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ॐ गीता दर्शन भाग-60
डालते। यह मैं इसलिए उदाहरण दे रहा हूं कि जो नीचे की प्रकृति | देखने वाले का अनुभव क्या है। के संबंध में सच है. वही ऊपर की प्रकति के संबंध में भी सच है। भोजन कर रहे हैं। साक्षी हो जाएं। अचानक खयाल आए. एक जब आप परमात्मा को भी बाधा नहीं डालते और बुद्धि को हटा लेते | | गहरी श्वास लें और देखने लगे कि आप देख रहे हैं अपने शरीर हैं, तब वह भी काम करता है। लेकिन नीचे के भय के कारण हम | को भोजन करते हुए। पहले थोड़ी अड़चन होगी, थोड़ा-सा विचित्र ऊपर से भी भयभीत होते हैं। नीचे के डर के कारण, हम ऊपर की | मालूम पड़ेगा, क्योंकि दो की जगह तीन आदमी हो गए। अभी तरफ भी नहीं खुलते।
भोजन था, करने वाला था; भूख थी, करने वाला था। अब एक इसलिए मेरा कहना है कि प्रकृति को भी परमात्मा का बाह्य रूप यह तीसरा और आ गया, देखने वाला। . समझें। उससे भी भयभीत न हों। उससे भी भयभीत न हों, उसमें यह देखने वाले की वजह से थोड़ी कठिनाई होगी। एक तो भी उतरें। उससे भी डरें मत। उससे भी भागें मत। उसको भी घटने भोजन करना धीमा हो जाएगा। आप ज्यादा चबाएंगे, आहिस्ता दें। उसमें भी बाधा मत डालें और नियंत्रण मत बनाएं। बिना बाधा | उठाएंगे। क्योंकि यह देखने वाले की वजह से क्रियाओं में जो डाले, बिना नियंत्रण बनाए, होश को कायम रखें। वह अलग बात विक्षिप्तता है. वह कम हो जाती है। शायद इसीलिए हम देखने वाले है। फिर वह बुद्धि नहीं है।
को बीच में नहीं लाते, क्योंकि जल्दी ही डालकर भागना है। किसी बुद्धि का अर्थ है, बाधा डालना, नियंत्रण करना। ऐसा न हो, | तरह अंदर कर देना है भोजन को और निकल पड़ना है। ऐसा हो। उपाय करना। होश का अर्थ है, साक्षी होना। हम कोई | अगर आप चलेंगे भी होशपूर्वक, तो आप पाएंगे, आपकी गति बाधा न डालेंगे। अगर क्रोध आ रहा है, तो हम क्रोध के भी साक्षी | धीमी हो गई। हो जाएंगे। और कामवासना आ रही है, तो हम कामवासना के भी बुद्ध चलते हैं। उनके चलने की गति ऐसी शांत है, जैसे कोई परदे साक्षी हो जाएंगे। हम देखेंगे; हम बीच में कुछ निर्णय न करेंगे कि | पर फिल्म को बहुत धीमी स्पीड में चला रहा हो; बहुत आहिस्ता है। अच्छा है, कि बुरा है; होना चाहिए, कि नहीं होना चाहिए; मैं रोकं, बुद्ध से कोई पूछता है कि आप इतने धीमे क्यों चलते हैं? तो कि न रोकं; करूं, कि न करूं; हम कुछ भी निर्णय न लेंगे। हम | बुद्ध ने कहा कि उलटी बात है। तुम मुझ से पूछते हो कि मैं इतना सिर्फ शांत देखेंगे; जैसे दूर खड़ा हुआ कोई आदमी चलते हुए रास्ते
धीमा क्यों चलता है। मैं तमसे पछता है कि तम पागल की तरह को देख रहा हो। आकाश में पक्षी उड़ रहे हों और आप देख रहे हों, | क्यों चलते हो? यह इतना ज्वर, इतना बुखार चलने में क्यों है? ऐसा हम देखेंगे।
चलने में इतनी विक्षिप्तता क्यों है? मैं तो होश से चलता है, तो सब नीचे की प्रकृति को भी दर्शन करना सीखें, तो बुद्धि हटेगी और | कुछ धीमा हो जाता है। साक्षी जगेगा। और जब नीचे का भय न रह जाएगा, तो आप ऊपर ___ध्यान रहे, जितना होश होगा, उतनी आपकी क्रिया धीमी हो की तरफ भी बुद्धि को हटाकर रख सकेंगे। क्योंकि आपको भरोसा | जाएगी। और जितना कर्ता शून्य होगा, उतना क्रियाओं में से उन्माद, आ जाएगा कि बुद्धि को ढोने की कोई भी जरूरत नहीं है। और जैसे | ज्वर चला जाएगा; क्रियाएं शांत हो जाएंगी। ही बुद्धि हटती है, परमात्मा ज्ञात होना शुरू हो जाता है। | और ध्यान रहे, शांत क्रियाओं से पाप नहीं किया जा सकता।
वह अविज्ञेय है बुद्धि से। लेकिन बुद्धि के हटते ही प्रज्ञा से, अगर आप किसी की हत्या करने जा रहे हैं और धीमे-धीमे जा रहे साक्षी भाव से वही ज्ञान योग्य है, वही जानने योग्य है, वही अनुभव | हैं, तो पक्का समझिए, हत्या-वत्या नहीं होने वाली है। अगर आप योग्य है।
| किसी का सिर तोड़ने को खड़े हो गए हैं और बड़े आहिस्ता से आखिरी बात इस संबंध में खयाल ले लें, क्योंकि साक्षी का सूत्र | | तलवार उठा रहे हों, तो इसके पहले कि तलवार उसके सिर में जाए, बहुत मूल्यवान है। और अगर आप साक्षी के सूत्र को ठीक से | | म्यान में वापस चली जाएगी। समझ लें, तो परमात्मा का कोई भी रहस्य आपसे अनजाना न रह | उतने धीमे पाप होता ही नहीं। पाप के लिए ज्वर, त्वरा, तेजी जाएगा। और इस साक्षी के सूत्र को समझने के लिए छोटा-छोटा | | चाहिए। और जो आदमी तेजी से जी रहा है, वह चाहे पाप कर प्रयोग करें। कुछ भी छोटा-मोटा काम कर रहे हों, तो कर्ता बनकर | | रहा हो, न कर रहा हो, उससे बहुत पाप अनजाने होते रहते हैं। मत करें, साक्षी बनकर करें, ताकि थोड़ा अनुभव होने लगे कि | | उसकी तेजी से ही होते रहते हैं। उसके ज्वर से ही हो जाते हैं। ज्वर
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