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________________ ॐ स्वयं को बदलो को गणित नहीं जमता। जिन बच्चों को गणित नहीं जमता, या | | | संगति नहीं बैठती, उनमें विरोध है। तो आप जन्मों-जन्मों तक जिनको गणित में बिलकुल रस नहीं आता, या जिनको गणित में कोशिश करते रहें, वह रेत से तेल निकालने जैसी चेष्टा है। वह कोई गति नहीं होती, उन्हें भूलकर भी निराकार और निर्गुण की बात कभी सफल न होगी। और आप शायद यही सोचते रहेंगे कि कर्मों में नहीं पड़ना चाहिए। मैं सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं। जिनकी के फल के कारण बाधा पड़ रही है। कर्मों के फल के कारण बाधा गणित पर पकड़ नहीं बैठती, उनको निराकार और निर्गुण की बात | पड़ती है, लेकिन इतनी बाधा नहीं पड़ती, जितनी बाधा ढांचे के ही नहीं करनी चाहिए। क्योंकि गणित तो स्थूलतम निराकार की | | विपरीत अगर कोई मार्ग चुन ले तो पड़ती है। यात्रा है। ध्यान तो परम यात्रा है। इसलिए गुरु का उपयोग है कि वह आपके ढांचे के संबंध में आइंस्टीन जैसा व्यक्ति निराकार में उतर सकता है सरलता से, | खोज कर सकता है। क्योंकि सारा खेल ही निराकार गणित का है। पश्चिम में मनोवैज्ञानिक स्वीकार करते हैं कि आपको अपने मन गणित बाहर कहीं भी नहीं है, केवल बुद्धि के निराकार में है। | के संबंध में उतना पता नहीं है, जितना कि मनसविद को पता है। अगर आदमी मर जाए, तो गणित बिलकुल मिट जाएगा। क्योंकि | और मनसविद आपका विश्लेषण करके आपके संबंध में वे बातें गणित का कोई सवाल ही नहीं है। आप कहते हैं, एक, दो, तीन, जान लेता है, जो आपको ही पता नहीं थीं। चार-ये कहीं भी नहीं हैं। यह सिर्फ खयाल है, सिर्फ एक निराकार | तो आप यह मत समझ लेना कि चूंकि आप हैं, इसलिए आप भाव है। | अपने संबंध में सब जानते हैं। आप अपने संबंध में एक प्रतिशत ___ इस तरह का कोई व्यक्ति हो कि उसका निराकार से, एब्सट्रैक्ट | भी नहीं जानते। निन्यानबे प्रतिशत तो आपको अपने बाबत ही पता से कोई संबंध न बैठता हो, तो उसे साकार की यात्रा करनी चाहिए। | नहीं है। और उसके लिए कोई दूर से निष्पक्ष खड़े होकर देखने जैसे मीरा है। तो मीरा को निराकार से कोई रस नहीं, कोई संबंध | वाला चाहिए, जो ठीक से पहचान ले कि क्या-क्या आपके भीतर नहीं है। वह तो कृष्ण को जितना रसपूर्ण देख पाती है, नाचते हुए, | छिपा है। अगर वह आपके भीतर को ठीक से पहचान ले और बांसुरी बजाते हुए, उतनी ही लीन हो जाती है। | पकड़ ले, तो मार्ग चुनना आसान हो जाए। स्त्रियां अक्सर निराकार की तरफ नहीं जा सकतीं। क्योंकि स्त्रैण अनंत मार्ग हैं और अनंत तरह के लोग हैं। और ठीक मार्ग ठीक मन आकति को | प्रेम करता है. आकार को प्रेम करता है। परुष व्यक्ति को मिल जाए. तो कभी-कभी क्षण में भी मक्ति फलित हो अक्सर निराकार की तरफ जा सकते हैं। क्योंकि पुरुष मन जाती है। लेकिन वह तभी, जब बिलकुल ठीक मार्ग और ठीक एब्सट्रैक्ट है, निर्गुण की तलाश करता है। व्यक्ति से मिल जाए। लेकिन सभी पुरुष पुरुष नहीं होते और सभी स्त्रियां स्त्रियां नहीं यह करीब-करीब वैसा है, जैसे आप रेडिओ लगाते हैं। और होतीं। बहुत-सी स्त्रियां पुरुष के ढांचे की होती हैं, बहुत-से पुरुष | आपकी सुई अगर ढीली हो, तो दो-दो, चार-चार स्टेशन एक साथ स्त्री के ढांचे के होते हैं। यह ढांचा केवल शरीर का नहीं, मन का | पकड़ती है। कुछ भी समझ में नहीं आता। फिर आप धीमे-धीमे, भी है। धीमे-धीमे ट्यून करते हैं। और जब ठीक जगह पर सुई रुक जाती तो आपको ठीक पता लगा लेना चाहिए कि आपका भीतरी ढांचा है, ठीक स्टेशन पर, तो सभी स्पष्ट हो जाता है। क्या है। इसलिए गुरु की बड़ी उपयोगिता है। क्योंकि आपको ___ करीब-करीब आपके बीच और विधि के बीच जब तक ठीक शायद यह समझ में भी न आ सके कि आपका ढांचा क्या है। और | ट्यूनिंग न हो जाए, तब तक सत्य की कोई प्रतीति नहीं होती। तब शायद आप गलत ढांचे पर प्रयोग करते रहें और परेशान होते रहें। | तक बहुत बार आपको बहुत मार्ग बदलने पड़ते हैं; बहुत बार अनेक लोग परेशान होते हैं और वे यही समझते हैं कि अपने कर्मों | बहुत-सी विधियां बदलनी पड़ती हैं। के फल के कारण उपलब्धि नहीं हो रही है। अक्सर तो कर्मों के फल | लेकिन अगर आदमी सजग हो, तो बिना गुरु के भी मार्ग खोज का कोई संबंध नहीं होता। उपलब्धि में भूल इसलिए होती है कि ले सकता है। समय थोड़ा ज्यादा लगेगा। अगर आदमी समर्पणशील आपसे तालमेल नहीं पड़ता, जिस विधि का आप प्रयोग कर रहे हैं। हो, तो गुरु के सहारे बहुत जल्दी घटना घट सकती है। जो आप प्रयोग कर रहे हैं। और जो आप हैं, उन दोनों में कोई 283
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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