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गीता दर्शन भाग-60
योग, सारा तंत्र, सब एक ही बात की चेष्टा है कि आपके जीवन | हो गई। तो क्या प्रकृति का विरोध करना ठीक है? की जो ऊर्जा नीचे गिरती है, वह ऊपर कैसे जाए। और एक बार ऊपर जाने लगे, तो दूसरे जगत का प्रारंभ हो जाता है।
प्रकृति नीचे भी है और ऊपर भी है। जब भाप आकाश की तरफ देखा आपने. पानी नीचे की तरफ बहता है। लेकिन पानी को उडती है. तब भी प्राकतिक नियमों का ही अनगमन कर रही है। गरम करें और पानी भाप बन जाए, तो ऊपर की तरफ उड़ना शुरू | और जब पानी नीचे की तरफ बहता है, तब भी प्राकृतिक नियमों हो जाता है। पानी ही है। लेकिन सौ डिग्री पर भाप बन गया, और | का ही अनुगमन कर रहा है। क्रांतिकारी अंतर हो गया। आयाम बदल गया। दिशा बदल गई। __ ऊपर की तरफ ले जाने वाले नियम भी प्राकृतिक हैं। और नीचे पहले नीचे की तरफ बहता था; पहले कहीं भी पानी होता, तो वह की तरफ ले जाने वाले नियम भी प्राकृतिक हैं। चुनाव आपको कर गड़े की तलाश करता; अब आकाश की तलाश करता है। लेना है। और मनुष्य स्वतंत्र है चुनाव के लिए, यही मनुष्य की
आपके भीतर जो जीवन है, जो एनर्जी है, जो ऊर्जा है, वह भी गरिमा है। मनुष्य की खूबी यही है। पशुओं से उसमें विशेषता है, एक विशेष प्रक्रिया से गुजरकर ऊपर की तरफ उठनी शुरू हो जाती तो सिर्फ एक, कि पशु चुनाव करने को स्वतंत्र नहीं है। उसको कोई है। उस ऊपर उठती हुई ऊर्जा को हमने कुंडलिनी कहा है। च्वाइस नहीं है। उसकी ऊर्जा नीचे की तरफ ही बहेगी। वह चुनाव
साधारणतः जैसा आदमी पैदा होता है प्रकृति से, वह ऊर्जा नीचे | नहीं कर सकता ऊपर की तरफ बहने का। वह चाहे तो भी नहीं कर की तरफ जाती है। जमीन का ग्रेविटेशन उसे नीचे की तरफ खींचता | सकता। वह चाह भी नहीं सकता। है। जमीन की कशिश नीचे की तरफ खींचती है। और आप नीचे पशु बंधा हुआ है, नीचे की तरफ ही बहेगा। मनुष्य को संभावना की तरफ चौबीस घंटे खिंच रहे हैं। और जिंदगी उतार है। बच्चा | | है। अगर वह कुछ न करे, तो नीचे की तरफ बहेगा। अगर कुछ जितना पवित्र होता है, बूढ़ा उतना पवित्र नहीं रह जाता। बड़ी करे, तो ऊपर की तरफ भी बह सकता है। मनुष्य के पास उपाय है। अदभुत बात है!
और जो मनुष्य चुनाव नहीं करता, वह पशु ही बना रह जाता है। बच्चा जैसा निर्दोष होता है, बूढ़ा वैसा निर्दोष नहीं रह जाता।। | वह कभी मनुष्य नहीं बन पाता। क्योंकि फिर पशु में और उसमें कोई होना तो उलटा चाहिए। क्योंकि जीवन होना चाहिए एक विकास। | फर्क नहीं है। एक ही शुरुआत है फर्क की और वह यह है कि हम यह तो हुआ पतन।
|चन सकते हैं। हम चाहें तो ऊपर की तरफ भी बह सकते हैं। अगर हम बूढ़े आदमी के मन को खोल सकें, तो हम पाएंगे कि | __एक बड़े मजे की बात है। चूंकि हम ऊपर की तरफ भी बह सकते बूढ़ा आदमी डर्टी, एकदम गंदा हो जाता है। जीवन की सारी की | | हैं, इसलिए हम पशु से भी ज्यादा नीचे गिर सकते हैं। अगर आदमी सारी वासना तो बनी रहती है और शक्ति सब खो जाती है। और | पशु होना चाहे, तो सभी पशुओं को मात कर देता है। दुनियाभर के वासना मन में घूमती है। जैसे-जैसे आदमी बूढ़ा होने लगता है, | | सारे जंगली जानवरों को भी इकट्ठा कर लें, तो भी हिटलर का शरीर की शक्ति तो खोती जाती है और वासना चित्त को घेरती है। | मुकाबला नहीं कर सकते, चंगेजखां का मुकाबला नहीं कर सकते। क्योंकि चित्त कभी भी बूढ़ा नहीं होता, वह जवान ही बना रहता है। दुनिया का कोई पशु आदमी जैसा पशु नहीं हो सकता, अगर तो बड़ी गंदगी घिर जाती है।
| आदमी पशु होना चाहे। क्योंकि जितने आप ऊपर उठ सकते हैं, बच्चे और बूढ़े में विकास न दिखाई देकर, पतन दिखाई पड़ता | उतने ही अनुपात में नीचे गिर सकते हैं। जितने बड़े शिखर पर चढ़ने है। कारण सिर्फ एक है, कि बच्चे की ऊर्जा अभी बहनी शुरू नहीं | की संभावना है, उतनी ही बड़ी खाई में गिर जाने की भी संभावना हुई है। जैसे-जैसे वह बड़ा होगा, ऊर्जा नीचे की तरफ बहनी शुरू | साथ ही जुड़ी हुई है। शिखर और खाई साथ-साथ चलते हैं। पतन होगी। और अगर कोई प्रयोग न किए जाएं, तो ऊर्जा ऊपर की तरफ | | और विकास साथ-साथ चलते हैं। न बहेगी।
लेकिन कोई भी पशु बहुत नीचे नहीं गिर सकता। आप जंगल
| में चले जाएं, तो आप पता भी नहीं लगा सकते कि कौन-सा.सिंह इन मित्र ने यह भी पूछा है कि अगर साक्षी-भाव या | | ज्यादा पशु है। सभी सिंह एक जैसे पशु हैं। भूख लगती है, साधना लानी पड़ती है, तब तो फिर वह अप्राकृतिक | | चीर-फाड़कर खा जाते हैं। लेकिन दो सिंहों में कोई फर्क नहीं किया
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