्तिशाली है। उसने उसको इस ढंग से बनाया कि वैज्ञानिक धोखा आपका व्यक्तित्व। ऐसे ही इतने सारे पुरुषों और इस प्रकृति के. खा जाते हैं कि लाख साल पुरानी है। सिर्फ छांटने के लिए कि जो | | मिलने से जो प्रकट होता है संसार, वह प्रारंभ होता है और उसका असली आस्तिक हैं, वे राजी रहेंगे; और जो नकली आस्तिक हैं, अंत होता है। वे नास्तिक हो जाएंगे। उसने यह तरकीब बिठाई।
हम जिस संसार में रह रहे हैं, वह सदा नहीं था। वैज्ञानिक कहते लेकिन कृष्ण की धारणा बहुत वैज्ञानिक है। वे कहते हैं कि हैं कि हमारा सूरज कोई चार हजार साल में ठंडा हो जाएगा। अरबों प्रकृति और पुरुष का कोई आदि-प्रारंभ नहीं है। लेकिन इसका यह | वर्ष से गरमी दे रहा है। उसकी गरमी चुकती जा रही है। चार हजार मतलब नहीं है कि इस जगत का प्रारंभ नहीं है।
साल और, और वह ठंडा हो जाएगा। उसके ठंडे होते ही पृथ्वी इसका फर्क समझ लें।
भी ठंडी हो जाएगी। फिर पौधा यहां नहीं फूटेगा; फिर बच्चे यहां प्रकृति का कोई प्रारंभ नहीं है, पुरुष का कोई प्रारंभ नहीं है।। | पैदा नहीं होंगे; फिर श्वास यहां नहीं चलेगी; फिर यहां जीवन आपके शरीर का कोई प्रारंभ नहीं है और आपकी आत्मा का भी शून्य हो जाएगा। कोई प्रारंभ नहीं है। लेकिन आपका प्रारंभ है। आपकी आत्मा भी आदमी ही नहीं मरता, पृथ्वियां भी मरती हैं। अभी हमारी पृथ्वी अनादि है और आपका शरीर भी अनादि है। क्योंकि शरीर में क्या जीवित है, लेकिन वह भी बुढ़ापे के करीब पहुंच रही है। अभी कई है जो आपके पहले नहीं था! सभी कुछ था। मिट्टी थी, हड्डी-मांस, पृथ्वियां मृत हैं। अभी कई पृथ्वियां जन्मने के करीब हैं। अभी कई जो भी आपके भीतर है, वह सब था; किसी रूप में था। पृथ्वियां जवान हैं। अभी कई पृथ्वियां बचपन में हैं।
अगर आपके शरीर की सब चीजें निकाली जाएं, तो वैज्ञानिक वैज्ञानिक कहते हैं, कम से कम पचास हजार ग्रहों पर जीवन है। कहते हैं, कोई चार, साढ़े चार रुपए का सामान उसमें निकलता है। पचास हजार पृथ्वियां हैं कम से कम, जिन पर जीवन है। उसमें कोई अल्युमिनियम, तांबा, पीतल सब है। बहुत थोड़ा-थोड़ा है। सब बिलकुल बच्चों जैसी है। अभी-अभी उसमें काई फूट रही है और निकाल लिया जाए, तो कोई सस्ते जमाने में साढ़े चार रुपए का | घास उग रहा है, अभी और बड़ा जीवन नहीं आया है। कोई होता था, अब कुछ महंगा होता होगा। लेकिन यह सब था। | बिलकुल बूढ़ी हो गई है; सब सूख गया है। आदमी भी जा चुके
शरीर भी आपका अनादि है। और आपके भीतर जो छिपी हुई | हैं, प्राणी भी जा चुके हैं; आखिरी काई भी सूखती जा रही है। कोई आत्मा है, वह भी अनादि है। लेकिन आप अनादि नहीं हैं। आपका बिलकुल बंजर हो गई है, मृत। कोई अभी गर्भ में है; अभी तैयारी तो जन्म हुआ। आपका तो म्युनिसिपल के दफ्तर में सब कर रही है। जल्दी ही जीवन का अंकुर उस पर फूटेगा। हिसाब-किताब है। कब आप पैदा हुए, कहां पैदा हुए, कैसे पैदा पृथ्वियां आती हैं, खो जाती हैं। संसार बनते हैं, विनष्ट हो जाते हुए, वह सब है।
| हैं। लेकिन मूल तत्व दो हैं, प्रकृति और पुरुष, प्रकृति और आप पैदा हुए, आप एक जोड़ हैं। आप तत्व नहीं हैं, आप एक | | परमात्मा, पदार्थ और चैतन्य, वे दोनों अनादि हैं। कंपाउंड हैं। इलिमेंट नहीं हैं, संयोग हैं। संयोग का जन्म होता है; | तब एक सवाल उठेगा मन में, तो फिर हम कहते हैं कि ब्रह्मा,
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