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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 आपका दिमाग खराब हो गया है। उन्होंने काली की प्रार्थना और पूजा करके पाया था, तब उन्होंने कहा सब्जेक्टिव है, आंतरिक है, आत्मिक है। आपका ही भाव | कि ठीक है, यह रास्ता भी वहीं आता है। यह रास्ता भी वहीं ले साकार हुआ है। और यह कला बड़ी अदभुत है। यह भाव अगर | जाता है। इस रास्ते से चलने वाले भी वहीं पहुंच जाएंगे, जहां दूसरे पूरी तरह साकार होने लगे, तो आप मनुष्य की हैसियत से मिटते | रास्तों से चलने वाले पहंचते हैं। जाएंगे और परमात्मा की हैसियत से प्रकट होने लगेंगे। अपने भाव । फिर तो रामकृष्ण ने कोई छः धर्मों के अलग-अलग प्रयोग से यह सृजन की क्षमता को उपलब्ध कर लेना स्रष्टा हो जाना है। | किए। और सभी धर्मों से जब वे एक ही समाधि को पहुंच गए, तब यही क्रिएटर हो जाना है। उन्होंने यह वक्तव्य दिया कि रास्ते अलग हैं, लेकिन पर्वत का __ लेकिन आप इससे ऐसा मत समझ लेना कि आपको कृष्ण का शिखर एक है। और अलग-अलग रास्तों से, कभी-कभी विपरीत स्मरण आता है, इसलिए जिसको क्राइस्ट का स्मरण आता है उसको | दिशाओं में जाने वाले रास्तों से भी आदमी उसी एक शिखर पर गलती हो रही है। आप ऐसा भी मत समझ लेना कि कृष्ण के आपको | पहुंच जाता है। दर्शन होते हैं, इसलिए सभी को कृष्ण के दर्शन से ही परमात्मा की तो जल्दी मत करना। दूसरे पर कृपा करना। दूसरे को चोट. प्राप्ति होगी। इस भूल में आप मत पड़ना। अपने-अपने भाव, | पहुंचाने की कोशिश मत करना। एक ही ध्यान रखना कि आपकी अपना-अपना मार्ग, अपनी-अपनी प्रतीति।। पूरी शक्ति अपने ही प्रयोग में लगे। और धीरे-धीरे आपकी चेतना और भूलकर भी दूसरे की प्रतीति को छूना मत, और गलत मत आपके ही भाव के साथ एक हो जाए। कहना। अपनी प्रतीति बता देना कि मुझे ऐसा होता है, और मुझे परमात्मा को निकट लाने की एक ही कला है। और वह कला यह आनंद हो रहा है। लेकिन दूसरे की प्रतीति को गलत कहने की | यह है कि आप अपने भाव को पूरा का पूरा उसमें डुबा दें। कोशिश मत करना, क्योंकि वह अनधिकार है, वह ट्रेसपास है। इसके दो उपाय हैं। अगर आपके मन की वृत्ति सगुण की हो, तो और दूसरे के भाव को नुकसान पहुंचाना अधार्मिक है। | आप कृष्ण, क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर, कोई भी प्रतीक चुन लें कोई ___आपको ऐसा भी लगता हो कि यह गलत हो रहा है दूसरे को, | भी रूप, कोई भी आकार चुन लें; और उसी आकार में अपने को तो भी आप जल्दी मत करना, क्योंकि दूसरे के संबंध में आपको लीन करने लगे। कुछ भी पता नहीं है। थोड़ा धैर्य रखना। और अगर दूसरे के संबंध लेकिन अगर आकार में आपकी रुचि न हो, तो जरूरत नहीं है में कुछ भी कहना हो, तो दूसरा जो प्रयोग कर रहा है, वह प्रयोग | किसी आकार की भी। तब आप निराकार ध्यान में सीधे उतरने खुद भी कर लेना और फिर ही कहना। लगे। तब आप अनंत और अनादि का, शाश्वत और सनातन का, रामकृष्ण को ऐसा ही हुआ। रामकृष्ण को लोग आकर पूछते थे | | निराकार आकाश का ही भाव करें-किसी मूर्ति का, किसी बिंब कि इस्लाम धर्म कैसा? ईसाइयत कैसी? तंत्र के मार्ग कैसे हैं? तो का, किसी प्रतीक का नहीं। रामकृष्ण ने कहा कि मैं जब तक उन प्रयोगों को नहीं किया हूं, कुछ यह भी आपको खोज लेना चाहिए कि आपके लिए क्या उचित भी नहीं कह सकता। तो लोग पूछते हैं, तो रामकृष्ण ने कहा कि मैं | | होगा। आपका अपना भीतरी झुकाव और लगन, आपका भीतरी सब प्रयोग करूंगा। | ढांचा क्या है, यह आपको ठीक से समझ लेना चाहिए। क्योंकि तो रामकृष्ण छः महीने के लिए मुसलमान की तरह रहे। पृथ्वी | सभी लोगों को सभी बातें ठीक नहीं होंगी; सभी मार्ग सभी के लिए पर यह प्रयोग पहला था, अपने ढंग का था। रामकृष्ण छः महीने | ठीक नहीं होंगे। तक मंदिर नहीं जाते थे, मस्जिद ही जाते थे। और छः महीने तक | जो आदमी निर्गुण को समझ ही नहीं सकता, वह आदमी निर्गुण नमाज ही पढ़ते थे, प्रार्थना नहीं करते थे। छः महीने तक उन्होंने | | के पीछे पड़ जाएगा, तो कष्ट पाएगा और कभी भी उपलब्धि न हिंदुओं जैसे कपड़े पहनने बंद कर दिए थे और मुसलमान जैसे | होगी। कपड़े पहनने लगे थे। छः महीने उन्होंने अपने को इस्लाम में पूरी इसे आप ऐसा समझें। स्कूल में बच्चे भर्ती होते हैं। सभी बच्चों तरह डुबा लिया। | को गणित नहीं जमता, क्योंकि गणित बिलकुल निराकार है। गणित और जब इस्लाम से भी उन्हें वही अनुभव हो गया, जो अनुभव का कोई आकार तो है नहीं। गणित तो एब्सट्रैक्ट है। सभी बच्चों 2821
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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