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0 गीता दर्शन भाग-660
___ उनके लिए मार्ग हैं। लेकिन कृष्ण इस सूत्र में कहेंगे कि भक्ति की प्रतीति होती है, कृष्ण उसी को योग कहते हैं। वही मिलन है, से श्रेष्ठ उन मार्गों में कोई भी मार्ग नहीं है। किस कारण? क्योंकि वही परम समाधि है। बुद्धि कितना ही सोचे, अहंकार के पार जाना बहुत मुश्किल है। प्रेम | | इस मिलने में परमात्मा तो पहले से ही तैयार है, सदा तैयार है। छलांग लगाकर अहंकार के बाहर हो जाता है। बुद्धि लाख प्रयत्न हम बाधा हैं। आमतौर से हम सोचते हैं, हम परमात्मा को खोज रहे करके भी अहंकार के बाहर नहीं हो पाती। क्योंकि जब मैं सोचता हैं और परमात्मा नहीं मिल रहा है। इससे बड़ी भ्रांति की कोई और हूं, तो मैं तो बना ही रहता हूं। जब मैं हिसाब लगाता हूं, तो मैं तो बात नहीं हो सकती। सचाई कुछ और ही है। परमात्मा हमें निरंतर बना ही रहता हूं। मैं कुछ भी करूं-पूजा करूं, ध्यान करूं, योग | से खोज रहा है। लेकिन हम ऐसे अड़े हुए हैं अपने पर कि हम साधूं लेकिन मैं तो बना ही रहता हूं।
उसको भी सफल नहीं होने देते। भक्ति पहले ही क्षण में मैं को पार कर जाती है। क्योंकि भक्ति सुना है मैंने, एक सम्राट अपने बेटे पर नाराज हो गया था, तो का अर्थ है, समर्पण। भक्ति का अर्थ है कि अब मैं नहीं, तू ज्यादा | उसने उसे घर से निकाल दिया। फिर बाप था; साल, छः महीने में महत्वपूर्ण है। और अब मैं मैं को छोडूंगा, मिटाऊंगा, ताकि तुझे पा | | पिघल गया वापस। खबर भेजी लड़के को कि लौट आओ। लेकिन सकूँ। यह मेरा मिटना ही तेरे पाने का रास्ता बनेगा। और जब तक | लड़का भी जिद्दी था, और उसने लौटने से इनकार कर दिया कि जब मैं हूं, तब तक तुझसे दूरी बनी रहेगी। जितना मजबूत हूं मैं, उतनी | एक बार निकाल ही दिया, तो अब...अब आना उचित नहीं है। ही दूरी है, उतना ही फासला है। जितना पिघलूंगा, जितना गलूंगा, | अब मैं न हिलूंगा यहां से। वह राज्य की सीमा के बाहर जाकर बैठ जितना मिलूंगा, उतनी ही दूरी मिट जाएगी।
गया था। भक्ति को कृष्ण श्रेष्ठतम योग कहते हैं, एक कारण और है जिस सम्राट ने मंत्री को भेजा और कहा, थोड़ा तो हिलो, एक कदम वजह से।
| ही सही। तुम एक कदम चलो, बाकी कदम मैं चल लूंगा। बाप ने जहां दो हों, और फिर भी एक का अनुभव हो जाए, तो ही योग | | खबर भेजी है कि तुम एक कदम ही चलो, तो भी ठीक, बाकी कदम
हो. और एक का अनभव हो. तो योग का मैं चल लंगा। लेकिन तम्हारा एक कदम चलना जरूरी है। ऐसे तो कोई सवाल नहीं है।
| मैं भी पूरा चलकर आ सकता हूं। जब इतने कदम चल सकता हूं, __ अगर कोई ऐसा समझता हो कि केवल परमात्मा ही है और कुछ | | तो एक कदम और चल लूंगा। लेकिन वह मेरा आना व्यर्थ होगा, भी नहीं, तो योग का कोई सवाल नहीं है, मिलन का कोई सवाल क्योंकि तुम मिलने को तैयार ही नहीं हो। तुम्हारा एक कदम, तुम्हारी नहीं है। जब एक ही है, तो न मिलने वाला है, न कोई और है, जिसमें मिलने की तैयारी की खबर देगा। बाकी मैं चल लूंगा। मिलना है। मिलने की घटना तो तभी घट सकती है, जब दो हों। आपका एक कदम चलना ही जरूरी है, बाकी तो परमात्मा चला ___एक शर्त खयाल रखनी जरूरी है। दो हों, और फिर भी दो के | | ही हुआ है। लेकिन आपकी मिलने की तैयारी न हो, तो आप पर बीच एक का अनुभव हो जाए, तभी मिलने की घटना घटती है। | आक्रमण नहीं किया जा सकता। मिलन बड़ी आश्चर्यजनक घटना है। दो होते हैं, और फिर भी दो परमात्मा अनाक्रमक है; वह प्रतीक्षा करेगा। फिर उसे कोई समय नहीं होते। दो लगते हैं, फिर भी दुई मिट गई होती है। दो छोर मालूम की जल्दी भी नहीं है। फिर आज ही हो जाए, ऐसा भी नहीं है। अनंत पड़ते हैं, फिर भी बीच में एक का ही प्रवाह अनुभव होता है। दो | तक प्रतीक्षा की जा सकती है। समय की कमी हमें है, उसे नहीं। किनारे होते हैं, लेकिन सरिता बीच में बहने वाली एक ही होती है। | समय की अड़चन हमें है। हमारा समय चुक रहा है, और हमारी जब दो के बीच एक का अनुभव हो जाए तो योग।
शक्ति व्यय हो रही है। लेकिन एक कदम हमारी तरफ से उठाया इसलिए कृष्ण भक्ति को सर्वश्रेष्ठ योग कहते हैं। | जाए, तो परमात्मा की तरफ से सारे कदम उठाए ही हुए हैं।
मजा ही क्या है, अगर एक ही हो; तो मिलने का कोई अर्थ भी । वह एक कदम भक्ति एक ही छलांग में उठा लेती है। और ज्ञान नहीं है। और अगर दो हों, और दो ही बने रहें, तो मिलने का कोई | | को उस एक कदम को उठाने के लिए हजारों कदम उठाने पड़ते हैं। उपाय नहीं है। दो हों और एक की प्रतीति हो जाए; दो होना ऊपरी | क्योंकि ज्ञान कितने ही कदम उठाए, अंत में उसे वह कदम तो रह जाए, एक होना भीतरी अनुभव बन जाए। दो के बीच जब एक | | उठाना ही पड़ता है, जो भक्ति पहले ही कदम पर उठाती है। और