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________________ पुरुष-प्रकृति-लीला | है। जो दृश्य है, वही नहीं है; अदृश्य भी है। आज मौजूद है, कल | गैर-मौजूद हो जाता है। यह गैर-मौजूदगी भी अस्तित्व का एक ढंग है । यह न होना भी होने का एक प्रकार है। क्योंकि बिलकुल परिपूर्ण रूप से नहीं तो जो है, वह हो ही नहीं सकता। आपको भी तोते की तरह दोहराया गया है कि आत्मा है। ऊपर से देखने पर कितना फर्क मालूम पड़ता है! आप लगते हैं। आस्तिक और वह रूस का आदमी लगता है नास्तिक । आप दोनों एक से हैं। न तो आप आस्तिक हैं, न वह नास्तिक है। वह भी, जो उसने सुना है, दोहरा रहा है। जो आपने सुना है, आप दोहरा रहे हैं। फर्क क्या है? फर्क तो पैदा होगा, जब तत्व से ज्ञान होगा। सुनी हुई बातचीतों का कोई भी मूल्य नहीं है। और उसी आदमी मैं बुद्धिमान कहता हूं, जो यह याद रख सके कि सुनी हुई बातें ज्ञान नहीं है। सुनी हुई बातों को एक तरफ रखे। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सुनी हुई बातें बुरी हैं। यह भी नहीं कह रहा हूं कि सुनी हुई बातों का कोई उपयोग नहीं है। लेकिन इतना स्मरण होना चाहिए कि क्या है मेरी स्मृति और क्या है मेरा ज्ञान ! क्या मैंने सुना है और क्या मैंने जाना है ! है, वही तुम्हारा है, वही तत्व है। जो नहीं जाना है, सुना है, वह सिर्फ धारणाएं हैं, प्रत्यय हैं, कंसेप्ट्स हैं। उनसे कोई जीवन बदलेगा नहीं । तो कृष्ण कहते हैं, जो तत्व से जानता है, वह मेरा भक्त मेरे स्वरूप को उपलब्ध हो जाता है। | स्वभावतः, जो तत्व से जानेगा, वह परम ईश्वर के स्वरूप के साथ एक हो ही जाएगा। उसे कोई बाधा नहीं है। और हे अर्जुन, प्रकृति अर्थात त्रिगुणमयी मेरी माया और पुरुष अर्थात क्षेत्रज्ञ, इन दोनों को ही तू अनादि जान । यह प्रश्न विचारणीय है और बहुत ऊहापोह मनुष्य इस पर करता रहा है। हमारे मन में यह सवाल उठता ही रहता है कि किसने बनाया जगत को ? किसने बनाया ? कौन है स्रष्टा ? जरूर कोई बनाने वाला है। हमारा मन यह मान ही नहीं पाता कि बिना बनाए यह जगत हो सकता है। बनाने वाला तो चाहिए ही तो हम बच्चों जैसी बातें करते रहते हैं और हम बच्चों जैसी बातें प्रचारित भी करते रहते हैं कि जैसे कुम्हार घड़े को बनाता है, ऐसा स्रष्टा है कोई, जो सृष्टि को बनाता है। कृष्ण कहते हैं, तू दोनों को अनादि जान, प्रकृति भी और पुरुष को भी। वे बनाए हुए हैं, वे सदा से हैं। कभी प्रकट होते हैं, कभी अप्रकट। लेकिन मिटता कुछ भी नहीं है और न कुछ बनता है । कभी दृश्य हैं, कभी अदृश्य। लेकिन जो अदृश्य है, वह भी इसलिए कृष्ण कहते हैं, प्रकृति भी और पुरुष भी ! वह जो दिखाई पड़ता है वह, और वह जो देखता है वह, वे दोनों अनादि हैं। उनका कोई प्रारंभ नहीं है। उनके प्रारंभ की बात ही बचकानी है। एक मित्र ने सवाल पूछा है। उन्होंने पूछा है कि विज्ञान तो धर्म से जीत गया संघर्ष में ! वह इसीलिए जीत गया कि वह जो भी कहता है, स्पष्ट है। और धर्म जो भी कहता है, वह स्पष्ट नहीं है। और उन मित्र ने यह कहा है कि धर्म अभी तक नहीं बता पाया कि जगत को किसने बनाया? सृष्टि कैसे हुई ? क्यों हुई ? प्रश्न में थोड़ा अर्थ है। धर्म तो वस्तुतः कहता है कि जगत अनादि है; किसी ने बनाया नहीं है। बनाने की बात ही बच्चों को समझाने के लिए है। और इस संबंध में विज्ञान भी राजी है। विज्ञान भी कहता है कि अस्तित्व प्रारंभ - शून्य है । ईसाइयत से विज्ञान की थोड़ी कलह हुई। और कलह का कारण यह था कि ईसाइयत ने तय कर रखा था कि जगत एक खास तारीख को बना। एक ईसाई पादरी ने तो तारीख और दिन सब निकाल रखा था। जीसस से चार हजार चार साल पहले, फलां-फलां दिन, इतने बजे सुबह जगत का निर्माण हुआ ! विज्ञान को अड़चन और कलह शुरू हुई ईसाइयत के साथ | विज्ञान और धर्म का संघर्ष नहीं है। विज्ञान और ईसाइयत में संघर्ष हुआ जरूर, क्योंकि ईसाइयत की बहुत-सी धारणाएं बचकानी थीं। और विज्ञान ने कहा कि यह तो बात एकदम गलत है कि चार हजार साल पहले जीसस के पृथ्वी बनी या जगत बना। क्योंकि पृथ्वी में ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं, जो लाखों-लाखों साल पुराने हैं। आदमी लेकिन बड़ा बेईमान है। और आदमी अपने लिए जो भी ठीक मानना चाहता है, उसको ठीक मान लेता है। तरकीबें निकाल लेता है। जिस बिशप ने यह सिद्ध किया था कि जीसस के चार | हजार चार साल पहले पृथ्वी बनी, उसने एक वक्तव्य जाहिर किया। और उसने कहा कि हम यह मानते हैं कि पृथ्वी में ऐसी चीजें मिलती हैं, जो लाखों साल पुरानी हैं। अब यह बड़ी कठिन बात है। अगर पृथ्वी में ऐसी चीजें मिलती 303
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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