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पुरुष-प्रकृति-लीला
जा सकता। एक सिंह नीचा गिर गया है और एक सिंह ऊंचा है, ऐसा आप फर्क नहीं कर सकते।
आदमी ऊपर उठना चाहे, तो बुद्ध और कृष्ण भी और क्राइस्ट भी उसमें पैदा हो जाते हैं। और नीचे गिरना चाहे, तो चंगेज और नादिर और हिटलर और स्टैलिन भी पैदा हो जाते हैं। कोई अड़चन नहीं है। और आदमी कुछ न करे, तो साधारण किस्म का पशु रह जाता है।
ऊपर की तरफ जाने के लिए श्रम करना होगा। लेकिन श्रम के कारण आप यह मत समझ लेना कि वह अप्राकृतिक है। आदमी जमीन पर चलता है। नाव में पानी में चलता है। हवाई जहाज में हवा में चलता है। अब अंतरिक्ष यान हमने बनाए हैं, वे आकाश में हवा के पार भी चले जाते हैं। अप्राकृतिक कुछ भी नहीं है। क्योंकि अप्राकृतिक तो घटित ही नहीं हो सकता।
हवा में जब आदमी उड़ रहा है हवाई जहाज में, तब भी प्रकृति के नियमों का ही उपयोग कर रहा है। और जब आदमी नहीं उड़ता था, तो उसका मतलब यह नहीं है कि तब नियम नहीं थे । नियम थे, हमें उनका पता नहीं था ।
तो जब आप ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होते हैं, तब भी आप प्रकृति केही नियमों का काम कर रहे हैं। और जब आप कामवासना में गिरते हैं, तब भी प्रकृति के ही नियमों का काम हो रहा है।
एक हवाई जहाज जब हवा में उड़ता है, तब भी प्रकृति के नियम काम रहे हैं। और जब हवाई जहाज में कुछ गड़बड़ हो जाती है और हवाई जहाज ऊपर से नीचे गिरकर जमीन पर टकराता है, तब भी प्रकृति के ही नियम काम कर रहे हैं।
आप कितने ढंग से प्रकृति के नियमों का अपने अनुकूल उपयोग करते हैं, उस मात्रा में आपके जीवन में आनंद फलित होता है। और आप किस मात्रा में प्रकृति के नियमों का उपयोग नहीं कर पाते अपने अनुकूल या अपने को नियमों के अनुकूल नहीं बना पाते, उस मात्रा में दुख होता है।
ऊपर की यात्रा भी प्राकृतिक ही है, अप्राकृतिक नहीं; लेकिन उच्चतर प्रकृति की तरफ है। नीचे की यात्रा भी प्राकृतिक है, लेकिन निम्न है। और जो निम्न है, वह दुख लाता है। और जो निम्न है, वह नरक बन जाता है। और जो श्रेष्ठ है, उच्च है, वह स्वर्ग बन जाता है और आनंद की संभावना के द्वार खुल जाते हैं।
लेकिन कोई आपसे कह नहीं रहा है कि आप ऐसा करें। और किसी के कहने से आप करेंगे भी नहीं ।
तो मैं तो आपसे इतना ही कह रहा हूं कि आप पहचानें कि अगर | आप दुख में हैं, तो आप पहचान लें कि आप नीचे की तरफ जा रहे हैं। और आपको अगर दुख में ही रहना हो, तो फिर कुशलता से नीचे की तरफ जाएं। लेकिन नीचे की तरफ जाकर सुख की आशा | न करें। वह आशा गलत है। और आपको लगता हो कि दुख को | बदलना है जीवन से और आनंद की यात्रा करनी है, तो ऊपर की | तरफ उठना शुरू हों। और ऊपर की तरफ उठने में पहले कष्ट होगा; उसको ही हमने तप कहा है।
जब भी कोई पहाड़ की तरफ चढ़ेगा, तो परेशानी होगी। पहाड़ से उतरते वक्त कोई परेशानी नहीं होती। सभी चढ़ाव कष्टपूर्ण हैं। लेकिन सभी चढ़ावों के अंत पर विश्राम है। और कष्ट के बाद जो विश्राम है, उसका स्वाद, उसका मूल्य ही कुछ और है।
और बहुत मजे की बात है। अगर एक हवाई जहाज से आपको एवरेस्ट पर उतार दिया जाए, तो आपको वह आनंद कभी उपलब्ध न होगा, जो हिलेरी और तेनसिंह को चढ़कर एवरेस्ट पर पहुंचकर | हुआ है। आप भी उसी जगह खड़े हो जाएंगे हवाई जहाज से उतरकर, जिस जगह हिलेरी और तेनसिंह जाकर खड़े हुए थे। लेकिन जो आनंद उनको मिला था, वह आपको न मिलेगा। क्योंकि आनंद सिर्फ मंजिल में ही नहीं है, यात्रा में भी है। और यात्रा से मंजिल अगर अलग कर ली जाए, तो कोरी, निस्सार, रसहीन हो जाती है।
इसलिए शार्टकट खोजने की फिक्र नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जितना शार्टकट आप खोज लेंगे, उतना ही मंजिल का रस चला | जाएगा। यात्रा का अपना सुख है। और यात्रा का सुख ही इकट्ठा होकर मंजिल पर उपलब्ध होता है। जो यात्रा से बचने की कोशिश करता है, वह एक दफे पहुंच भी सकता है। लेकिन उस पहुंचने में कोई भी रस न होगा, कोई भी रस न होगा।
जो लोग बद्री और केदार की यात्रा पैदल करते रहे थे, उनका | मजा और था। अब बस से जा सकते हैं; अब वह बात न रही। कल हवाई जहाज से सीधा उतरेंगे; कोई रस न रह जाएगा। क्योंकि | यात्रा और मंजिल दो चीजें नहीं हैं। यात्रा का ही अंतिम पड़ाव है मंजिल । और जिसने यात्रा ही काट दी, एक अर्थ में उसकी मंजिल ही कट गई।
यात्रा के कष्ट से भयभीत न हों, क्योंकि मंजिल के सुख में | उसका भी अनुदान है।
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