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प्रेम का द्वार : भक्ति में प्रवेश
वह है, अहंकार विसर्जन।
आपका संबंध और संवाद हो पाएगा। ज्ञानी कोई कितना ही बड़ा हो जाए, एक दिन उसे ज्ञानी होने की और ऐसा नहीं है कि एक बार आपका हृदय समझ जाए, तो अस्मिता भी छोडनी पडती है। इसलिए साक्रेटीज ने कहा है कि ज्ञान आपकी बद्धि की कसौटी पर ये सत्र नहीं उतरेंगे। उतरेंगे। लेकिन का अंतिम चरण है इस बात का अनुभव कि मैं ज्ञानी नहीं हूं। ज्ञान एक बार हृदय समझ जाए, एक बार आपके हृदय में इनके रस की की पूर्णता है इस प्रतीति में कि मुझसे बड़ा अज्ञानी और कोई भी | थोड़ी-सी धारा बह जाए, तो फिर बुद्धि की भी समझ में आ जाएंगे। नहीं है।
लेकिन सीधा अगर बुद्धि से प्रयोग करने की कोशिश की, तो बुद्धि अगर ज्ञान की पूर्णता इस प्रतीति में है कि मैं अज्ञानी हूं, तो बाधा बन जाएगी। इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ हुआ कि भक्त जो कदम पहले जैसा मैंने कहा, बहुत बार लगता है कि बुद्धि बिलकुल ठीक ही उठा लेता है...। भक्त पहले ही कदम पर अंधा हो जाता है, | कह रही है। चूंकि हमें ठीक का कोई पता नहीं है, जो बुद्धि कहती ज्ञानी अंतिम कदम पर अंधा होता है। बहुत यात्रा करके उसी द्वार | है, उसी को हम ठीक मानते हैं। पर आना होता है, जहां आदमी अपने को खोता है।
सुना है मैंने, एक बहुत बड़ा तर्कशास्त्री रात सोया हुआ था। पर ज्ञानी बहुत चक्कर लेता है! बड़े शास्त्र हैं, बड़े सिद्धांत हैं, उसकी पत्नी ने उसे उठाया और कहा कि जरा उठो। बाहर बहुत सर्दी बड़े वाद हैं, उन सबमें भटकता है। बड़े विचार हैं। और जब तक | | है और मैं गली जा रही हूं। खिड़की बंद कर दो। उसकी पत्नी ने ऊब नहीं जाता; और जब तक अपने ही विचारों से परेशान नहीं हो | कहा, देअर इज़ टू मच कोल्ड आउटसाइड। गेट अप एंड क्लोज जाता; और जब तक उसे यह समझ में नहीं आ जाता कि मेरे विचार | दि विंडो। उस तर्कशास्त्री ने कहा कि तू भी अजीब बातें कर रही ही जाले की तरह मुझे बांधे हुए हैं; और मेरे विचार ही मेरी | है! क्या मैं खिड़की बंद कर दूं, तो बाहर गरमी हो जाएगी? इफ हथकड़ियां हैं; और मैंने अपने ही विचारों से अपना कारागृह निर्मित | | आई क्लोज दि विंडो, विल आउटसाइड गेट वार्म? क्या बाहर सर्दी किया है, तब तक, तब तक वह लंबी भटकन से गुजरता है। | चली जाएगी अगर मैं खिड़की बंद कर दूं?
भक्त पहले ही कदम में अपने को छोड़ देता है। और जिस क्षण | | तर्क की लिहाज से बिलकुल ठीक बात है। उसकी पत्नी कह रही कोई अपने को छोड़ देता है, उसी क्षण परमात्मा उसे उठा लेता है। | थी कि बाहर बहुत सर्दी है, खिड़की बंद कर दो। उस तर्कशास्त्री ने भक्त का साहस अदभुत है। साहस का एक ही अर्थ होता है, कहा, क्या खिड़की बंद करने से बाहर गरमी हो जाएगी? खिड़की अज्ञात में उतर जाना। साहस का एक ही अर्थ होता है. अनजान में बंद करने से बाहर गरमी नहीं होने वाली। और पति सो गया। तर्क उतर जाना।
की किताब में भल खोजनी मश्किल है। क्योंकि पत्नी ने जो कहा ज्ञानी जान-जानकर चलता है; सोच-सोचकर कदम उठाता है। | था, उसका जवाब दे दिया गया। हिसाब रखता है। भक्त पागल की तरह कूद जाता है। इसलिए हमारी जिंदगी में हम अज्ञात के संबंध में जो तर्क उठाते हैं, वे ज्ञानियों को भक्त सदा पागल मालूम पड़े हैं। और उन भक्त पागलों करीब-करीब ऐसे ही होते हैं। उनके जवाब दिए जा सकते हैं। और ने हमेशा ज्ञानियों को व्यर्थ के उपद्रव में पड़ा हुआ समझा है। फिर भी जवाब व्यर्थ होते हैं। क्योंकि जिस संबंध में हम जवाब दे .
ये जो भक्ति के सूत्र इस अध्याय में हम चर्चा करेंगे, इनमें ये | | रहे हैं, उस संबंध में तर्कयुक्त हो जाना काफी नहीं है। बातें ध्यान रख लेनी जरूरी हैं।
और तर्क की और एक असुविधा है कि तर्क कुछ भी सिद्ध कर ये प्रेम और पागलपन के सूत्र हैं। इनमें थोड़ा-सा आपको | | सकता है। और तर्क कुछ भी असिद्ध कर सकता है। तर्क वेश्या पिघलना पड़ेगा अपनी बुद्धि की जगह से। थोड़ा आपका हृदय की भांति है। उसका कोई पति नहीं है। तर्क का कोई भी पति हो गतिमान हो और थोड़ी हृदय में तरंगें उठें, तो इन सूत्रों से संबंध सकता है। जो भी तर्क को चुकाने को तैयार है पैसे, वही पति हो स्थापित हो जाएगा। आपके सिरों की बहुत जरूरत नहीं पड़ेगी, | जाता है। इसलिए तर्क कोई भरोसे की नाव नहीं है। आपके हृदय की जरूरत होगी। आप अगर थोड़े-से नीचे सरक आज तक दुनिया में ऐसा कोई तर्क नहीं दिया जा सका, जिसका आएंगे, अपनी खोपड़ी से थोड़े हृदय की तरफ; सोच-विचार नहीं, | | खंडन न किया जा सके। और मजा यह है कि जो तर्क एक बात को थोड़े हृदय की धड़कन की तरफ निकट आ जाएंगे, तो इन सूत्रों से सिद्ध करता है, वही तर्क उसी बात को असिद्ध भी कर सकता है।