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________________ o स्वयं को बदलो ही पाप है। ऊहापोह बंद हो जाएगा। बुद्ध कहते हैं, जैसे ही होश से करोगे, सब धीमा हो जाएगा। कोई छोटा-सा प्रयोग। कुछ नहीं कर रहे हैं; श्वास को ही देखें। रास्ते पर चलते वक्त अचानक खयाल कर लें; एक गहरी श्वास | श्वास भीतर गई, बाहर गई। श्वास भीतर गई, बाहर गई। आप लें, ताकि खयाल साफ हो जाए और धीमे से देखें कि आप चल उसको ही देखें। लोग मुझसे पूछते हैं, कोई मंत्र दे दें। मैं उनसे कहता हूं, मंत्र खाली बैठे हैं; आंख बंद कर लें और देखें कि आप बैठे हुए हैं। | वगैरह न लें। एक मंत्र परमात्मा ने दिया है, वह श्वास है। उसको आंख बंद करके बराबर आप देख सकते हैं कि आपकी मूर्ति बैठी | | देखें। श्वास पहला मंत्र है। बच्चा पैदा होते ही पहला काम करता हुई है। एक पैर की तरफ से देखना शुरू करें कि पैर की क्या हालत है श्वास लेने का। और आदमी जब मरता है. तो आखिरी काम है। दब गया है। परेशान हो रहा है। चींटी काट रही है। ऊपर की | | करता है श्वास छोड़ने का। श्वास से घिरा है जीवन। तरफ बढ़ें। पूरे शरीर को देखें कि आप देख रहे हैं। आप जन्म के बाद पहला काम श्वास है; वह पहला कृत्य है। आप देखते-देखते ही बड़ी गहरी शांति में उतर जाएंगे, क्योंकि देखने में | | श्वास लेकर ही कर्ता हुए हैं। इसलिए अगर आप श्वास को देख आदमी साक्षी हो जाता है। | सकें, तो आप पहले कृत्य के पहले पहुंच जाएंगे। आपको उस रात बिस्तर पर लेट गए हैं। सोने के पहले एक पांच मिनट आंख | | जीवन का पता चलेगा, जो श्वास लेने के भी पहले था, जो जन्म बंद करके पूरे शरीर को भीतर से देख लें। के पहले था। शायद आपको पता हो या न हो, पश्चिम तो अभी एनाटॉमी की | अगर आप श्वास को देखने में समर्थ हो जाएं, तो आपको पता खोज कर पाया है कि आदमी के शरीर में क्या-क्या है। क्योंकि चल जाएगा कि मृत्यु शरीर की होगी, श्वास की होगी, आपकी नहीं उन्होंने सर्जरी शुरू की, आदमी को काटना शुरू किया। यह कोई होने वाली। आप श्वास से अलग हैं। तीन सौ साल में ही आदमी को काटना संभव हो पाया, क्योंकि बुद्ध ने बहुत जोर दिया है अनापानसती-योग पर, श्वास के दुनिया का कोई धर्म लाश को काटने के पक्ष में नहीं था। तो पहले आने-जाने को देखने का योग। वे अपने भिक्षुओं को कहते थे, तुम सर्जन जो थे, वे चोर थे। उन्होंने लाशें चुराईं मुरदाघरों से; काटा, | | कुछ भी मत करो; बस एक ही मंत्र है, श्वास भीतर गई, इसको आदमी को भीतर से देखा। लेकिन योग हजारों साल से भीतर देखो; श्वास बाहर गई, इसको देखो। और जोर से मत लेना। कुछ आदमी के संबंध में बहुत कुछ जानता है। करना मत श्वास को; सिर्फ देखना। करने का काम ही मत करना। अब ये पश्चिम के सर्जन कहते हैं कि पूरब में योग को कैसे पता सिर्फ देखना। चला आदमी के भीतर की चीजों का? वह पता काटकर नहीं चला आंख बंद कर ली, श्वास ने नाक को स्पर्श किया, भीतर गई, है। वह योगी के साक्षी भाव से चला है। | भीतर गई। भीतर पेट तक जाकर उसने स्पर्श किया। पेट ऊपर उठ अगर आप भीतर साक्षी भाव से प्रवेश करें और घूमने लगें, तो | गया। फिर श्वास वापस लौटने लगी। पेट नीचे गिर गया। श्वास थोड़े दिन में आप अपने शरीर को भीतर से देखने में समर्थ हो | | वापस आई। श्वास बाहर निकल गई। फिर नई श्वास शुरू हो गई। जाएंगे। आप भीतर का हड्डी, मांस-मज्जा, स्नायु-जाल सब भीतर यह वर्तुल है। इसे देखते रहना। से देखने लगेंगे। और एक बार आपको भीतर से शरीर दिखाई पड़ने । अगर आप रोज पंद्रह-बीस मिनट सिर्फ श्वास को ही देखते रहें, लगे, कि आप शरीर से अलग हो गए। क्योंकि जिसने भीतर से तो आप चकित हो जाएंगे, बुद्धि हटने लगी। साक्षी जगने लगा। शरीर को देख लिया, वह अब यह नहीं मान सकता कि मैं शरीर आंख खुलने लगी भीतर की। हृदय के द्वार, जो बंद थे जन्मों से, हूं। वह देखने वाला हो गया; वह द्रष्टा हो गया। खुलने लगे, सरकने लगे। उस सरकते द्वार में ही परमात्मा की चौबीस घंटे में जब भी आपको मौका मिल जाए, कोई भी पहली झलक उपलब्ध होती है। क्रिया में, साक्षी को सम्हालें। साक्षी के सम्हालते दो परिणाम साक्षी द्वार है; बुद्धि बाधा है। होंगे। क्रिया धीमी हो जाएगी; कर्ता क्षीण हो जाएगा; और विचार पांच मिनट रुकेंगे। कीर्तन में सम्मिलित हों बैठकर। अगर और बुद्धि कम होने लगेंगे, विचार शांत होने लगें। बुद्धि का सम्मिलित न हो सकें, तो कम से कम साक्षी भाव से देखें। 291
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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