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________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 है। और लोगों से जो प्रतिष्ठा मिलती है, उसका स्वाद है, जिसको | अगर आप बोलने से ही खुश होकर चले जाते हैं, तो प्रयोजन व्यर्थ छोड़ना है। जिसको छोड़ना है, उसमें रस है; और जिसको पाना है, गया। वह लक्ष्य नहीं था। उसका हमें कोई रस नहीं है। इसलिए डर लगता है। हाथ की आधी रोटी भी, मिलने वाली स्वर्ग में पूरी रोटी से ज्यादा मालूम पड़ती है। स्वाभाविक है; सीधा गणित है। एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि गीता में बार-बार कृष्ण लेकिन अगर इस दशा में, जिसमें आप हैं, आप सोचते हैं सब का कहना है कि मैं ही परम ब्रह्म हं। सब छोड़कर ठीक है, तो मैं आपसे नहीं कहता कि आप कोई बदलाहट करें। मेरी शरण आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्त करूंगा। लेकिन और आपको लगता हो कि सब गलत है, जिस हालत में आप हैं, यह वचन अन्य-धर्मी स्वीकार नहीं करते। और आपने तो फिर हिम्मत करें और थोड़े परिवर्तन की खोज करें। कहा है कि ठीक जीवन जीने की कला ही गीता है। __ शांत प्रयोग करना हो, शांत प्रयोग करें। सक्रिय प्रयोग करना फिर भी अन्य-धर्मी कृष्ण को परमात्मा मानने को हो, सक्रिय प्रयोग करें। लेकिन कुछ करें। राजी नहीं हैं। और कहते हैं, गीता वैष्णव संप्रदाय का . __ अधिक लोग कहते हैं कि शांत प्रयोग ही ठीक है। क्योंकि धार्मिक ग्रंथ है। अकेले में आंख बंद करके बैठ जाएंगे, किसी को पता तो नहीं चलेगा। लेकिन अक्सर शांत प्रयोग सफल नहीं होता। क्योंकि आप भीतर इतने अशांत हैं कि जब आप आंख बंद करके बैठते हैं, | 21 न्य-धर्मियों की फिक्र क्या है आपकों? और आप तो सिवाय अशांति के भीतर और कुछ भी नहीं होता। शांति तो नाम | 1 अन्य-धर्मियों का कौन-सा ग्रंथ मानने को तैयार हैं? को भी नहीं होती। वह जो भीतर अशांति है, वह चक्कर जोर से आप कुरान पढ़ते हैं? और आप मानने को तैयार हैं मारने लगती है। जब आप शांत होकर बैठते हैं, तब आपको | कि कुरान परमात्मा का वचन है? आप बाइबिल पढ़ते हैं? और सिवाय भीतर के उपद्रव के और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता। आप मानने को तैयार हैं कि जीसस ईश्वर का पुत्र है ? और अगर इसलिए उचित तो यह है कि वह जो भीतर का उपद्रव है, उसे आप मानने को तैयार नहीं हैं, तो आप अपने कृष्ण को किसी दूसरे भी बाहर निकल जाने दें। हिम्मत से उसको भी बह जाने दें। उसके को मनाने के लिए क्यों परेशान हैं! बह जाने पर, जैसे तूफान के बाद एक शांति आ जाती है, वैसी __ और फिर दूसरे से प्रयोजन क्या है? आपको कृष्ण की बात ठीक शांति आपको अनुभव होगी। तूफान तो धीरे-धीरे विलीन हो | | लगती है, उसे जीवन में उतारें। अपने को बदलें। जिसको मोहम्मद जाएगा और शांति स्थिर हो जाएगी। | की बात ठीक लगती हो, वह मोहम्मद की बात को जीवन में उतार यह कीर्तन का प्रयोग कैथार्सिस है। इसमें जो नाच रहे हैं लोग, | | ले, और अपने को बदल ले। जब आप दोनों बदल चुके होंगे, तो कूद रहे हैं लोग, ये उनके भीतर के वेग हैं, जो निकल रहे हैं। इन | | दोनों एक से होंगे; जरा भी फर्क न होगा। वेगों के निकल जाने के बाद भीतर परम शून्यता का अनुभव होता | लेकिन गीता वाले को फिक्र है कि किसी तरह मुसलमान को है। उसी शून्यता से द्वार मिलता है और हम अनंत की यात्रा पर राजी कर ले कि गीता महान ग्रंथ है। निकल जाते हैं। | इससे क्या हल है? तुम्हें तो पता है कि गीता महान ग्रंथ है और लेकिन कुछ करें। कम से कम शांत प्रयोग ही करें। अभी शांत | | तुम्हारी जिंदगी में कुछ भी नहीं हो रहा, तो मुसलमान भी मान लेगा करेंगे, तो कभी सक्रिय भी करने की हिम्मत आ जाएगी। लेकिन | कि गीता महान ग्रंथ है, तो क्या फर्क हो जाएगा? बीस करोड़ हिंदू सुनने पर भरोसा मत रखें। अगर सुनने से मुक्ति होती होती, तो | | तो मान रहे हैं, कुछ फर्क तो हो नहीं रहा है। तुम तो माने ही बैठे सभी की हो गई होती। सभी लोग काफी सुन चुके हैं। कुछ करना । हो कि गीता महान ग्रंथ है और कृष्ण परम ब्रह्म हैं, तो तुम्हारे जीवन होगा। करने से जीवन बदलेगा और क्रांति होगी। | में कुछ नहीं हो रहा, तो तुम दूसरे की क्या फिक्र कर रहे हो! मैं जो बोलता भी हूं, तो प्रयोजन बोलना नहीं है। बोलना तो | | दूसरे की हमें चिंता है नहीं। असल में हमें खुद ही भय है और सिर्फ बहाना है, ताकि आपको करने की तरफ ले जा सकूँ। और शक है कि कृष्ण भगवान हैं या नहीं! और जब तक कोई शक करने 278
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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