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0 गीता दर्शन भाग-60
आखिरी सवाल। एक मित्र पूछते हैं कि मैंने सुना है तो बुद्ध ज्यादा कुशल हैं। वे बीच-बीच में नहीं रुकते, वे पहले कि रामकृष्ण परमहंस जब भी गुह्य ज्ञान के बारे में ही घोषणा कर देते हैं। बुद्ध जिस गांव में जाते थे, वे कहलवा देते थे बताते थे, तभी बीच-बीच में रुक जाते थे, और कहते कि ग्यारह प्रश्न मुझसे कोई न पूछे। थे, मां मुझे सच बोलने को नहीं देती। इसका क्या | उन ग्यारह प्रश्नों में वे सब बातें आ जाती थीं. जो गह्म सत्य के अर्थ है?
संबंध में हैं। वे कहते थे, इन्हें छोड़कर तुम कुछ भी पूछो। ये ग्यारह प्रश्न मुझसे मत पूछो। क्योंकि इनके संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा
सकता। ये अव्याख्येय हैं। 7 त्य बोला नहीं जा सकता; बोलने की कोशिश की जा | रामकृष्ण ग्राम्य थे। उनकी भाषा ग्रामीण की थी। उनके प्रतीक रा सकती है। और जिनको सत्य का कोई पता नहीं है, | | भी ग्राम्य थे। उनकी कहानियां भी ग्राम्य थीं। उन्होंने पहले से
उन्हें यह अनुभव कभी नहीं होता कि सत्य बोला नहीं | | घोषणा नहीं की थी, लेकिन जब वे बोलते थे, तो बीच-बीच में जा सकता। जिन्हें सत्य का पता ही नहीं है, वे मजे से बोल सकते | अड़चन आ जाती थी। वे कुछ कहना चाहते थे और वह नहीं प्रकट. हैं। उन्हें कभी खयाल भी न आएगा कि सत्य को शब्द में रखना | होता था। कोई शब्द नहीं मिलता था। अत्यंत कठिन, करीब-करीब असंभव है।
लेकिन यह घटना तभी घटती है, जब आपके पास कुछ जिनको भी सत्य का पता है, उन्हें बहुत बार भीतर यह अड़चन | | महत्वपूर्ण कहने को हो। अगर आप बाजार में चीजें खरीदने और आ जाती है; बहुत बार यह अड़चन आ जाती है। उन्हें मालूम है कि | बेचने की ही भाषा को, और उतना ही आपके पास कहने को हो, क्या है सत्य, लेकिन कोई शब्द उससे मेल नहीं खाता। अगर वे | तो यह अड़चन कभी नहीं आती। लेकिन जैसे ही आप ऊपर उड़ते कोई भी शब्द चुनते हैं, तो पाते हैं कि उससे कुछ भूल हो जाएगी। | हैं और समाज और बाजार की भाषा के बाहर की दुनिया में प्रवेश वे जो कहना चाहते हैं, वह तो कहा नहीं जाएगा। और कई बार ऐसा | करते हैं, वैसे ही कठिनाई आनी शुरू हो जाती है। लगता है कि जो वे नहीं कहना चाहते, वह भी इस शब्द से ध्वनित रवींद्रनाथ ने छः हजार गीत लिखे हैं। शायद दुनिया में किसी हो जाएगा। बहुत बार ऐसा होता है कि यह शब्द का उपयोग तो | कवि ने इतने गीत नहीं लिखे। पश्चिम में शेली को वे कहते हैं किया जा सकता है, लेकिन सुनने वाला गलत समझेगा। तो | महाकवि। लेकिन उसके भी दो हजार गीत हैं। रवींद्रनाथ के छ: रुकावट हो जाती है।
हजार गीत हैं, जो संगीत में बद्ध हो सकते हैं। रामकृष्ण का मतलब वही है। वह उनके काव्य की भाषा है कि ___ मरने के तीन या चार दिन पहले एक मित्र ने आकर रवींद्रनाथ वे कहते हैं, मां रोक लेती है सत्य को कहने से। वह उनकी | को कहा कि तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए कि पृथ्वी पर अब तक हुए काव्य-भाषा है। लेकिन असली कारण...कोई रोकता नहीं है; | महाकवियों में तुम्हारा सबसे बड़ा दान है-छः हजार गीत, जो सत्य ही रोक लेता है। क्योंकि सत्य शब्द के साथ बैठ नहीं पाता। | | संगीत में बंध सकते हैं! और प्रत्येक गीत अनूठा है। तुम्हें मृत्यु का
फिर रामकृष्ण की तकलीफ दूसरी भी है। क्योंकि वे शब्द के | कोई भय नहीं होना चाहिए और न कोई दुख लेना चाहिए, क्योंकि संबंध में बहुत कुशल भी नहीं थे। बेपढ़े-लिखे थे। बुद्ध इस तरह | तुम काम पूरा कर चुके हो; तुम फुलफिल्ड हो। आदमी तो वह दुखी नहीं रुकते। रामकृष्ण दूसरी कक्षा तक मुश्किल से पढ़े थे। मरता है, जिसका कुछ काम अधूरा रह गया हो। तुम्हारा काम तो पढ़ना-लिखना नहीं हुआ था। शब्द से उनका कोई बहुत संबंध न | | जरूरत से ज्यादा पूरा हो गया है। था। और फिर उन्हें अनुभव तो वही हुआ, जो बुद्ध को हुआ। । रवींद्रनाथ ने कहा कि रुको, आगे मत बढ़ो। मेरी हालत दूसरी
लेकिन बुद्ध सुशिक्षित थे, शाही परिवार से थे। जो भी हो सकता | ही है। मैं इधर परमात्मा से प्रार्थना किए जा रहा हूं कि अभी तो मैं था संस्कार श्रेष्ठतम, वह उन्हें उपलब्ध हुआ था। जो भी आभिजात्य | अपना साज बिठा पाया था; अभी मैंने गीत गाया कहां! अभी तो की भाषा थी, जो भी काव्य की, कला की भाषा थी, जो भी श्रेष्ठतम मैं ठोंक-पीट करके अपना साज बिठा पाया था। और अब गाने का था साहित्य में, उसका उन्हें पता था। तो बुद्ध नहीं रुकते हैं। लेकिन | वक्त करीब आता था कि इस शरीर के विदा होने का वक्त करीब इसका यह मतलब नहीं है कि बुद्ध कह पाते हैं सत्य है वह। नहीं। आ गया। ये छः हजार गीत तो मेरी कोशिश हैं सिर्फ. उस गीत को
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