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ॐ पुरुष-प्रकृति-लीला
है। वह फायदा नहीं करती, नए अंकुर निकल आते हैं। वही| का अर्थ है दुख, ऊर्जा का ऊपर जाने का अर्थ है आनंद। लेकिन बीमारियां और घनी होकर पैदा हो जाती हैं। जड़ उखाड़कर फेंकना नीचे जाती ऊर्जा अगर सिर्फ दुख ही देती हो, तब तो सभी लोग रुक हो, तो गहरे अचेतन में जाना जरूरी है।
| जाएंगे। लेकिन नीचे जाती ऊर्जा सुख का प्रलोभन देती है और अंत लेकिन सम्मोहन अकेला मार्ग नहीं है। अगर आप ध्यान करें, | | में दुख देती है। इसीलिए तो इतने लोग उसमें बहे चले जाते हैं। तो खुद भी अपने भीतर इतने ही गहरे जा सकते हैं। सम्मोहन के नीचे बहती हुई ऊर्जा आशा बंधाती है कि सुख मिलेगा। आशा द्वारा दूसरा व्यक्ति आपके भीतर गहरे जाता है और आपको | ही रहती है, दुख मिलता है। लेकिन हम इतने बुद्धिहीन हैं कि प्रथम सहायता पहुंचा सकता है। ध्यान के द्वारा आप स्वयं ही अपने भीतर | और अंतिम को कभी जोड़ नहीं पाते। हजार बार दुख पाकर भी फिर गहरे जाते हैं और अपने को बदल सकते हैं।
जब नया प्रलोभन आता है, तो हम उसी मछली की तरह व्यवहार जिन लोगों को ध्यान में बहुत कठिनाई होती हो, उनके लिए | | करते हैं, जो अनेक बार आटे को पकड़ने में कांटे से पकड़ गई है, सम्मोहन का सहारा लेना चाहिए। लेकिन अत्यंत निकट संबंध हो | | लेकिन फिर जब आटा लटकाता है मछुआ, तो फिर मछली आटे किसी गुरु से, तभी। और जो व्यक्ति ध्यान में सीधे जा सकते हों, | को पकड़ लेती है। उनको सम्मोहन के विचार में नहीं पड़ना चाहिए। उसकी कोई भी आटे और कांटे में मछली संबंध नहीं जोड़ पाती। हम भी नहीं जरूरत नहीं है।
जोड़ पाते कि हम जहां-जहां सुख की आशा रखते हैं, वहां-वहां और सम्मोहन का भी सहारा इसीलिए लेना चाहिए कि ध्यान में | | दुख मिलता है, सुख मिलता नहीं। लेकिन इसका हम संबंध नहीं गहरे जाया जा सके, बस। और किसी काम के लिए सहारा नहीं | जोड़ पाते। लेना चाहिए। क्योंकि बाकी सब काम तो ध्यान में गहरे जाकर किए __ जहां भी आपको दुख मिलता हो, आप थोड़ा सोचें कि वहां आपने जा सकते हैं। सिर्फ ध्यान न होता हो, तो ध्यान में कैसे मैं गहरे | सुख चाहा था। सुख न चाहा होता, तो दुख मिल ही नहीं सकता। जाऊं, सम्मोहन का इसके लिए सहारा लिया जा सकता है। । | दुख मिलता ही तब है, जब हमने सुख चाहा हो। आटे को कोई
सम्मोहन गहरी प्रक्रिया है और बड़ी वैज्ञानिक है। और मनुष्य के | | मछली पकड़ेगी, तो ही कांटे से जकड़ सकती है। लेकिन जब कांटे बहुत हित में सिद्ध हो सकती है। लेकिन स्वभावतः, जो भी हितकर से मछली जकड़ जाती है, तब वह भी नहीं सोच पाती कि इस आटे हो सकता है, वह खतरनाक भी है।
के कारण मैं कांटे में फंस गई हूं। आप भी नहीं सोच पाते कि जब | दुख में आप उलझते हैं, तो किसी सुख की आशा में फंस गए हैं।
नीचे बहती ऊर्जा पहले सुख का आश्वासन देती है, फिर दुख एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि हमें नीचे बह रही में गिरा देती है। ऊपर उठती ऊर्जा पहले कष्ट, तप, साधना, जो . प्राकृतिक ऊर्जा के ऊपर ऊर्ध्वगमन की चेष्टा क्यों | | कि कठिन है; द्वार पर ही मिलता है दुख ऊपर जाती साधना में; करनी चाहिए?
लेकिन अंत में सुख हाथ आता है।
तो आप एक बात ठीक से समझ लें, दुख अगर पहले मिल रहा
हो और पीछे सुख मिलता हो, तो आप समझना कि ऊर्जा ऊपर की का ई नहीं कहता है कि आप चेष्टा करें। आपकी ऊर्जा | | तरफ जा रही है। और अगर सुख पहले मिलता हआ लगता हो और
नीचे बह रही है, उससे दुख हो रहा है, उससे पीड़ा हो | | पीछे दुख हाथ में आता हो, तो ऊर्जा नीचे की तरफ जा रही है। यह
रही है, उससे जीवन व्यर्थ रिक्त हो रहा है। तो आपको | लक्षण है कि आपकी शक्ति कब निम्न हो रही है और कब ऊर्ध्व ही लगता हो कि पीड़ा हो रही है, दुख हो रहा है, जीवन व्यर्थ जा हो रही है। रहा है, तो ऊपर ले जानी चाहिए। कोई आपसे कह नहीं रहा है कि कोई भी आपसे नहीं कहता कि आप अपनी जीवन शक्ति को आप ऊपर ले जाएं। और किसी के कहने से आप कभी ऊपर ले | | ऊपर ले जाएं। लेकिन आप आनंद चाहते हैं, तो जीवन शक्ति को भी न जाएंगे।
ऊपर ले जाना पड़ेगा। लेकिन नीचे का अनुभव ही पीड़ादायी है। ऊर्जा का नीचे जाने | समस्त धर्म जीवन शक्ति को ऊपर ले जाने की विधियां है। सारा
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